....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
                     आखिर कब तक सब  जानबूझकर  आँखें बंद रखेंगे  .............और क्यों ?
कब तक बंद रखेंगे,
अखियों के झरोखों को ||
इन नैन झरोखों से ,
जो छन कर आती है ;
वो हवा सभी के मन को -
तन को भरमाती है ।।
कब तक मन से तन से ,
खेलेंगे आँख-मिचौली|
फिर सम्मुख खुली पवन हो,
रोकें क्यों झोंकों को॥
कब तक बंद रखेंगे,
अखियों के झरोखों को ||
इन नैन झरोखों से ,
जो छन कर आती है ;
वो हवा सभी के मन को -
तन को भरमाती है ।।
कब तक मन से तन से ,
खेलेंगे आँख-मिचौली|
फिर सम्मुख खुली पवन हो,
रोकें क्यों झोंकों को॥
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
2 टिप्पणियां:
Bahut achhee rachana hai..!
Naya saal mubarak ho!
धन्यवाद क्षमाजी....शुभ नववर्ष....
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