....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
-----ऋग्वेद -मंडल ४/सू. १६/ २३२७.... में ऋषि का कथन है कि....
" """""""यानि कृत्सेन सरथम वस्यु स्तोये वातस्य हर्योरीशान: |
ऋज्रा वाजं न गध्यं युयूषांक विहर्य हन्यामपि भूयात ||"-------
अर्थात--- जब दूरदर्शी कुत्स योग्य अन्न की भाँति ऋजुता-सरलता को अपनाकर पार होने के लिए तत्पर होता है तब उसके रक्षण की कामना से इन्द्रदेव उसीके रथ पर सवार हो जाते हैं |
-----कुंठाग्रस्त साधक( या किसी भी कर्म में रुकावट से आतंकित होकर रुक जाने वाला मानव ) जब अपनी दूरदर्शिता का प्रयोग करके सहज भाव से अपनी कुंठा के कारणों( मार्ग की रुकावटों को स्वयं दूर करने का प्रयत्न ) को दूर करने के लिए संकल्पित होता है( स्वयं उठा खड़ा होता है, इच्छा शक्ति का प्रयोग करता है ) तो इन्द्रदेव--अर्थात उसका स्वयम की शक्ति आत्म-संकल्प=आत्मबल = सेल्फ भी उसका मनोरथ पूर्ण करने के लिए. उसके साथ होजाते हैं, उसका साथ देने लगते हैं |
4 टिप्पणियां:
सही कहा आप ने गुरुदेव.. हमारा विचार अगर धनात्मक हो तो हमारा अभीष्ट हमे मिल ही जाएगा..आत्म बल से बड़े बड़े युद्ध जीते गए है बड़ी बड़ी क्रांतिय हुई हैं..
आभार
आशुतोष की कलम से....: मैकाले की प्रासंगिकता और भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :
अति सुन्दर,ज्ञानवर्धक और प्रेरणास्पद विवेचना.
बहुत बहुत आभार इस अनुपम प्रस्तुति के लिए.मन्त्र शब्दार्थ के साथ हो तो और भी अच्छा लगेगा.
Indeed very inspiring post .
आत्मबल ही बाधाओं के पार ले जाने में सक्षम है।
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