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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

कविता लेखन ....मूल प्रारंभिक रूप-भाव......ड़ा श्याम गुप्त....

                                        ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

        ब्लॉग जगत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति हेतु मुफ्त लेखन की सुविधा होने से अनेकानेक  ब्लॉग आरहे हैं एवं नए नए  व युवा कवि अपने आप  को प्रस्तुत कर रहे हैं ....हिन्दी व भाषा एवं  समाज के लिए गौरव और प्रगति-प्रवाह की बात है ......परन्तु इसके साथ ही यह भी प्रदर्शित होरहा है कि .....कविता में लय, गति , लिंगभेद, विषय भाव का गठन, तार्किकता, देश-काल, एतिहासिक तथ्यों की अनदेखी  आदि  की जारही है |  जिसके जो मन में आरहा है तुकबंदी किये जारहा है | जो काव्य-कला में गिरावट का कारण बन सकता है|
              यद्यपि कविता ह्रदय की भावाव्यक्ति है उसे सिखाया नहीं जा सकता ..परन्तु भाषा एवं व्याकरण व सम्बंधित विषय का उचित ज्ञान काव्य-कला को सम्पूर्णता प्रदान करता है |  शास्त्रीय-छांदस कविता में सभी छंदों के विशिष्ट नियम होते हैं अतः वह तो काफी बाद की व अनुभव -ज्ञान की बात है  परन्तु प्रत्येक नव व युवा कवि को कविता के बारे में कुछ सामान्य ज्ञान की छोटी छोटी मूल बातें तो आनी  ही चाहिए |   कुछ  सहज सामान्य प्रारंभिक बिंदु  नीचे दिए जा रहे हैं, शायद नवान्तुकों व अन्य जिज्ञासुओं के लिए सार्थक हो सकें ....
(अ) -अतुकांत कविता में- यद्यपि तुकांत या अन्त्यानुप्रास नहीं होता परन्तु उचित गति, यति  व लय अवश्य होना चाहिए...यूंही कहानी या कथा की भांति नहीं होना चाहिए.....वही शब्द या शब्द-समूह बार बार आने से सौंदर्य नष्ट होता है....यथा ..निरालाजी की प्रसिद्ध कविता.....
"अबे सुन बे गुलाव ,
भूल  मत गर पाई, खुशबू रंगो-आब;
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा -
कैपीटलिस्ट ||"

(ब )- तुकांत कविता/ गीत आदि  में--जिनके अंत में प्रत्येक पंक्ति  या पंक्ति युगल आदि में (छंदीय गति के अनुसार)  तुक या अन्त्यानुप्रास समान होता है...
-- मात्रा -- तुकांत कविता की प्रत्येक पंक्ति में सामान मात्राएँ होनी चाहिए मुख्य प्रारंभिक वाक्यांश, प्रथम  पंक्ति ( मुखडा ) की मात्राएँ गिन कर  उतनी ही सामान मात्राएँ प्रत्येक पंक्ति में रखी जानी चाहिए....यथा ..

 "कर्म      प्रधान      जगत      में    जग   में,  =१६ मात्राएँ 
 (२+१ , १+२+१ ,  १+१+१ ,  २ ,  १+१ , २  =१६)
  प्रथम       पूज्य    हे     सिद्धि     विनायक  |  = १६.
(१+१ +१,  २+१,    २ ,   २+१ ,     १+२+१+१   =१६ )

  कृपा       करो       हे       बुद्धि      विधाता ,         = १६ 
(१+२ ,   १+२ ,     २ ,      २+१     १ +२ +२     =१६  )

 रिद्धि       सिद्धि      दाता         गणनायक ||   =  १६
(२+१,      २+१ ,     २+२ ,       १+१+२+१+१  =१६ )

-लिंग ( स्त्रीलिंग-पुल्लिंग )---कर्ता व कर्मानुसार.....उसके अनुसार उसी  लिंग का प्रयोग हो.... यथा ....
       " जीवन  हर वक्त लिए एक छड़ी होती  है "  ----यहाँ  क्रिया -लिए ..कर्ता  जीवन का व्यापार   है..न कि छड़ी  का  जो समझ कर  'होती है '  लिखा गया ----अतः या तो ....जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होता है ....होना चाहिए ...या  ..जिंदगी  हर वक्त लिए एक छड़ी होती है ...होना चाहिए |
- इसी प्रकार ..काव्य- विषय का --काल-कथानक का समय  (टेंस ), विषय-भाव ( सब्जेक्ट-थीम ), भाव (सब्सटेंस), व  विषय क्रमिकता,  तार्किकता , एतिहासिक तथ्यों की सत्यता,  विश्व-मान्य सत्यों-तथ्यों-कथ्यों  ( यूनीवर्सल ट्रुथ ) का ध्यान रखा जाना चाहिए....बस .....|
४-- लंबी कविता में ...मूल कथानक, विषय -उद्देश्य , तथ्य व देश -काल  ....एक ही रहने चाहिए ..बदलने नहीं चाहिए .....उसी मूल कथ्य व उद्देश्य को विभिन्न उदाहरणों व कथ्यों से परिपुष्ट करना एक भिन्न बात है ...जो विषय को स्पष्टता प्रदान करते  हैं  ....

                           -और सबसे बड़ा नियम यह है कि ...स्थापित, वरिष्ठ, महान, प्रात: स्मरणीय ...कवियों की सेकडों  रचनाएँ  ..बार बार पढना , मनन करना  व उनके कला व भाव का अनुसरण करना .......उनके अनुभव व रचना पर ही बाद में आगे शास्त्रीय नियम बनते हैं......








   

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बस, प्रवाह बना रहे...