....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ.
१.
कैसे प्रभु सुनिपाऊँ तेरा पग संचार |
जदपि बसे हो कण कण में बन निराकार साकार | ....
मैं मूरख अज्ञानी लिपटा माया के संसार |
बिना प्रभु कृपा कैसे जानूं जग में सार असार |
बने मोह ममता के बंधन जीवन के आधार |
बिनु गुरु कृपा मिलै नहीं जग में हरि की कृपा अपार |
श्याम' बिना हरि कृपा मिले कब सच्चे गुरु का द्वार |
प्रभू कृपा गुरु मिलै मिलावें परम ब्रह्म साकार ||
२.
प्रणव ही है जग का आधार |
ॐ ही है ध्वनि नाद-अनाहत, भुवन आदि आधार |
शब्द ब्रह्म है, आदि नाद है, वीणा स्वर झंकार |
शब्द ही माया, शब्द ही ईश्वर, शब्द प्रकृति संसार |
वही कृष्ण की वंशी धुनि है, रघुवर धनु टंकार |
डमरू बन शिव के कर बाजे, गर्जन मेघ मल्हार |
श्याम' परात्पर सदाधार सत, वाणी स्वर का सार ||
१.
कैसे प्रभु सुनिपाऊँ तेरा पग संचार |
जदपि बसे हो कण कण में बन निराकार साकार | ....
मैं मूरख अज्ञानी लिपटा माया के संसार |
बिना प्रभु कृपा कैसे जानूं जग में सार असार |
बने मोह ममता के बंधन जीवन के आधार |
बिनु गुरु कृपा मिलै नहीं जग में हरि की कृपा अपार |
श्याम' बिना हरि कृपा मिले कब सच्चे गुरु का द्वार |
प्रभू कृपा गुरु मिलै मिलावें परम ब्रह्म साकार ||
२.
प्रणव ही है जग का आधार |
ॐ ही है ध्वनि नाद-अनाहत, भुवन आदि आधार |
शब्द ब्रह्म है, आदि नाद है, वीणा स्वर झंकार |
शब्द ही माया, शब्द ही ईश्वर, शब्द प्रकृति संसार |
वही कृष्ण की वंशी धुनि है, रघुवर धनु टंकार |
डमरू बन शिव के कर बाजे, गर्जन मेघ मल्हार |
श्याम' परात्पर सदाधार सत, वाणी स्वर का सार ||
1 टिप्पणी:
शब्द रहेगा लब्ध अन्त में।
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