...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
भरी उमस में ....
आओ आज लगाएं घावों पर,
गीतों के मरहम ||
मन में है तेज़ाब भरा पर,
गीतों का भी डेरा |
मेरे गीतों में तल्खी है,
दोष नहीं है मेरा |
मेरा अपना काव्य बोध,
अपनी दायित्व ठसक है |
मेरी अपनी ताल औ धुन है,
अपनी सोच समझ है |
भरी उमस में कैसे गायें ,
प्रेम प्रीति प्रियतम |
आओ आज लगाएं घावों पर,
गीतों के मरहम ||
जो कुछ देखा वही कहा है,
कल्पित भाव नहीं है |
जो कुछ मिला वही लौटाता ,
कुछ भी नया नहीं है |
हमको थी उम्मीद खिलेंगे,
इन बगियों वे फूल |
किन्तु हर जगह उगे हुए हैं,
कांटे और बबूल |
टूट चुके हैं आज समय की,
साँसों के दमखम |
आओ आज लगाएं घावों पर,
गीतों के मरहम ||
भरी उमस में ....
आओ आज लगाएं घावों पर,
गीतों के मरहम ||
मन में है तेज़ाब भरा पर,
गीतों का भी डेरा |
मेरे गीतों में तल्खी है,
दोष नहीं है मेरा |
मेरा अपना काव्य बोध,
अपनी दायित्व ठसक है |
मेरी अपनी ताल औ धुन है,
अपनी सोच समझ है |
भरी उमस में कैसे गायें ,
प्रेम प्रीति प्रियतम |
आओ आज लगाएं घावों पर,
गीतों के मरहम ||
जो कुछ देखा वही कहा है,
कल्पित भाव नहीं है |
जो कुछ मिला वही लौटाता ,
कुछ भी नया नहीं है |
हमको थी उम्मीद खिलेंगे,
इन बगियों वे फूल |
किन्तु हर जगह उगे हुए हैं,
कांटे और बबूल |
टूट चुके हैं आज समय की,
साँसों के दमखम |
आओ आज लगाएं घावों पर,
गीतों के मरहम ||
6 टिप्पणियां:
गीत मधुर हैं, जख्म भरेंगे।
आओ आज लगाएं घावों पर,
गीतों के मरहम ||
....जीवन के कठिन राह को आसान राह दिखाती सुन्दर रचना
धन्यवाद ..पांडे जी व कविता जी ...
मन में तेजाब न हो , कान्हा जी हों ,तो मरहम की ज़रुरत ही न पड़े :)
---सही कहा शिल्पा जी...धन्यवाद ..पर घाव तो कान्हा जी को भी मिले थे ....जिन्हें उन्होंने संसार/समाज की सेवा रूपी मरहम से संजोया था....घाव तो संसार-व्यबहार में सभी को मिलते ही हैं ..मन में तेज़ाब भी उत्पन्न होता है ...मन मन है न वायवीय तत्व ..उड़ता है ...परन्तु हाँ यदि मन में कान्हा जी रहें ...तो तेज़ाब को समता भाव...सेवा भाव से ...गीतों से मरहम बनाकर समापन किया जा सकता है... ..
सुंदर अभिव्यक्ति सर ,
समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर बहुत दिन से मेरी पोस्ट पर आपका आगमन नहीं हुआ है। आपका आना और आपकी द्वारा दी हुई मत्वपूर्ण टिप्पणी मुझे लिखने का होंसला देती है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
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