....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
’ इन्द्रधनुष’ ------ स्त्री-पुरुष विमर्श पर एक नवीन दृष्टि प्रदायक उपन्यास (शीघ्र प्रकाश्य ....)....पिछले अंक चार से क्रमश:......
’ इन्द्रधनुष’ ------ स्त्री-पुरुष विमर्श पर एक नवीन दृष्टि प्रदायक उपन्यास (शीघ्र प्रकाश्य ....)....पिछले अंक चार से क्रमश:......
अंक पांच
'कालिज डे' मनाया जाना था । सुमित्रा लगभग दौड़ते हुए आई । 'कृष्ण ! एक गीत बनाना है और गाना भी पडेगा । मैं नृत्य में अपना नाम दे रही हूँ । कब दोगे ।'
'परन्तु मैं चिकित्सा विषय पर सेमीनार के लिए अपना आर्टीकल तैयार कर रहा हूँ ।' मैंने असमर्थता जताने का प्रयत्न किया ।
'वह तो तुम कर ही लोगे । कौन सा नवीन रिसर्च करके लिखोगे । इस स्टेज पर तो सभी विशेषज्ञ-व्याख्यान व लेख इधर-उधर से जोड़ तोड़ के ही लिखे जाते हैं । चिकित्सा विषयों पर अपना ओरिजिनल पेपर लिखने में तो ज़िंदगी भर का अनुभव चाहिए ।'
मैंने उसे घूर कर देखा, फिर कहा, ' पर मुझे गाना कहाँ आता है ?'
'मैं रिहर्सल करा दूंगी । गीत बनाते हो तो गा भी सकते हो.... चलेगा ।'
'किसी अच्छे गाने वाले को क्यों नहीं लेती?' मैंने सुझाया ।
' नहीं, अधिक लोगों को मुंह लगाना ठीक नहीं । सब तुम्हारे जैसे सुलझे हुए थोड़े ही होते हैं । कौन सी शास्त्रीय प्रतियोगिता है, जो गाओगे चलेगा ।' वह सिर हिलाकर मुस्कुराई ।
' इस सुलझन में ही तो मैं उलझ कर रह गया हूँ ।' मैं भी मुस्कुराया ।
" शट अप । ", शाम को गीत लाकर दो। कल रिहर्सल है, तैयार होके आना। देखूं कैसे सर्वगुण संपन्न बनते हो।'
' मुझसे तो अच्छे द्वापर के कन्हैया ही थे । कम से कम गोपियों के साथ रास तो रचा लेते थे ।'
" क्या मैंने कभी मना किया है गोपियों के साथ रास रचाने को ?", वह पलट कर कहने लगी, ' और रास !... हूँ .... शास्त्रों के ज्ञाता होने का दम भरते हो । ये बार बार भटकने-भटकाने का स्वांग क्यों रचते हो, मैं सब समझती हूँ । क्या ये प्रोग्राम 'रास' नहीं होगा ? आखिर रास क्या था। किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया गया सामूहिक क्रिया-कलाप, जिसे रसमयता का रूप देदिया जाय । राधाकृष्ण का रास भी तत्कालीन नारी को समाज सेवा के लिए प्रतिबद्ध करके, पुरुषों में उत्साहवर्धन, अत्याचारी शासन के विरुद्ध खडा करने की मंत्रणाएं , सामाजिक उत्थान की मंत्रणाएं, गुप्त बैठकें , आम सभाएं आदि था । क्या ये सब भी तुम्हें, केजी को, बताना पडेगा ?"
' वाह ! तो बताओ उस काल में भी आखिर राधा अर्थात एक नारी, इतनी एडवांस कैसे होगई, तथा राधा के चरित्र की क्या अर्थवत्ता है ?'
" दैट्स इट ", 'तो ये चल रहा है खुराफाती मस्तिष्क में ।' वह हंसकर कहने लगी, 'वास्तव में भारत में नारी सदैव स्वतंत्र सत्ता रूप रही है । परन्तु समय के साथ उस स्वतन्त्रता पर अज्ञानता की धूलि जम गयी फलस्वरूप नारी को पुरुष के बंधन में रखे जाने की साज़िश रची जाने लगी थी । अतः वैदिक युग के पश्चात आई सामाजिक जड़ता की प्रतिक्रया थी, राधा व राधाकृष्ण का प्रेम । तत्कालीन नारी को जड़ता, अज्ञानता, अकर्मण्यता, सामाजिक कर्तव्यहीनता व दौर्वल्य की परिधि से बाहर निकालने का अभिकल्प था, उपादान था राधा का चरित्र । श्री कृष्ण जैसे बलशाली, बुद्दिमान, चतुर, नीतिज्ञ, विद्वान् व समाज सुधार के लिए नव व पुरा विचारों में संतुलन रखने वाले मित्र का साथ व नेतृत्व पाकर वह जननेत्री व स्त्रियों की सामाजिक चेतना तथा स्वतंत्रता का बोधक हुई । जो तत्पश्चात प्रेम व त्याग-तप की उच्चतम स्थिति में पहुँचने के कारण जन- जन की पूज्य व आराध्य देवी रूपा हुई । यही राधा के चरित्र की अर्थवत्ता है ।"
मैं मुस्कुराने लगा तो सुमि कहने लगी, ' होगया.... अब चलूँ ? '
' जय हो राधारानी की, प्रस्थान करें ।' मैंने हंसते हुए हाथ जोड़कर कहा ।
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रिहर्सल पर मैंने अपना पार्ट सुनाया -----
" तुम श्यामल-घन, तुम चंचल मन,
तुम जीवन हो , तुमसे जीवन ।
प्रीति भी तुम हो, रीति भी तुम हो,
तुम श्यामल-तन, तुम जीवन-धन ।
तेरी प्रीति की रीति पै मितवा,
मैं गाऊँ , मैं बलि-बलि जाऊं ।। "
सुमि ने अपना पार्ट गाकर सुनाया -----
" तेरे गीतों की सरगम पर,
मस्त मगन मैं नाचूं गाऊँ ।
तेरी वीणा की लहरी पर,
बनी मोहिनी मैं लहराऊँ ।
तेरी प्रीति की रीति पै मितवा ,
बलहारी मैं बलि-बलि जाऊं । "
सुमित्रा ने कई बार गाकर - नृत्य करके बताया, समझाया । डांस, स्लो, मध्यम फिर द्रुत रिदम में करूंगी, फिर मद्धम में । अंतरा को दो-दो बार रिपीट करना है,...आदि...आदि ।
कार्यक्रम काफी सफल रहा । सुमि तुनक कर बोली, ' बड़े खराब हो केजी ! सीखने का नाटक करते रहे, बहुत अच्छा गा लेते हो । लगता था जैसे पैरों को पंख लग गए हों । आज मैं बहुत बहुत बहुत खुश हूँ ।'
' नृत्यांगना और नृत्य दोनों ही 'सुपर्व' हों तो संगीत फूट ही पड़ता है, गूंगे मन में भी ।', मैंने हंसकर कहा ।
' गूंगे, और केजी ? ' क्या गुड़ की मिठास बता नहीं पारहे हो ?... खैर, प्रशंसा का तुम्हारा निराला अंदाज़, अच्छा है । वह खिल खिला कर हंसी, फिर अचानक चुप होकर बोली , ' अच्छा, ये -श्यामल घन और श्यामल तन- से क्या अभिप्राय है तुम्हारा ? मैं सांवली हूँ तो मेरा मज़ाक तो नहीं बना रहे थे कहीं ।' वह मुस्कुराते हुए घूर कर कहती गयी।
नहीं जी, श्याम सखी द्रौपदी, अप्रतिम सुन्दरी, भी सांवली ही थी ।
मुझे द्रोपदी कह रहे हो ?
नहीं, अप्रतिम सुन्दरी...... हे श्यामान्गिनि ! मैं हंसते हुए बोला ।
खींच लो....खींच लो....। आज सब माफ़ है तुम्हें । मैं आज बहुत अच्छे मूड में हूँ ।
' पर क्या द्रोपदी के बारे में कोई भ्रांत धारणा ?।'
नहीं, के जी जी, तुम्हारी तो लगभग हर बात ही सटीक लगती है । मैं तो खुद को भी द्रौपदी कहती हूँ ।
मेरे भी पांच पति हैं ...वह अनायास ही कह गयी ।
मैंने आश्चर्य से उसे देखा तो कहने लगी, 'पति क्या है ? जो पत रखे...पतन से बचाए....मान रखे...सम्मान दिलाये....।' वह मुस्कुराकर बोली, ' शास्त्र बचन है---- " रक्ष्यते सख्यते पतनात स पति: ...।"
किस शास्त्र का है ?, मैं पूछने लगा ।
'मेरे शास्त्र का ।' वह खिलखिलाई ।
'तब ठीक है। और पांच पति ?' मैंने प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा ।
जो पतन से बचाएं । 'शास्त्र व माता-पिता की शिक्षा एवं संस्कार, मेरी अपनी सामयिक शिक्षा-दीक्षा व संस्कार, मेरा चरित्र व आचरण, रमेश और.....र.र. ...तुम .....।'
मैं अवाक ......देखता रह गया ।
' चकरा गए न ज्ञानी-ध्यानी.......? ' वह खिलखिलाकर हंसी, फिर भाग खड़ी हुई ।
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" डा कृष्ण गोपाल जी आपकी वह कहानी पढी, जिसमें एक प्रसंग में है कि मेढक के दो दिल, किसी के दो स्टमक ( आमाशय--खाने की थैली ) , एक बार एक बढे मेंढक के पेट में अन्य छोटा मेंढक था एक दम श्वेत त्वचा वाला जो शायद आमाशय के एच सी एल अम्ल में घुल गयी थी । क्या ये सब सच घटनाएँ हैं ? हमें तो कभी नहीं मिला ।
' कहानी तो कल्पना ही होती है ।' मैंने बताया ।
' अरे नहीं, डाक्टर साहिबा जी, यह सच बात है ।' राकेश ने पीछे से आकर नमस्कार करते हुए डा .वीना को बताया । 'मैं डा कृष्ण जी का इंटर का क्लास-फेलो हूँ और मेरे सामने की ही ये बातें हैं । शायद ' स्पेशिमेंन' स्कूल की लैब में रखे भी हों । ये आपको टरका रहे हें ।'
' ओ पंछी ! इतनी हिम्मत । दो लोगों की बातें सुनते हो ? बुरी बात, निगाहें कमीज़ के तीसरे बटन पर .....' वीना मेरी तरफ देखकर मुस्कुराती हुई बोली ।
' पर बुजुर्गों की बातें तो बच्चे सुन कर ही सीखेंगे ..।' राकेश पूरी तरह से साष्टांग दंडवत की मुद्रा में वीना के कदमों में झुकता हुआ बोला । वह घबराकर दो कदम पीछे हट गयी ।
' राकेश, यार ! तुम तो बड़े सीधे साधे लडके थे, बड़े स्मार्ट होगये हो । तुम्हारे तो पर निकलने लगे हैं, अभी से ।' मैंने हंसते हुए पीठ पर धौल जमाते हुए कहा ।
' पंछी जो ठहरा, वो भी किस का खास ।' सुमित्रा निकट आते हुए बोली, 'तो तुम केजी के ख़ास क्लास-फेलो हो , इंटर के । इस वर्ष सिलेक्ट हुए हो ?'
' जी हाँ, ये तो कुछ जल्दी ही साथ छोड़ कर चले आये ।'
'अच्छी आदत है, बहुत काम आती है।', सुमि वीना के साथ जाते हुए बोली, 'शाबाश, रौब में मत आना।"
' जलवे हैं यार तुम्हारे तो, केजी ! क्या नाम है और क्या गहराई है कथन में ? राकेश पूछने लगा ।
" त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति .......... । "
' टाल रहे हो ।'
' चलो चलो, ज्यादा दिमाग न खपाओ । पढ़ने में लगो, डिसेक्टर का दूसरा पेज कल रटकर सुनाना ।'
' ओ के बॉस ।' राकेश सेल्यूट ठोक कर हंसते हुए चलने लगा, फिर लौट कर बोला , ' शाम को पिक्चर चलें, ब्लो हॉट ब्लो कोल्ड, इम्पीरियल में ।'
यूं फूल ! तभी उन्हीं लोगों से पैसे क्यों नहीं मांगे ? इन्फोर्मेशन भी देते हो वो भी फ्री । दौड़कर जाओ और दो टिकट के मांग कर लाना ।
-----अंक पांच समाप्त ...क्रमश: अंक छह ..अगली पोस्ट में .....
2 टिप्पणियां:
प्रेम को सम्पूर्णता से व्यक्त करता अद्भुत गीत..
धन्यवाद पान्डे जी...प्रेम तो होता ही है स्वयं में सम्पूर्ण.....व्यक्ति को स्वयं को पूर्णता की ओर लेजाना होता है...
----सच कहा, अभिव्यक्ति भी आवश्यक है ...चाहे गीत द्वारा या कविता-कहानी द्वारा...आखिर मन ही तो है...
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