....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
               
विजानाति-विजानाति-----मनन...
                 छान्दोग्य उपनिषद में कथन है---
    ""यदा वै मनुत, अथ विजानाति। नामत्वा विजानाति। मत्वैव विजानाति । मतिस त्येव विजिग्यासितव्येति ।मतिं भगवो विजिग्यासे इति॥""
          ---व्यक्ति  जब मनन करता है तभी ( किसी वस्तु-भाव का) ग्यान होता है ; मनन किये  विना नहीं जान सकता। अत: मनन को जानने की इच्छा करें कि भगवन, मैं मनन को  जानना चाहता  हूं ।
      ---किसी वस्तु की वास्तविकता व गहराई जानने हेतु उसमें डुबकी लगाना आवश्यक होता है। मनन क्या है यह भी ठीक प्रकार से जानना चाहिये।  
      ----मनन --मानव का विशिष्ट गुण है इसीलिये वह मानव कहलाता है ।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
3 टिप्पणियां:
सार्थक विचार ...
बिना मनन के विकास संभव नहीं है।
@---मनन --मानव का विशिष्ट गुण है इसीलिये वह मानव कहलाता है ।
बिना मनन के जीवन व्यर्थ है।
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