....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मार्ग...
कहा जाता है,
मार्ग...
कहा जाता है,
मध्यम मार्ग ही श्रेष्ठ है |
हाँ -
यथास्थिति ,साम्यता व ठहराव -
के लिए यथेष्ठ है |
ठहरी हुई सभ्यता ,
ठहरा हुआ समाज ,
ठहरा हुआ इतिहास,
ठहरा हुआ व्यक्तित्व-
तालाब के ठहरे-
पानी की तरह होते हैं; जिसमें -
मेढक , कछुए एवं ,
लिज़लिजाते हुए कृमि-कीट से अन्यथा-
जीवन नहीं पनपता |
युग परिवर्तन, नव चेतना एवं-
नव सर्जना ;
सत्यानुशासन वादी,
क्रान्तिवादी,
चरम आदर्शवादी ,
अतिवादी, कठोर -
मार्ग ही लाता है |
क्रांति-दर्शियों को लीक से हटकर,
सत्य के लिए टकराव का ,
अतिवादी मार्ग ही भाता है |
मनु, मूषा, ईशा,
राम कृष्ण हरिश्चंद्र,
लक्ष्मीबाई शिवा प्रताप,
गौतम, गांधी ,दयानंद,
यदि -कठोर सत्य का मार्ग न अपनाते , तो-
कैसे महान कहलाते ?
कहाँ होते फिर,
हमारे पास, हमारे लिए -
वेद उपनिषद् महान ,
रामायण गीता पुराण,
महाभारत बाइबल कुरआन ;
इंसान कैसे बनता इंसान,
इंसान कैसे बनता महान ||
11 टिप्पणियां:
व्यक्ति,परिस्थिति,गुण और कालधर्म अनुसार साधना का चयन होता है.साधना जैसे जैसे परिपक्व होती है और ईश कृपा भी होती है आपके कथनानुसार कठोर सत्य मार्ग पर यात्रा प्रशस्त होती है,और फिर इंसान महानता की ओर स्वयमेव बढ़ता जाता है.
aapki sundar prastuti ke liye aabhar.
सत्य के लिए टकराव का ,
अतिवादी मार्ग ही भाता है....
वर्तमान परिवेश में यही मार्ग प्रासंगिक होगा..श्री राम ने भी किया था
विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीत
हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक और सुन्दर रचना..
धर्मनिरपेक्षता, और सेकुलर श्वान : आयतित विचारधारा का भारतीय परिवेश में एक विश्लेषण:
हर विकास को कुछ समय के लिये स्थिर रखना पड़ता है, पुनः जोर लगाने के पहले।
@ सही कहा पान्डे जी--- ठहराव भी आवश्यक है जो हमें पीछे मुडकर अंत:विवेचन करने का मौका देता है.....ताकि अति-तीब्र गति से विकास के पथभ्रष्ट होने की सम्भावना रोकी जा सके...और विकास को रिजु मार्ग पर रखा जा सके....हां अति-ठहराव स्वयं विकास के लिये घातक है....
---धन्यवाद राकेश जी --- "सत्यं शिवम सुन्दरं- तभी प्रत्येक भारतीय क्रिति-भाव का मूल है...इसीलिये सत्य सर्वप्रथम रखा गया है...यदि कुछ सत्य नहीं है तो वह सुन्दर होते हुए भी ऊपर से कल्याण दिखते हुए भी शिवं नहीं होगा, और यदि कुछ शिवं नहीं तो वह सुन्दर नहीं होसकता चाहे दिखने में सुन्दर लगे---सुबरन कलश सुरा भरा साधू निन्दा सोय....
---सही कहा आशुतोश...और सेक्यूलर श्वान...बहुत खूब...पोस्ट है...बधाई..
सर कोई भी सुन्दर सृष्टि बलिदान खोजती है ! हवा कभी रुकी है क्या ?
श्रीमान जी,मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे.ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
बहुत सुन्दर लिखा है . हार्दिक धन्यवाद .
धन्यवाद अम्रता जी...
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