....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
रास लीला--
१-नृत्य , गायन, वादन....
गाते धुन वंशी रखे ओठों पर घनश्याम ,
नृत्य राधिका कर रहीं वृन्दावन के धाम |
वृन्दावन के धाम, नृत्य रत सब ही गोपीं,
कुसुम ललिता आदि सभी राधा सखि जो थीं |
थकीं गोपियाँ , पैर न राधा के रुक पाते,
जब तक,श्याम' श्याम रहते वंशी धुन गाते ||
गलियाँ गलियाँ घूम कर, वृन्दावन में श्याम,
करते नव जन जागरण,वंशी धुन अभिराम |
वंशी धुन अभिराम, नृत्य रत वे राधा सन्नारी,
देतीं नव सन्देश, जगे अंचल अंचल हर नारी |
संग हुए सब गोप-गोपिका, सखा व सखियाँ ,
श्याम हुई नव भोर , जग उठीं गलियाँ गलियाँ ||
२-रास...
वृन्दावन के कुञ्ज में, रचें रास अभिराम,
झूमें गोपी गोपिका , नाचें राधा श्याम |
नाचें राधा श्याम, पूछते और समझाते ,
किसने क्या क्या देखा, मथुरा आते-जाते |
कौन वर्ग, सरदार, विरोधी हैं शासन के,,
श्याम, पक्ष में आजायेंगे , वृन्दावन के ||
३-महारास....
सखियाँ सब समझें यही, मेरे ही संग श्याम,
सभी गोपियाँ समझतीं, मेरे ही घनश्याम |
मेरे ही घनश्याम, श्याम संग राधाजी मुसकातीं ,
भक्ति-भाव तदरूप,स्वयं सखियाँ कान्हा होजातीं |
एक ब्रह्म भाषे कण कण,माया-भ्रम सबकी अँखियाँ,
मेरे ही संग श्याम, श्याम' समझें सब सखियाँ ||
2 टिप्पणियां:
वाह, क्या व्यक्त किया है?
डॉ श्याम जी -सुन्दर रचना -इस कला में आप की लेखनी अद्भुत है और आप माहिर हैं -चाहे वस सूर्पनखा हो या राधा श्याम
सखियाँ सब समझें यही, मेरे ही संग श्याम,
सभी गोपियाँ समझतीं, मेरे ही घनश्याम |
सभी प्रभु को अपना ही समझते हैं प्रभु तो एक ही हैं उनके रूप अनेक हैं लेकिन अपने भाग्य और बिभिन्न कर्मों को कर के ही उनका वरन करना संभव होता है
इसलिए बहुत जरुरी होता है अपने बिभिन्न कर्मों को मन और तल्लीनता से करना
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
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