....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ब्लॉग जगत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति हेतु मुफ्त लेखन की सुविधा होने से अनेकानेक ब्लॉग आरहे हैं एवं नए नए व युवा कवि अपने आप को प्रस्तुत कर रहे हैं ....हिन्दी व भाषा एवं समाज के लिए गौरव और प्रगति-प्रवाह की बात है ......परन्तु इसके साथ ही यह भी प्रदर्शित होरहा है कि .....कविता में लय, गति , लिंगभेद, विषय भाव का गठन, तार्किकता, देश-काल, एतिहासिक तथ्यों की अनदेखी आदि की जारही है | जिसके जो मन में आरहा है तुकबंदी किये जारहा है | जो काव्य-कला में गिरावट का कारण बन सकता है|
यद्यपि कविता ह्रदय की भावाव्यक्ति है उसे सिखाया नहीं जा सकता ..परन्तु भाषा एवं व्याकरण व सम्बंधित विषय का उचित ज्ञान काव्य-कला को सम्पूर्णता प्रदान करता है | शास्त्रीय-छांदस कविता में सभी छंदों के विशिष्ट नियम होते हैं अतः वह तो काफी बाद की व अनुभव -ज्ञान की बात है परन्तु प्रत्येक नव व युवा कवि को कविता के बारे में कुछ सामान्य ज्ञान की छोटी छोटी मूल बातें तो आनी ही चाहिए | कुछ सहज सामान्य प्रारंभिक बिंदु नीचे दिए जा रहे हैं, शायद नवान्तुकों व अन्य जिज्ञासुओं के लिए सार्थक हो सकें ....
(अ) -अतुकांत कविता में- यद्यपि तुकांत या अन्त्यानुप्रास नहीं होता परन्तु उचित गति, यति व लय अवश्य होना चाहिए...यूंही कहानी या कथा की भांति नहीं होना चाहिए.....वही शब्द या शब्द-समूह बार बार आने से सौंदर्य नष्ट होता है....यथा ..निरालाजी की प्रसिद्ध कविता.....
"अबे सुन बे गुलाव ,
भूल मत गर पाई, खुशबू रंगो-आब;
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा -
कैपीटलिस्ट ||"
"कर्म प्रधान जगत में जग में, =१६ मात्राएँ
(२+१ , १+२+१ , १+१+१ , २ , १+१ , २ =१६)
प्रथम पूज्य हे सिद्धि विनायक | = १६.
(१+१ +१, २+१, २ , २+१ , १+२+१+१ =१६ )
कृपा करो हे बुद्धि विधाता , = १६
(१+२ , १+२ , २ , २+१ १ +२ +२ =१६ )
रिद्धि सिद्धि दाता गणनायक || = १६
(२+१, २+१ , २+२ , १+१+२+१+१ =१६ )
२ -लिंग ( स्त्रीलिंग-पुल्लिंग )---कर्ता व कर्मानुसार.....उसके अनुसार उसी लिंग का प्रयोग हो.... यथा ....
" जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होती है " ----यहाँ क्रिया -लिए ..कर्ता जीवन का व्यापार है..न कि छड़ी का जो समझ कर 'होती है ' लिखा गया ----अतः या तो ....जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होता है ....होना चाहिए ...या ..जिंदगी हर वक्त लिए एक छड़ी होती है ...होना चाहिए |
३- इसी प्रकार ..काव्य- विषय का --काल-कथानक का समय (टेंस ), विषय-भाव ( सब्जेक्ट-थीम ), भाव (सब्सटेंस), व विषय क्रमिकता, तार्किकता , एतिहासिक तथ्यों की सत्यता, विश्व-मान्य सत्यों-तथ्यों-कथ्यों ( यूनीवर्सल ट्रुथ ) का ध्यान रखा जाना चाहिए....बस .....|
४-- लंबी कविता में ...मूल कथानक, विषय -उद्देश्य , तथ्य व देश -काल ....एक ही रहने चाहिए ..बदलने नहीं चाहिए .....उसी मूल कथ्य व उद्देश्य को विभिन्न उदाहरणों व कथ्यों से परिपुष्ट करना एक भिन्न बात है ...जो विषय को स्पष्टता प्रदान करते हैं ....
-और सबसे बड़ा नियम यह है कि ...स्थापित, वरिष्ठ, महान, प्रात: स्मरणीय ...कवियों की सेकडों रचनाएँ ..बार बार पढना , मनन करना व उनके कला व भाव का अनुसरण करना .......उनके अनुभव व रचना पर ही बाद में आगे शास्त्रीय नियम बनते हैं......
ब्लॉग जगत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति हेतु मुफ्त लेखन की सुविधा होने से अनेकानेक ब्लॉग आरहे हैं एवं नए नए व युवा कवि अपने आप को प्रस्तुत कर रहे हैं ....हिन्दी व भाषा एवं समाज के लिए गौरव और प्रगति-प्रवाह की बात है ......परन्तु इसके साथ ही यह भी प्रदर्शित होरहा है कि .....कविता में लय, गति , लिंगभेद, विषय भाव का गठन, तार्किकता, देश-काल, एतिहासिक तथ्यों की अनदेखी आदि की जारही है | जिसके जो मन में आरहा है तुकबंदी किये जारहा है | जो काव्य-कला में गिरावट का कारण बन सकता है|
यद्यपि कविता ह्रदय की भावाव्यक्ति है उसे सिखाया नहीं जा सकता ..परन्तु भाषा एवं व्याकरण व सम्बंधित विषय का उचित ज्ञान काव्य-कला को सम्पूर्णता प्रदान करता है | शास्त्रीय-छांदस कविता में सभी छंदों के विशिष्ट नियम होते हैं अतः वह तो काफी बाद की व अनुभव -ज्ञान की बात है परन्तु प्रत्येक नव व युवा कवि को कविता के बारे में कुछ सामान्य ज्ञान की छोटी छोटी मूल बातें तो आनी ही चाहिए | कुछ सहज सामान्य प्रारंभिक बिंदु नीचे दिए जा रहे हैं, शायद नवान्तुकों व अन्य जिज्ञासुओं के लिए सार्थक हो सकें ....
(अ) -अतुकांत कविता में- यद्यपि तुकांत या अन्त्यानुप्रास नहीं होता परन्तु उचित गति, यति व लय अवश्य होना चाहिए...यूंही कहानी या कथा की भांति नहीं होना चाहिए.....वही शब्द या शब्द-समूह बार बार आने से सौंदर्य नष्ट होता है....यथा ..निरालाजी की प्रसिद्ध कविता.....
"अबे सुन बे गुलाव ,
भूल मत गर पाई, खुशबू रंगो-आब;
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा -
कैपीटलिस्ट ||"
(ब )- तुकांत कविता/ गीत आदि में--जिनके अंत में प्रत्येक पंक्ति या पंक्ति युगल आदि में (छंदीय गति के अनुसार) तुक या अन्त्यानुप्रास समान होता है...
१-- मात्रा -- तुकांत कविता की प्रत्येक पंक्ति में सामान मात्राएँ होनी चाहिए मुख्य प्रारंभिक वाक्यांश, प्रथम पंक्ति ( मुखडा ) की मात्राएँ गिन कर उतनी ही सामान मात्राएँ प्रत्येक पंक्ति में रखी जानी चाहिए....यथा .."कर्म प्रधान जगत में जग में, =१६ मात्राएँ
(२+१ , १+२+१ , १+१+१ , २ , १+१ , २ =१६)
प्रथम पूज्य हे सिद्धि विनायक | = १६.
(१+१ +१, २+१, २ , २+१ , १+२+१+१ =१६ )
कृपा करो हे बुद्धि विधाता , = १६
(१+२ , १+२ , २ , २+१ १ +२ +२ =१६ )
रिद्धि सिद्धि दाता गणनायक || = १६
(२+१, २+१ , २+२ , १+१+२+१+१ =१६ )
२ -लिंग ( स्त्रीलिंग-पुल्लिंग )---कर्ता व कर्मानुसार.....उसके अनुसार उसी लिंग का प्रयोग हो.... यथा ....
" जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होती है " ----यहाँ क्रिया -लिए ..कर्ता जीवन का व्यापार है..न कि छड़ी का जो समझ कर 'होती है ' लिखा गया ----अतः या तो ....जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होता है ....होना चाहिए ...या ..जिंदगी हर वक्त लिए एक छड़ी होती है ...होना चाहिए |
३- इसी प्रकार ..काव्य- विषय का --काल-कथानक का समय (टेंस ), विषय-भाव ( सब्जेक्ट-थीम ), भाव (सब्सटेंस), व विषय क्रमिकता, तार्किकता , एतिहासिक तथ्यों की सत्यता, विश्व-मान्य सत्यों-तथ्यों-कथ्यों ( यूनीवर्सल ट्रुथ ) का ध्यान रखा जाना चाहिए....बस .....|
४-- लंबी कविता में ...मूल कथानक, विषय -उद्देश्य , तथ्य व देश -काल ....एक ही रहने चाहिए ..बदलने नहीं चाहिए .....उसी मूल कथ्य व उद्देश्य को विभिन्न उदाहरणों व कथ्यों से परिपुष्ट करना एक भिन्न बात है ...जो विषय को स्पष्टता प्रदान करते हैं ....
-और सबसे बड़ा नियम यह है कि ...स्थापित, वरिष्ठ, महान, प्रात: स्मरणीय ...कवियों की सेकडों रचनाएँ ..बार बार पढना , मनन करना व उनके कला व भाव का अनुसरण करना .......उनके अनुभव व रचना पर ही बाद में आगे शास्त्रीय नियम बनते हैं......
1 टिप्पणी:
बस, प्रवाह बना रहे...
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