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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

छिद्रान्वेषण ----सजाये मौत और अल्पसंख्यक आयोग ..व गद्दाफी की ह्त्या ...डा श्याम गुप्त


                                               ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
  १-सजाये मौत ----                  अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री हबीबुल्लाह का कथन है कि वे सजाये मौत के विरुद्ध हैं , वे उसे बर्बर युग की याद बताते हैं , वे स्वयं को बौद्ध बताते हुए वे खून्ख्खार , दुर्दम्य , ह्त्या जैसे कृत्यों के अपराधियों ,  आतंकवादियों को भी सजा के खिलाफ हैं |  मेरी समझ में नहीं आता कैसे कैसे  लोगों को आयोगों का अध्यक्ष बना दिया जाता है | जो स्वयं अल्पसंख्यक समाज से है वह तो उन्हीं के गुण गायेगा | उसे तो   आतंकवादियों में भी बौद्ध व मुस्लिम ही  नज़र आएंगे | उन्हें इन आतंकवादियों की बर्बरता संज्ञान में नहीं आती ? यदि समाज में बर्बरता का कृत्य किया जाएगा तो अपराधी के साथ भी बर्बरता होगी ही | यह सब आतंकवादियों व मुस्लिम- अपराधियों के संरक्षण का अग्रिम प्रयास है | क्या अभीतक उन्होंने कभी सजाये मौत के विरुद्ध अभियान चलाया ? अचानक अब यह सब कैसे याद आने लगा ?
                      शास्त्रों का कथन है कि  " शठे शाठ्यं समाचरेत "   एवं  साम दाम विभेद व दंड ..जो चार नीतियां है व्यष्टि व समष्टि  के अपराधों को रोकने की ...उनमें दंड एक प्रमुख नीति है .. जो दुर्दम्य व इस प्रकार के आपराधिक कृत्यों के विरुद्ध करनी चाहिए | परन्तु हबीबुल्ला जी को क्या पता शास्त्रीय तथ्य ...
                    जहां तक बौद्ध धर्म का सवाल है ...प्रसंगवश यह भी बता दिया जाय कि इसी भ्रमात्मक अहिंसा नीति के कारण बौद्ध धर्म विश्व से तिरोहित हुआ | अहिंसा जैसे दैवीय सद्गुण की किस प्रकार विकृति होती है ? बौद्ध व जैन धर्म वालों ने शास्त्रीय वाक्य के प्रथम भाग "अहिंसा परमो धर्म "  को तो अपना लिया परन्तु द्वितीय भाग  " धर्म हिंसा तथैव च .."  को भुला दिया | अर्थात धर्मार्थ ( राज्य, क़ानून, न्याय, सामाजिक के  व्यापक हित ) की गयी हिंसा , हिंसा नहीं होती अपितु आवश्यक होती है |
                   इसी भ्रामक अहिंसा वृत्ति के कारण --- जब मुसलिम आक्रमणकारियों ने गांधार (कंधार) और सिंध पर आक्रमण किया तब जनता ने अपने को 'बौद्घ' कहकर युद्घ करने से इनकार किया। मुहम्मद-बिन-कासिम ने सब प्रदेश जीता। राजा दाहिर को बंदी बनाकर मार डाला और भीषण नरसंहार किया। इस पाप की दोषी तो वहां की बौद्घ जनता थी, जो अहिंसा व्रत के कारण युद्घ से विरत रही एवं   जनता ने वीर व लोकप्रिय सम्राट का साथ देने से इनकार कर दिया |   अन्य  उदाहरण भारत की पश्चिमी सीमा पर हुए इसलामी आक्रमणों की कहानियां हैं |
         संसार के इतिहास में अनेक बार बर्बर व्यक्तियों व जातियों ने अपने से सभ्य लोगों का विनाश कर डाला।  मूलतः बर्बर मुसलिम आक्रमण ही बौद्घ मत के समूल उच्छेद का कारण बने।'
                       
                      क्या हम, हमारी सरकार , हबीबुल्लाह कुछ सबक लेंगे |

 २- गद्दाफी की ह्त्या-- कौन नहीं जानता कि लीबिया के शासक कर्नल मोहम्मद उमर गद्दाफी ने सत्ता में आते ही  तेल की सभी विदेशी कंपनियों को निकाल बाहर किया था जो देश का धन लूट कर बाहर लेजाती थीं एवं देश को अत्यधिक हानि सहनी पड रही थी | इससे कुछ वर्षों में ही लीबिया की अर्थ व्यवस्था तेजी से उन्नति की ओर अग्रसर हुई | इसीलिये गद्दाफी अमेरिका व योरोपीय शासकों की आँखों की किरकिरी बने हुए थे | यह राजनैतिक- कूटनीतिक चाल व राजनैतिक ह्त्या थी, जिसमें देश के ही कुछ विरोधी समूह दुश्मनों से मिल जाते हैं इसीलिये सुनियोजित योजनानुसार पहले शासक को अत्याचारी, विलासी आदि प्रचारित किया जाता है फिर उसकी ह्त्या करने के षडयंत्र ताकि अपनी कठपुतली सरकार बना कर अपना उल्लू सीधा किया जा सके |

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