नव अगीत .. अतुकांत कविता की धारा ..अगीत की...की एक विधा है जो चार से पांच पंक्तियाँ तक की अतुकांत कविता है...लय व प्रवाह युक्त....
१-दुकानें ..
पता ज्ञात नहीं,
स्वयं को ही;
बेच रहे हैं,
अपनी अपनी दुकानों में-
ईश्वर का पता |
२- रास्ते...
रास्ते,
दिखारहे हैं, वो-
जो स्वयं नहीं चलते ,
रास्तों पर |
३-- आदमी हैरान ....
फैंके हुए दौनों पर,
झपट पड़े दोनों -
कुत्ता और आदमी;
जीत गया श्वान,
आदमी हैरान |
४-शंका....
शंकित हैं कलियाँ ,
अंगडाई लें कैसे ;
डरती हैं,
कहीं देख न लें ,
गुलशन के सरमायादार |
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आभार
चारों की चारों, अद्भुत अभिव्यक्ति।
अदभुत रचनाये..
धन्यवाद सुषमाजी, पांडे जी व शुक्ला जी......
एक टिप्पणी भेजें