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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 8 मार्च 2012

पिचकारी के तीर ...

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
 
     पिचकारी के तीर  

गोरे गोरे अंग पै, चटख चढि गये रंग,
रंगीले आंचर उडैं, जैसें नवल पतंग

चेहरे सारे पुत गयेचढे सयाने रंग,
समझ कछू आवै नहीं, को सजनी को कंत

लाल  हरे  पीले रंगेरंगे   अंग - प्रत्यंग ,
कज़्ज़ल-गिरि सी कामिनी, चढौ कोऊ रंग।

चन्चुमुखी पिचकारि ते, वे छोडें रंग धार,
वे घूंघट की ओट ते , करें नैन के वार ।

लकुटि लिये सखियां खडीं, बदला आज चुकायं,
सुधि-बुधि भूलीं श्याम जब ले पिचकारी धायं ।

आज न मुरलीधर बचें, राधा मन मुसुकायं,
दौडी सुधि बुधि भूलकर, मुरली दयी बजाय ।

भये लज़ीले श्याम  दोऊ, गोरे गाल गुलाल,
गाल गुलाबी होगये, भयो गुलाल रंग लाल ।

होली खेली लाल नै, उडे अबीर गुलाल,
सुर,मुनि,ब्रह्मा,विष्णु,शिव,तीनों लोक निहाल।

भरि पिचकारी सखी पर, वे रंग बान चलायं,
लौटें नैनन बान भय, स्वयं सखा रंगि जायं

भ्रकुटि तानि बरजै सुमुखि, मन ही मन ललचाय,
पिचकारी ते श्याम की, तन मन सब रंगि जाय

भक्ति ग्यान प्रेम की, मन में उठै तरंग,
कर्म भरी पिचकारि ते, रस भीजै अंग-अंग

एसी  होली  खेलिये, जरै त्रिविधि संताप,
परमानन्द प्रतीति हो, ह्रदय बसें प्रभु आप

यह वर मुझको दीजिये, चतुर राधिका सोय,
होरी खेलत श्याम संग, दर्शन श्याम को होय ॥

3 टिप्‍पणियां:

मदन शर्मा ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ....होली एवं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं जी आपको

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
होली का पर्व आपको मंगलमय हो!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद शर्माजी ...आपको भी शुभ कामनायें....
धन्यवाद शास्त्रीजी......शुभकामनायें