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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

वैदिक साहित्य में आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य..३.....

                                                                                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...    

१- वायु चक्र --  ऋग्वेद -३/२८/२६८८...  के अनुसार ----
  "मातरिश्वा यदमिमीते मातरि | वातस्या मर्गो अभ्वात्सरी माणि ||" ---अर्थात   एक स्थान पर वायुमंडल में उपस्थित अग्नि (  उच्च ताप ) वायु में तरंगें , लहरें उत्पन्न होने का कारण हैं | स्थानीय ताप बढ़ने से निम्न वायु-दाब होने पर वायु की तरंगें उठती हैं और अधिक वायु दाब वाले स्थान से उस स्थान की और वायु चलने लगती है | इस प्रकार वायु चक्र बनाने से हवा बहती रहती है |

२-गीत-संगीत से पोधों में वृद्धिऋग्वेद ३/८/२२२९ -- में ऋषि कहता है ---
 "अन्जन्ति त्वामध्वरे देवयन्तो वनस्पते मधुना देव्येन | 
यदाध्वार्श्तिशठा द्रविणोह धत्तायद्वा क्षयो मातुरस्य उपस्थे |"  ---  अर्थात....हे  वनस्पति देव ! देवत्व के अभिलाषी ऋत्विक गण यज्ञ में आपको दिव्य मधु  व गान ( यज्ञीय प्रयोग... गान.. इन्द्रगान ...साम- गान...संगीत आदि  ) से सिंचित करते हैं | आप चाहे उन्नत अवस्था में हों ( पौधा..वृक्ष रूप ) या पृथ्वी की गोद में ( बीज अवस्था में ) , वृद्धि को प्राप्त हों , हमें एश्वर्य प्रदान करें |

 

2 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

अति सार्थक अर्थपूर्ण जानकारी के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्पष्ट उपस्थिति।