. ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
( घनाक्षरी छंद )
दहन सी दहकै द्वार देहरी दगर्- दगर,
कली कुञ्ज कुञ्ज क्यारी क्यारी कुम्हिलाई है |
पावक प्रतीति पवन परसि पुष्प पात-पात,
जारै तरु गात , डाली डाली मुरझाई है |
जेठ की दुपहरी यों तपाये अंग-प्रत्यंग ,
मलय बयार मन मार अलसाई है |
सुनसान गली वन बाग़ बाज़ार पड़े ,
जीभ को निकाल श्वान, हांफते से जा रहे |
कोइ पड़े एसी कक्ष , कोई लेटे तरु छांह ,
कोई झलें पंखा कोई कूलर चला रहे |
जब कहीं आवश्यक कार्यं से है जाना पड़े,
पोंछते पसीना तेज कदमों से जारहे |
ऐनक लगाए 'श्याम, छतरी लिए हैं हाथ,
नर-नारी सबही पसीने से नहा रहे || -----क्रमश:
( घनाक्षरी छंद )
दहन सी दहकै द्वार देहरी दगर्- दगर,
कली कुञ्ज कुञ्ज क्यारी क्यारी कुम्हिलाई है |
पावक प्रतीति पवन परसि पुष्प पात-पात,
जारै तरु गात , डाली डाली मुरझाई है |
जेठ की दुपहरी यों तपाये अंग-प्रत्यंग ,
मलय बयार मन मार अलसाई है |
तपें नगर गाँव, छाँव ढूँढि रही शीतल छाँव ,
धरती गगन , श्याम आगि सी लगाई है ||सुनसान गली वन बाग़ बाज़ार पड़े ,
जीभ को निकाल श्वान, हांफते से जा रहे |
कोइ पड़े एसी कक्ष , कोई लेटे तरु छांह ,
कोई झलें पंखा कोई कूलर चला रहे |
जब कहीं आवश्यक कार्यं से है जाना पड़े,
पोंछते पसीना तेज कदमों से जारहे |
ऐनक लगाए 'श्याम, छतरी लिए हैं हाथ,
नर-नारी सबही पसीने से नहा रहे || -----क्रमश:
1 टिप्पणी:
सबको गर्मी में आराम मिले।
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