....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
तेरे कितने रूप गोपाल ।
सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल ।
नाग -नथैया, नाच -नचैया, नटवर, नंदगोपाल ।
मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, यदुपाल ।
चीर -हरैया, रास -रचैया, रसानंद, रस पाल ।
कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण-मुरारी, केशव, नृत्यगोपाल |
वासुदेव, हृषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधरगोपाल |
जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल |
देवकीसुत,रणछोड़ जी,गोविन्द,अच्युत,यशुमतिलाल |
वर्णन-क्षमता कहाँ 'श्याम, की राधानंद, नंदलाल |
माखनचोर, श्याम, योगेश्वर, अब काटो भव जाल ||
3 टिप्पणियां:
वाह! डॉ. साहब आनंद ही आनंद बरसा दिया आपने.इतनी सुन्दर प्रस्तुति को बार बार गाने का मन करता है.बहुत बहुत बधाई आपको.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.चलिए'सरयू'स्नान कर लिया जाये इस बार.
अनुपम भकितमयी रचना।
धन्यवाद पान्डे जी व राकेश जी...निर्मल आनन्द...
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