....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ ...
( सभी की अपनी अपनी सोच होती है ,पर वह सोच गुणात्मक भाव होनी चाहिए......प्रस्तुत है एक रचना इसी भाव पर....सवैया छंद में ).....
पीने वाला यही चाहता गली गली मधुशाला हो |
हर नुक्कड़ हर मोड़ जो मिले मदिरा पीने वाला हो |
अपनी अपनी सोच सभी की मन गोरा या काला हो |
सभी चाहते उनकी दुनिया में हर ओर उजाला हो ||
भक्त चाहता मंदिर-मस्जिद हो, हर ओर शिवाला हो |
पंडित और मौलवी चाहें , हर हाथों में माला हो |
ज्ञानी चाहे ज्ञान का मंदिर, हर विद्यालय आला हो |
घर घर ज्ञान दीप जल जाएँ औ चहुँ ओर उजाला हो ||
गोरी चाहे सेज पिया की, प्रियतम भोला भाला हो |
प्रेमी चाहे प्रीति का बंधन, कभी न मिटने वाला हो |
मनमंदिर हो प्रीति का दर्पण हरपल प्रेम कीं हाला हो |
प्रेमप्याला भर भर छकलूँ, मन नित प्रीतिउजाला हो ||
नेता चाहे सिंहासन जो, कभी न हिलने वाला हो |
सात पीड़ियाँ तक तर जाएँ, पद वो वैभव वाला हो |
धनी चाहता शान्ति मिले मन,निर्धन महल निराला हो |
द्वेषी चाहे जग हो अन्धेरा, मेरे घर में उजाला हो ||
प्रजा चाहती शासक न्यायी,जन हित करने वाला हो |
सैनिक मातृभूमि की रक्षा में मर मिटने वाला हो |
भूखा चाहे उसको प्रतिदिन बस दो जून निवाला हो |
चोर चाहता सदा अमावस,रात न कभी उजाला हो |
कविता गीत हो या अगीत हो मन का भाव निराला हो |
छंद , सवैया, कुण्डलिया या चौपाई की माला हो |
सखी, त्रिभंगी और गीतिका, तारक हो उल्लाला हो |
भाव ताल लय रस मन मोहे, अंतर-दीप उजाला हो ||
श्रोता चाहे, कवि निराली कविता कहने वाला हो |
कवि चाहता काव्य-सुधारस मन सरसाने वाला हो |
सुन्दर सरल सुबोध सुहानी, सरस शब्द की माला हो |
आनंद दीप जलें मन हरषे, जन जन ज्ञान उजाला हो ||
कर्म हो ऐसा, अहंकार, मद, लोभ मिटाने वाला हो |
धर्म वही जो राष्ट्र, देश, जन हित दर्शाने वाला हो |
ज्ञान वही जो ज्योति की ज्योति का मर्म बताने वाला हो |
आत्मतत्व को जगमग करदे,मन नित दीप उजाला हो ||
सभी चाहते उनकी दुनिया में हर ओर उजाला हो |
अपनी अपनी सोच सभी की मन गोरा या काला हो |
श्याम' चाहता , माँ वाणी के वंदन में मतवाला हो |
सत्य-धर्म औ कर्म-दीप से घर घर ज्ञान उजाला हो ||
10 टिप्पणियां:
थोडा निम्न को समझाएं - अपनी , ओर,पीढियां
अपनी अपने सोच सभी की
हर और उजाला हो
सात पीड़ियाँ
आदरणीय श्याम गुप्त जी बहुत ही सुन्दर रचना आप ने हर क्षेत्र को इसमें समाहित किया प्यारे कथ्य और चाहने वाले की अभिलाषा एक तथ्य -बधाई हो
कर्म हो ऐसा, अहंकार, मद, लोभ मिटाने वाला हो |धर्म वही जो राष्ट्र, देश, जन हित दर्शाने वाला हो |ज्ञान वही जो ज्योति की ज्योति का मर्म बताने वाला हो |आत्मतत्व को जगमग करदे,मन नित दीप उजाला हो ||
श्याम' चाहता , माँ वाणी के वंदन में मतवाला हो |सत्य-धर्म औ कर्म-दीप से घर घर ज्ञान उजाला हो ||
माँ शारदा आप की पिपासा को तृप्त करें -शुभ कामनाएं
शुक्ल भ्रमर ५
धन्यवाद...भ्रमर जी...
अपनी = हमारी, खुद की, स्वयं की..
ओर = तरफ
पीढियां = जेनरेशन..
----शेष टाइपिंग की गलती है....
बहुत ही सार्थक और सारगर्भित पोस्ट!
अपनी अपने सोच सभी की... bhut hi sarthak rachna...
सबकी राहें सबकी चाहें,
जीवन की हर रीति निबाहें।
shyam ji apni apne soch
ya
apni apni soch sabhi ki
kya shuddh aur uttam ??
bharamr 5
apni apni soch sabhi ki ...
धन्यवाद ...मदन शर्मा जी...सुषमा जी...व पांडे जी...
--सही कहा पांडे जी...अपनी अपनी सोच तो सब की होती है.. परन्तु जीवन की सभी रीति -नीति तो निभानी ही चाहिए ..सार्थक जीवन के लिए ...अन्य से समावेशन करके....हाँ मंतव्य व्यापक-समष्टिगत होना चाहिए ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है श्याम जी.
ब्लोगर की चाहत को भी समाविष्ट किया है आपने श्रोता ओर कवि के रूप में.आपने निराली कविता प्रस्तुत की है.बहुत बहुत बधाई.
धन्यवाद राकेश जी ...स्वागतम ...
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