....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
त्रिभुवन गुरु और सर्व गुरु, जो प्रत्यक्ष प्रमाण,
जन्म मरण से मुक्ति, दे ईश्वर करूँ प्रणाम
पूर्ण चन्द्र सदृश्य है, गुरु की कृपा महान ,
मन वांछित फल पाइए,परमानन्द महान
सदाचार स्थापना, शास्त्र अर्थ समझाय,
आप करे सद आचरण, सो आचार्य कहे
जब तक मन स्थिर नहीं, मन नहीं शास्त्र विचार,
गुरु की कृपा न प्राप्त हो, मिले न तत्व विचार
सभी तपस्या पूर्ण हों, यदि संतुष्ट प्रमाण,
मात पिता गुरु का करें, श्याम सदा सम्मान
मनसा वाचा कर्मणा, कार्य करें जो कोय,
मातु पिता गुरु की सदा सुसहमति से होय
शत आचार्य समान है, श्याम' पिता का मान,
नित प्रति वंदन कीजिये,मिले धर्म संज्ञान
माता एक महान है, सहस पिता का मान,
पद बंदन नित कीजिये, माता गुरू महान
शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान ,
करते जो संतान हित, मात पिता वलिदान
दिखा गए सन्मार्ग जो, माता पिता महान ,
उचित मार्ग पर हम चलें, सदा मिले सम्मान
विद्या दे और जन्म दे,और संस्कार कराय,
अन्न देय निर्भर करे, पांच पिता कहलायं
राजा, गुरु और मित्र की पत्नी रखिये मान,
पत्नी माता, स्वमाता, पांचो माता मान
5 टिप्पणियां:
सारे शिक्षाप्रद दोहे, बहुत ही अच्छे।
मनसा वाचा कर्मणा, कार्य करें जो कोय,
मातु पिता गुरु की सदा सुसहमति से होय |
विलक्षण प्रस्तुति श्याम जी.
आपके सदवचनों को शत शत नमन.
'मनसा वाचा कर्मणा' पर भी आपके सद्वचनों का इंतजार है.
धन्यवाद पांडे जी व राकेश जी...
श्याम जी बेहद शिक्षा प्रद नीति परक दोहे .कृपया शुद्ध कर लें सामान के स्थान पर समान इस दोहे में -
शत आचार्य समान है ,श्याम पिता का मान ,
नित प्रति वंदन कीजिए ,मिले धर्म सम्मान .
ये दोहावली आज स्कूल पाठ्य क्रम में या कमसे कम आज का विचार पट पर लिखी जानी चाहिए .
dhanyavaad वीरूभाई, छपाई की अशुद्धि को ठीक कर दिया गया है ..आभार..
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