....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
जल अति भारी बरसता वृन्दावन के धाम,
हर वर्षा-ऋतु डूबते , वृन्दावन के ग्राम |
वृन्दावन के ग्राम, सभी दुःख सहते भारी ,
श्याम कहा समझाय, सुनें सब ही नर नारी
ऊंचे गिरितल बसें , छोड़ नीचा धरती तल,
फिर न भरेगा, ग्राम गृहों में वर्षा का जल ||
पूजा नित प्रति इंद्र की, क्यों करते सब लोग ,
गोवर्धन पूजें नहीं, जो पूजा के योग |
जो पूजा के योग, सोचते क्यों नहीं सभी,
देता पशु,धन-धान्य,फूल-फल सुखद वास भी |
हितकारी है श्याम , न गोवर्धन सम दूजा,
करें नित्य वृज-वृन्द सभी गोवर्धन पूजा ||
सुरपति जब करने लगा, महावृष्टि ब्रजधाम ,
गोवर्धन गिरि बसाए, ब्रजवासी घनश्याम |
वृजवासी घनश्याम, गोप गोपी साखि राधा,
रखते सबका ख्याल, न आयी कुछ भी बाधा |
उठालिया गिरि कान्ह, कहैं वृज बाल-बृंद सब ,
चली न कोइ चाल , श्याम, यूँ हारा सुरपति ||
2 टिप्पणियां:
फुहार से बरसते शब्द छन्द।
बहुत ही सुंदर
पूजा नित प्रति इंद्र की, क्यों करते सब लोग ,
गोवर्धन पूजें नहीं, जो पूजा के योग |
जो पूजा के योग, सोचते क्यों नहीं सभी,
देता पशु,धन-धान्य,फूल-फल सुखद वास भी |
हितकारी है श्याम , न गोवर्धन सम दूजा,
करें नित्य वृज-वृन्द सभी गोवर्धन पूजा||
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