....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
भला बताइये शून्य क्या है ? आप छूटते ही कहेंगे कि, अजी ,ये क्या बात हुई ! शून्य एक अंक है जो '०' से प्रकट किया जाता है . जिसका अर्थ है -कुछ नहीं, कोइ नहीं, रिक्त स्थान आदि | पर हुज़ूर ! आप यह न समझें कि शून्य एक निरर्थक राशि है या कोइ राशि ही नहीं है | साहिबान! यह अंक, शब्द या जो भी है, है अत्यंत महत्वपूर्ण व महान | क्या कहा ? क्यों ? तो लीजिये आपने किसी को १०००० रु दिए और लिखे -'१०००/- दिए ' | अरे ! आप परेशान क्यों हैं ? क्या कहा ? ९००० रु ही रफूचक्कर होगये ! अब रोइए उस महान शून्य को सिर पकड़ कर |
इसे बिंदी भी कहा जाता है | अब बिंदी की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह न लगाइए वरना समझ लीजिये बस श्रीमतीजी .......| और कहीं महिला संगठनों को पता चल गया आपकी इस विचार धारा का तो बस ...बेलन-थाली-चिमटा, धरना -प्रदर्शन ..और आप पर महिला-विरोधी होने का.....| अरे तभी तो अपने बिहारी जी भी बहक गए --
"कहत सबै बेंदी दिए , आंकु दस गुनों होत |
तिय लिलार बेंदी दिये, अगणित बढ़त उदोत ||"
"कहत सबै बेंदी दिए , आंकु दस गुनों होत |
तिय लिलार बेंदी दिये, अगणित बढ़त उदोत ||"
और याद है वह हिन्दी की बिंदी का कमाल जब स्कूल में इमला सत्र में -" इत्र बेचने वाले को गंधी कहते हैं "..से बिंदी गायब कर देने पर ....मास्टर जी के .झापड़ ही झापड़ ..|
पर इस शून्य का अर्थ कुछ नहीं और महत्त्व बहुत कुछ है...इस विरोधाभास से न तो हम ही संतुष्ट होंगे , न आप ही | इसका अर्थ कुछ और भी है | यदि न जानते हों तो बताये देते हैं कि हिन्दी के प्रश्न- पत्र में शून्य का अर्थ सिर्फ कुछ नहीं , कोई नहीं न लिख दीजिएगा, नहीं तो निश्चिन्त रहिये, शून्य ही नसीब होगा | अब जरा आकाश के पर्ययाबाची तो दोहराइए ...समझ गए न | अरे तभी तो कबीर जी भी रहस्य की बात कह गए---
" सुन्न भवन में अनहद बाजे,
जग का साहिब रहता है || "
प्रिय पाठक ! परन्तु इस '0' चिन्ह वाले शून्य को शून्य ही क्यों कहते हैं | सोचिये | क्योंकि शून्य को आकाश भी कहते हैं और आकाश है भी शून्य -निर्वात, सुन्न भवन | वह गोल भी है और अनंत भी , जैसे शून्य भी गोल है और अनंत भी | इसकी परिधि पर चक्कर लगाने वाले को छोर कहाँ मिलता है | जैसे क्षितिज की और दौडने वाले को क्षितिज नहीं मिलता |
आखिर अपने पूछ ही लिया ; शून्य का आविष्कारक कौन है | जितने मुंह उतनी बातें , बात से बात निकालने में क्या जाता है ? परन्तु शून्य का अविष्कार एक भारतीय मनीषा द्वारा ही हुआ | इससे पूर्व विश्व- गणना सिर्फ ९ तक ही सीमित थी | इस असीम शून्य के आविष्कार के पश्चात् ही गणित व भौतिकी अस्तित्व में आये | ससीम मानव की मेधा असीम की और बढ़ी | सभ्यता को आगे चढ़ने का सोपान प्राप्त हुआ | संसार गणित पर आधारित है और गणित शून्य पर | मानव की ज्ञान व प्रकृति नियमन के चरमोत्कर्ष की युग-गाथा कम्प्युटर-विज्ञान भी तो शून्य आधारित सिद्धांत की भाषा-भूमि पर टिका है ; जिसके कारण आज मानव स्वयं सोचने वाले रोबोट-यंत्र-मानव बनाकर मानव के सृष्टा होने का सुस्वप्न देखकर ईश्वरत्व के निकट पहुँचने को प्रयास-रत है | और......खैर छोडिये भी....कहाँ आगये " आये थे हर भजन को ओटन लगे कपास " |
हाँ तो आपने शून्य का अर्थ और महत्त्व समझ लिया | परन्तु श्रीमान ! यदि अप शिक्षार्थी, विद्यार्थी, परीक्षार्थी हैं तो शून्य के महत्त्व को कुछ अधिक ही अधिग्रहण करके परीक्षा में भी शून्य ही लाने का यत्न न करें , अन्यथा फिर एक वर्ष तक शून्य का सर पकड़ कर रोइयेगा |
चलिए अब तो अप शून्य का अर्थ समझ ही गए | क्या कहा ! अब भी नहीं समझे ? तो शून्य की भाँति शून्य के चक्कर लगाते रहिये , कभी तो समझ ही जायेंगे ---
"लगा रह दर किनारे पर, कभी तो लहर आयेगी "
शायद अब तो आप समझ ही गए की शून्य क्या है |यदि अब भी न समझे तो हम क्या करें , आपका मष्तिष्क ही शून्य है और आपकी अक्ल भी शून्य में घास चराने चली गयी है | आपका वर्तमान व भविष्य भी शून्य का भूत ही है | हम तो उस कहावत को सोच के डर रहे हैं कि..." खाली दिमाग शैतान का घर होता है |"
"लगा रह दर किनारे पर, कभी तो लहर आयेगी "
शायद अब तो आप समझ ही गए की शून्य क्या है |यदि अब भी न समझे तो हम क्या करें , आपका मष्तिष्क ही शून्य है और आपकी अक्ल भी शून्य में घास चराने चली गयी है | आपका वर्तमान व भविष्य भी शून्य का भूत ही है | हम तो उस कहावत को सोच के डर रहे हैं कि..." खाली दिमाग शैतान का घर होता है |"
5 टिप्पणियां:
शुन्य पर बहुत गहन विवेचन मिला..
सब शुन्य की महत्ता को स्वीकारते हैं..शुन्य हमेशा प्रेरणा देता है आगे बढ़ने की ...
जैसे १ के आगे एक शुन्य लगाइए १० गुना आगे बढ़ गए..बस ये है की किस नजरिये से हम शुन्य का उपयोग करते है..
दिमाग भरा रखिये,
वातावरण हरा रखिये।
शून्य पर अशून्य जानकारी के लिए आभार.
श्याम जी,
पर कितना सुन्दर अनुभव है शून्य हो जाना.
जानकारी पूर्ण ...रोचक एवं ललित व्यंग्य लेख |
---धन्यवाद आशुतोष,विशाल व झन्झट जी..
---वाह पान्डे जी ..क्या कहा है..वातावरण हरा रहे तो दिमाग भी हरा-भरा रहे...और दिमाग भरा रहे तो वातावरण के भी् सुधार की भी राह बने..वाह..
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