....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
जो बोले सो कुंडी खोले ...एक नाटिका ...डा श्याम गुप्त
( नगर की एक सामाजिक संस्था की शाखा सभा की एक साधारण बैठक ....)
दृश्य -एक
सत्येन्द्र जी ( फोन पर)--हेलो रमेश जी ! आज शाखा सभा की बैठक है, इन्ज. रवि जी के यहाँ, चलेंगे ?
रमेश जी -- हाँ ..हाँ ..चलेंगे, रमेश जी ने तो डिनर भी रखा है । जायेंगे...जायेंगे ..।
दृश्य दो
( समय--सायं चार बजे....दिन ..रविवार...स्थान -इंजी. रवि जी का निवास ... इंजी. रवि गेट पर सब का अभिवादन -स्वागत कररहे हैं ।)
आइये आइये डाक्टर साहब..पधारें ।
आइये वकील साहब...ओहो, नगेन्द्र जी आइये...भाभीजी नमस्कार ....नमस्कार सुधीर जी ..अरे अनिल जी ....आइये अन्दर चलें । आइये जज साहब ..नमस्कार ।
सब लोग अन्दर चलकर सोफों व कुर्सियों पर बैठते हैं। महिलायें एक तरफ बैठी महिलाओं के ग्रुप में चली जाती हैं और बातें करने लगती हैं । अध्यक्ष जी व मंत्री अपना स्थान ग्रहण करते हैं ।
बिमल जी ---समय तो काफी होगया । अभी कम लोग ही आये हैं ।
प्रकाश जी ---अरे यहाँ तो फिर भी काफी लोग आगये । चूड़ी वाले किशोर जी के यहाँ तो लगभग कोई पहुंचा ही नहीं । मुश्किल से किया हुआ इंतज़ाम भी काफी बेकार गया ।
कुछ लोग एक साथ---- अरे जिनको आना था आ चुके...कार्यवाही आरम्भ की जाय ।
मंत्री जी---पहले ईश-प्रार्थना ....
सब गाते हैं .....वह शक्ति .......।
प्रार्थना समाप्त होने पर मंत्री पूर्व बैठक की कार्यवाही पढ़ते हैं । सदस्य गण बातें करते रहते हैं ।
मंत्री जी---किसी को इसमें कोई कमी, शंका, समाधान हो तो बताएं । अन्यथा यह पारित समझा जाय ।
सब-- हाँ ...पारित है...पारित है...।
अनिल जी --- ( नए सदस्य हैं दो माह पहले ही यहाँ ट्रांसफर होकर आये हैं ) एक विशेष विचार बिंदु रखना चाहता हूँ ।
सब--हाँ हाँ ...।
अनिल जी---अब तक की बैठकों में मैंने अनुभव किया है कि यहाँ के स्थानीय निवासी, व्यापारी वर्ग व अन्य वर्ग आदि कभी बैठक में नहीं आता । इसका क्या कारण है ? क्या उपस्थिति बढाने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया जा सकता, जिससे सभी वर्ग का सहयोग प्राप्त हो ?
मंत्री---यह प्रश्न कई बार उठ चुका है तथा बहुत बहस भी होचुकी है । हम किसी को जबरदस्ती तो ला नहीं सकते ।
अनिल--- पर कोई कारण तो होगा ।
कुछ सदस्य ---कोई कारण नहीं, जिन्हें नहीं आना वे आयेंगे ही नहीं ।
श्रीनाथ जी---कारण क्यों नहीं है....मुख्य कारण तो यह है कि--एक तो बैठक के लिए एक निर्धारित निश्चित स्थान नहीं है । हर बार आधा समय तो बैठक के नए स्थान को ढूँढने में लग जाता है, इतने बढे शहर में और बैठक में आने का प्रयोजन ही समाप्त होजाता है । हमारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग सकुचाता है कि अपने घर बैठक कराएं तो अन्य लोगों जैसा नाश्ता-पानी कैसे कराया जाय । सभी तो इस योग्य नहीं हैं कि सभी को डिनर करा सकें ।
( आपका क्या विचार है ...अनिल जी की तरफ देखते हैं ।)
इंज.रवि---- ये तो कोई बात नहीं है । किसी ने एसा नहीं कहा।जिस पर जैसा है वैसा खिलाये ।
श्री नाथ जी व कुछ अन्य --- कोई कहता थोड़े ही है ..बस आना और भाग लेना बंद कर देते हैं । जब हम खिला नहीं सकते तो खाने क्यों जाँय।
अनिल जी-- अन्य कई शहरों की भाँति एक नियम बन जाय कि सभी के यहाँ सिर्फ एक नग बिस्कुट आदि व एक चाय के अलावा कुछ नहीं करना है । तो शायद सभी लोग अपने यहाँ बैठक कराने में संकोच नहीं करेंगे एवं भागीदारी भी निभायेंगे ।
प्रकाश जी--- और यदि एक जगह निश्चित होजाय एवं चाय आदि शाखा सभा के तरफ से ही हो तो शायद और अच्छा हो ।
मंत्री---- इतना अधिक धन कहाँ है शाखा के पास ।
कुछ सदस्य गण--- मासिक या वार्षिक चन्दा लिया जाय ।
मंत्री--चन्दा लेने कौन जाता है ?
अनिल-- पदाधिकारी किस लिए हैं ।
मंत्री, अध्यक्ष व इंजी. रवि---- भई अपने घर किसी को बुलाएं तो तो' एक चाय' क्या अच्छा लगेगा ।
अनिल-- भई बैठक का उद्देश्य समाज के काम और उन्नति पर विचार करना है । खाने थोड़े ही आते हैं ।
श्री नाथ जी --- कुछ लोग तो सदैव अंतिम समय पर ही आते हैं जैसे खाना ही उद्देश्य हो । अन्य बैठक आदि से कोई लेना-देना नहीं ।
( तभी वीरेन्द्र जी प्रवेश करते हैं, कुछ लोग अर्थपूर्ण हंसी हंसते हैं । )
श्रीनाथ -- ये देखिये सदैव की भाँति आख़िरी वक्त पर....।
विमल जी-- आखिर जन संपर्क करके कारण पता करने और उसके निवारण में क्या हर्ज़ है ।
मंत्री अध्यक्ष इंजी. रवि व रमेश जी ---बहुत बार कोशिश कर के देख चुके हैं । सब होचुका है, बार बार वही प्रश्न व बहस का कोई अर्थ नहीं है ।
विमल जी-- क्यों, बार बार कोशिश करने में क्या हर्ज़ है ? बार बार प्रयत्न से ही तो सफलता मिलती है ।
श्री नाथ जी-- मैं तो दस साल से देख रहा हूँ , कभी कुछ नया व जन संपर्क करने की कोशिश ही नहीं हुई । न हमारा महिला वर्ग ही कुछ नया कार्य या किसी बहस, विचार विमर्श में भाग लेता है । बस वही लोग सदा आते हैं और खा पीकर चल देते हैं ।
मंत्री--- सलाह देना आसान है। जो आगे आये, करके दिखाए ।
श्री नाथ जी --भई, तो फिर ये मासिक सभाएं, सामान्य सभाएं क्यों होती हैं । परामर्श कमेटी, विशिष्ट परामर्श कमेटी आदि क्यों बना रखे हैं। मंत्री अध्यक्ष को ही अपनी मर्जी चलानी है तो वे ही जो करते हैं करें..अन्य लोग क्यों आयें ।
विमल जी -- मंत्री अध्यक्ष तो सिर्फ कार्य करते हैं, फैसले तो सामान्य बैठक द्वारा लिए जाने चाहिए। विशेष सलाहकार व कार्यकारी समिति मिल कर कार्यक्रम तैयार करे।
अनिल जी -- महिला वर्ग से भी तो कोई परामर्श व विचार बिंदु या उदाहरण आना चाहिए ।
( महिलाओं की और उन्मुख होकर )
आप सब क्या सिर्फ बातें करने आते हैं । या बस सिर्फ वर्ष में एकाध बार २६ जन. आदि को खेल-कूद करने । आपके भी हर बिंदु पर विचार प्रस्तुत होने चाहिए। आप भी तो आगे आइये। महिला शक्ति का भी तो उचित उपयोग होना चाहिए।
( महिलायें चुपचाप मुस्कुराती रहती हैं )
मंत्री -- तो भैया, आप ये संभालो और करो । हम तो जैसा कर रहे हैं वैसा ठीक -ठाक ही चल रहा है ।
विमल जी -- अरे यह तो वही बात हुई , " जो बोले सो कुंडा खोले " इसलिए तो सब चुपचाप अपनी अपनी रजाइयों में सिकुड़कर बैठे हैं । जब न कोइ नया विचार, नई बात पर बहस करने, सुनने- मानने को तैयार ही नहीं है तो कौन समाज -बैठक आदि के पचड़े में पड़े । ये भी कम उपस्थिति होने का एक कारण है ।
इंजी. रवि -- चलिए ..चलिए ... डिनर तैयार है, कृपया चलें ।
( सब बातें करते हुए जाते हैं )
जो बोले सो कुंडी खोले ...एक नाटिका ...डा श्याम गुप्त
( नगर की एक सामाजिक संस्था की शाखा सभा की एक साधारण बैठक ....)
दृश्य -एक
सत्येन्द्र जी ( फोन पर)--हेलो रमेश जी ! आज शाखा सभा की बैठक है, इन्ज. रवि जी के यहाँ, चलेंगे ?
रमेश जी -- हाँ ..हाँ ..चलेंगे, रमेश जी ने तो डिनर भी रखा है । जायेंगे...जायेंगे ..।
दृश्य दो
( समय--सायं चार बजे....दिन ..रविवार...स्थान -इंजी. रवि जी का निवास ... इंजी. रवि गेट पर सब का अभिवादन -स्वागत कररहे हैं ।)
आइये आइये डाक्टर साहब..पधारें ।
आइये वकील साहब...ओहो, नगेन्द्र जी आइये...भाभीजी नमस्कार ....नमस्कार सुधीर जी ..अरे अनिल जी ....आइये अन्दर चलें । आइये जज साहब ..नमस्कार ।
सब लोग अन्दर चलकर सोफों व कुर्सियों पर बैठते हैं। महिलायें एक तरफ बैठी महिलाओं के ग्रुप में चली जाती हैं और बातें करने लगती हैं । अध्यक्ष जी व मंत्री अपना स्थान ग्रहण करते हैं ।
बिमल जी ---समय तो काफी होगया । अभी कम लोग ही आये हैं ।
प्रकाश जी ---अरे यहाँ तो फिर भी काफी लोग आगये । चूड़ी वाले किशोर जी के यहाँ तो लगभग कोई पहुंचा ही नहीं । मुश्किल से किया हुआ इंतज़ाम भी काफी बेकार गया ।
कुछ लोग एक साथ---- अरे जिनको आना था आ चुके...कार्यवाही आरम्भ की जाय ।
मंत्री जी---पहले ईश-प्रार्थना ....
सब गाते हैं .....वह शक्ति .......।
प्रार्थना समाप्त होने पर मंत्री पूर्व बैठक की कार्यवाही पढ़ते हैं । सदस्य गण बातें करते रहते हैं ।
मंत्री जी---किसी को इसमें कोई कमी, शंका, समाधान हो तो बताएं । अन्यथा यह पारित समझा जाय ।
सब-- हाँ ...पारित है...पारित है...।
अनिल जी --- ( नए सदस्य हैं दो माह पहले ही यहाँ ट्रांसफर होकर आये हैं ) एक विशेष विचार बिंदु रखना चाहता हूँ ।
सब--हाँ हाँ ...।
अनिल जी---अब तक की बैठकों में मैंने अनुभव किया है कि यहाँ के स्थानीय निवासी, व्यापारी वर्ग व अन्य वर्ग आदि कभी बैठक में नहीं आता । इसका क्या कारण है ? क्या उपस्थिति बढाने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया जा सकता, जिससे सभी वर्ग का सहयोग प्राप्त हो ?
मंत्री---यह प्रश्न कई बार उठ चुका है तथा बहुत बहस भी होचुकी है । हम किसी को जबरदस्ती तो ला नहीं सकते ।
अनिल--- पर कोई कारण तो होगा ।
कुछ सदस्य ---कोई कारण नहीं, जिन्हें नहीं आना वे आयेंगे ही नहीं ।
श्रीनाथ जी---कारण क्यों नहीं है....मुख्य कारण तो यह है कि--एक तो बैठक के लिए एक निर्धारित निश्चित स्थान नहीं है । हर बार आधा समय तो बैठक के नए स्थान को ढूँढने में लग जाता है, इतने बढे शहर में और बैठक में आने का प्रयोजन ही समाप्त होजाता है । हमारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग सकुचाता है कि अपने घर बैठक कराएं तो अन्य लोगों जैसा नाश्ता-पानी कैसे कराया जाय । सभी तो इस योग्य नहीं हैं कि सभी को डिनर करा सकें ।
( आपका क्या विचार है ...अनिल जी की तरफ देखते हैं ।)
इंज.रवि---- ये तो कोई बात नहीं है । किसी ने एसा नहीं कहा।जिस पर जैसा है वैसा खिलाये ।
श्री नाथ जी व कुछ अन्य --- कोई कहता थोड़े ही है ..बस आना और भाग लेना बंद कर देते हैं । जब हम खिला नहीं सकते तो खाने क्यों जाँय।
अनिल जी-- अन्य कई शहरों की भाँति एक नियम बन जाय कि सभी के यहाँ सिर्फ एक नग बिस्कुट आदि व एक चाय के अलावा कुछ नहीं करना है । तो शायद सभी लोग अपने यहाँ बैठक कराने में संकोच नहीं करेंगे एवं भागीदारी भी निभायेंगे ।
प्रकाश जी--- और यदि एक जगह निश्चित होजाय एवं चाय आदि शाखा सभा के तरफ से ही हो तो शायद और अच्छा हो ।
मंत्री---- इतना अधिक धन कहाँ है शाखा के पास ।
कुछ सदस्य गण--- मासिक या वार्षिक चन्दा लिया जाय ।
मंत्री--चन्दा लेने कौन जाता है ?
अनिल-- पदाधिकारी किस लिए हैं ।
मंत्री, अध्यक्ष व इंजी. रवि---- भई अपने घर किसी को बुलाएं तो तो' एक चाय' क्या अच्छा लगेगा ।
अनिल-- भई बैठक का उद्देश्य समाज के काम और उन्नति पर विचार करना है । खाने थोड़े ही आते हैं ।
श्री नाथ जी --- कुछ लोग तो सदैव अंतिम समय पर ही आते हैं जैसे खाना ही उद्देश्य हो । अन्य बैठक आदि से कोई लेना-देना नहीं ।
( तभी वीरेन्द्र जी प्रवेश करते हैं, कुछ लोग अर्थपूर्ण हंसी हंसते हैं । )
श्रीनाथ -- ये देखिये सदैव की भाँति आख़िरी वक्त पर....।
विमल जी-- आखिर जन संपर्क करके कारण पता करने और उसके निवारण में क्या हर्ज़ है ।
मंत्री अध्यक्ष इंजी. रवि व रमेश जी ---बहुत बार कोशिश कर के देख चुके हैं । सब होचुका है, बार बार वही प्रश्न व बहस का कोई अर्थ नहीं है ।
विमल जी-- क्यों, बार बार कोशिश करने में क्या हर्ज़ है ? बार बार प्रयत्न से ही तो सफलता मिलती है ।
श्री नाथ जी-- मैं तो दस साल से देख रहा हूँ , कभी कुछ नया व जन संपर्क करने की कोशिश ही नहीं हुई । न हमारा महिला वर्ग ही कुछ नया कार्य या किसी बहस, विचार विमर्श में भाग लेता है । बस वही लोग सदा आते हैं और खा पीकर चल देते हैं ।
मंत्री--- सलाह देना आसान है। जो आगे आये, करके दिखाए ।
श्री नाथ जी --भई, तो फिर ये मासिक सभाएं, सामान्य सभाएं क्यों होती हैं । परामर्श कमेटी, विशिष्ट परामर्श कमेटी आदि क्यों बना रखे हैं। मंत्री अध्यक्ष को ही अपनी मर्जी चलानी है तो वे ही जो करते हैं करें..अन्य लोग क्यों आयें ।
विमल जी -- मंत्री अध्यक्ष तो सिर्फ कार्य करते हैं, फैसले तो सामान्य बैठक द्वारा लिए जाने चाहिए। विशेष सलाहकार व कार्यकारी समिति मिल कर कार्यक्रम तैयार करे।
अनिल जी -- महिला वर्ग से भी तो कोई परामर्श व विचार बिंदु या उदाहरण आना चाहिए ।
( महिलाओं की और उन्मुख होकर )
आप सब क्या सिर्फ बातें करने आते हैं । या बस सिर्फ वर्ष में एकाध बार २६ जन. आदि को खेल-कूद करने । आपके भी हर बिंदु पर विचार प्रस्तुत होने चाहिए। आप भी तो आगे आइये। महिला शक्ति का भी तो उचित उपयोग होना चाहिए।
( महिलायें चुपचाप मुस्कुराती रहती हैं )
मंत्री -- तो भैया, आप ये संभालो और करो । हम तो जैसा कर रहे हैं वैसा ठीक -ठाक ही चल रहा है ।
विमल जी -- अरे यह तो वही बात हुई , " जो बोले सो कुंडा खोले " इसलिए तो सब चुपचाप अपनी अपनी रजाइयों में सिकुड़कर बैठे हैं । जब न कोइ नया विचार, नई बात पर बहस करने, सुनने- मानने को तैयार ही नहीं है तो कौन समाज -बैठक आदि के पचड़े में पड़े । ये भी कम उपस्थिति होने का एक कारण है ।
इंजी. रवि -- चलिए ..चलिए ... डिनर तैयार है, कृपया चलें ।
( सब बातें करते हुए जाते हैं )
6 टिप्पणियां:
बढ़िया नाटिका ,बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट,....
MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
अत्यन्त रोचक, मंचन योग्य।
धन्यवाद पान्डे जी..... मन्चन का आयोजन कर सकते हैं..
धन्यवाद धीरेन्द्र जी...व रविकर जी...
रोचक ...करना कोई कुछ नहीं चाहता इसका सटीक उदाहरण
धन्यवाद..सन्गीता जी...आभार...
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