....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
१-
कालिन्दी का तीर औ, वंशी-धुन की टेर ,
गोप- गोपिका मंडली, नगर लगाती फेर |
नगर लगाती फेर, सभी को यह समझाती,
ग्राम-नगर की सभी गन्दगी, जल में जाती |
विष सम काला दूषित जल है यहाँ नदी का ,
बना सहसफ़ण नाग, कालिया कालिंदी का ||
२-
यमुना-तट पर श्याम ने, वंशी दई बजाय,
चहुँदिशि मोहिनि फेर कर,सबको लिया बुलाय |
सबको लिया बुलाय, प्रदूषित यमुना भारी ,
सभी करें श्रमदान , स्वच्छ हो नदिया सारी |
तोड़ किया विष हीन, प्रदूषण नाग का नथुना ,
फण फण नाचे श्याम,झरर झर झूमी यमुना ||
5 टिप्पणियां:
तोड़ किया विष हीन, प्रदूषण नाग का नथुना ,
फण फण नाचे श्याम,झरर झर झूमी यमुना ||
उत्कृष्ट सन्देश ,अनुपम प्रस्तुति.
श्यामजी 'श्याम'की बंसी अदभुत है.
बहुत बहुत आभार डॉ. साहब.
दोनों ही छन्द बद्ध रचनाएं मन मोह गईं।
सर श्रमदान से बहुत कुछ किया जा सकता है !
अनुपम रचना।
--धन्यवाद राकेश जी---आभार..
कान्हा तोरी वन्शी मन भरमाये.
पल पल ग्यान का अमरत टपके, तम मन सरसाये ।
--धन्यवाद मनोज जी , पान्डे जी व शा...
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