....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
बडी नाइन्साफ़ी है.... दीपयन्ती जिसने लूट कर भागते हुए बदमाश को जान पर खेल कर पकडवाने में कोशिश की उसे सिर्फ़ १००१ रु का पुरस्कार , वो भी कालोनी के नागरिकों द्वारा......और क्रिकेट के खिलाडी जो सिर्फ़ पैसे के लिये खेलते हैं, जिन्हें खेलने के पैसे मिलते हैं और जीतना उनकी जिम्मेदारी है, उन्हें सिर्फ़ एक कप जीतने पर एक-एक करोड रु ,फ़्लेट और न जाने क्या क्या .....क्यों भाई ????? क्या जान पर खेलने की कीमत इतनी कम है और पैसे लेकर खेलने की और भाग्य से जीतजाने की कीमत करोडों ( मेच फ़ीस के अलावा )...
यूं तो जीतना सभी को अच्छा लगता है, जीत सदा ही अच्छी होती है...पर उसका क्या गुणात्मक लाभ है, आखिर क्या खास बात की है इन खिलाडियों ने, देश को क्या मिल गया, हार जाते तो देश का क्या घट जाता...??? क्या इससे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनाचार ,घोटाले,दुराचरण, कदाचरण , लूट, चोरी ,डकैती , आतन्कवाद कम होजायगा ?? वास्तव में तो और बढेगा ही...अरबों खर्च करके, आयोजनों में लूट-खसोट, बन्दरबांट,भ्रष्टाचार, अनाचार,मेच-फ़िक्सिन्ग, जनता का धन-समय बर्बाद करके....एक कप......
और कहां से आयेगा देने को यह धन...मेहनत कश जनता की गाढी कमाई से...... सरकार व आई सी आइ को क्या..उनके घर से थोडे ही जारहा है.......माल मुफ़्त दिले बेरहम....लुटाओ....एक तरफ़ तो जनता महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रही है दूसरी ओर करोडों लुटाये जारहे हैं उन पर जो पहले ही करोड पति हैं....
खिलाडियों का सम्मान करना चाहिये, यदि वे लाखों रु फ़ीस लेकर देश के लिये खेले तो धन किसलिये......खिलाडियों को भी चाहिये यदि वे वास्तव में देश के लिये खेले तो उन्हें पुरस्कार की राशि लेने से इन्कार कर देना चाहिये, क्योंकि वे अपने एम्प्लोयर से नियमित वेतन व खेलने के लिये फ़ीस लेते ही हैं..... पुरस्कार का अर्थ ही निशुल्क सेवा के लिये सम्मान होता है।
बडी नाइन्साफ़ी है.... दीपयन्ती जिसने लूट कर भागते हुए बदमाश को जान पर खेल कर पकडवाने में कोशिश की उसे सिर्फ़ १००१ रु का पुरस्कार , वो भी कालोनी के नागरिकों द्वारा......और क्रिकेट के खिलाडी जो सिर्फ़ पैसे के लिये खेलते हैं, जिन्हें खेलने के पैसे मिलते हैं और जीतना उनकी जिम्मेदारी है, उन्हें सिर्फ़ एक कप जीतने पर एक-एक करोड रु ,फ़्लेट और न जाने क्या क्या .....क्यों भाई ????? क्या जान पर खेलने की कीमत इतनी कम है और पैसे लेकर खेलने की और भाग्य से जीतजाने की कीमत करोडों ( मेच फ़ीस के अलावा )...
यूं तो जीतना सभी को अच्छा लगता है, जीत सदा ही अच्छी होती है...पर उसका क्या गुणात्मक लाभ है, आखिर क्या खास बात की है इन खिलाडियों ने, देश को क्या मिल गया, हार जाते तो देश का क्या घट जाता...??? क्या इससे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनाचार ,घोटाले,दुराचरण, कदाचरण , लूट, चोरी ,डकैती , आतन्कवाद कम होजायगा ?? वास्तव में तो और बढेगा ही...अरबों खर्च करके, आयोजनों में लूट-खसोट, बन्दरबांट,भ्रष्टाचार, अनाचार,मेच-फ़िक्सिन्ग, जनता का धन-समय बर्बाद करके....एक कप......
और कहां से आयेगा देने को यह धन...मेहनत कश जनता की गाढी कमाई से...... सरकार व आई सी आइ को क्या..उनके घर से थोडे ही जारहा है.......माल मुफ़्त दिले बेरहम....लुटाओ....एक तरफ़ तो जनता महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रही है दूसरी ओर करोडों लुटाये जारहे हैं उन पर जो पहले ही करोड पति हैं....
खिलाडियों का सम्मान करना चाहिये, यदि वे लाखों रु फ़ीस लेकर देश के लिये खेले तो धन किसलिये......खिलाडियों को भी चाहिये यदि वे वास्तव में देश के लिये खेले तो उन्हें पुरस्कार की राशि लेने से इन्कार कर देना चाहिये, क्योंकि वे अपने एम्प्लोयर से नियमित वेतन व खेलने के लिये फ़ीस लेते ही हैं..... पुरस्कार का अर्थ ही निशुल्क सेवा के लिये सम्मान होता है।
2 टिप्पणियां:
भाई साहब ! वाकई आपने एक ज्वलंत सवाल उठाया है. आपके विचारों से मै भी शत-प्रतिशत सहमत हूं .क्रिकेट आज वास्तव में बाजारवाद का बेशर्म खेल बन गया है . यह अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों और शराब-ठेकेदारों के काले धन का खेल है. दुःख की बात है कि कबड्डी ,खो-खो ,हाकी फुटबॉल,वालीबॉल जैसे हमारे तमाम सस्ते लेकिन रोचक और स्वास्थ्यवर्धक देशी परिवेश के खेल इसके चलते विलुप्त होते जा रहे हैं . चैत्र-नवरात्रि और भारतीय नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं. माँ दुर्गा क्रिकेट के इन व्यापारीनुमा खिलाड़ियों और उनके पालनहारों को सदबुद्धि दे , नव-रात्रि पर यही प्रार्थना है.
कहीं धूप तो कहीं छाँव।
एक टिप्पणी भेजें