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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

तमसो मा ज्योतिर्गमय.....& Let the lamps light ....डा श्याम गुप्त ...

                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

कह  सकते हैं दीप व्यर्थ ही,
रात रात भर जलता रहता |
तम को  कौन मिटा पाया है,
निष्फल यत्न सदा वह करता||

वह चहुँ ओर करे उजियारा ,
अपने नीचे झाँक न पाता |
चारों  ओर  उजाला फैले,
तम, दीपक तल प्रश्रय पाता ||

अंधकार को देख मनुज को,
हो न निराशा , थके न जीवन |
जब तक नव-प्रभात रवि लाये |
दीपक जलता, रुके न जीवन ||

तम से ज्योति-भाव हित चलना,
कर्म - व्यवस्था  है जीवन की |
इसीलिये  जलते  हैं  दीपक,
यही व्यवस्था, ज्योति व  तम की ||

तम का  अर्थ, मृत्यु या निद्रा,
भोर  व जीवन है उजियारा |
इसीलिये  तो उजियारे  से ,
सदा  हारता  है  अंधियारा ||

तिल-तिल करके जलता दीपक ,
अंधकार  से लडता  जाता |
पैरों तले दबा कर तम को,
जीवन की राहें दिखलाता ||






Let the lamps ignite..


Let the lamps light ,
Life comes to be bright .
Let the candles of hope,
Happiness & harmony ignite.

Think of me my dear,
When you light a light.
Think of me my dear,
When you pray in the night.

The darkness of your heart,
The loneliness of the dark.
In the wilderness of thoughts,
Let  the  hope  spark.

Here comes the dawn of hope,
  To do away this night.
 Let the lamps light,
 Life comes to be bright.





1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबके मन की ज्योति जले।