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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

इन्द्रधनुष.....अंक ९ का अन्तिम भाग-----स्त्री-पुरुष विमर्श पर..... डा श्याम गुप्त का उपन्यास.....

                       
 


                      
                                          ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


      
        ’ इन्द्रधनुष’ ------ स्त्री-पुरुष विमर्श पर एक नवीन दृष्टि प्रदायक उपन्यास...पिछले अंक   से क्रमश:......
                                                                 अंक नौ का शेष अन्तिम भाग 
                         

                                   अच्छा केजी, तुम्हें पता है डा. सरला भारद्वाज  इन्डियन मेडीकल कोंसिल  की अध्यक्ष बन गयी हैं ।
             ' डा. सरला ...अपने बैच में तो कोई नहीं थी।'
             नहीं, पर याद करो, देखें कुछ सुधार हुआ है या नहीं । कहाँ तक पहुँच पाते हो।  वे जनरल सर्जन हैं ।
              ' अरे वही न, एम. एस. जनरल सर्जरी में किया था और देश की पहली महिला सर्जन हैं । सीनियर बीच की  डा. भारद्वाज ।'
               हाँ, वही । वाह ! याददास्त सुधर गयी है, क्या बात है । अभी कल की ही तो बात लगती है जब कालिज में गरमा-गर्म खबर फ़ैली थी की कालिज के इतिहास में पहली बार किसी महिला डाक्टर ने एम् एस शल्य चिकित्सा में करने का निश्चय किया है और वह भी ग्रेजुएशन में टापर ने। जो कई पदक प्राप्त हैं ।
               और हम लोग आउट-डोर व वार्ड में विशेष रूप से देखने जाते थे कि वे कैसे काम कर रही हैं , कौन बोल्ड लेडी  हैं ।
                कालिज व अस्पताल में काफी समय तक बहस चलाती रही कि वे सर्जरी में चल पाएंगी कि नहीं । कई बार तो लडके-लड़कियों में काफी तकरार भी  हुई कि ' हम किसी से कम नहीं '- और तुम चमगादड़ की भाँति पाले बदलते रहते थे ।' वह हंसकर कहने लगी , ' फिर मुझे  बचाव करना पड़ता था ।'
                 हाँ, हाँ, मैंने टालते हुए कहा , ' पर आगे अन्य महिला डाक्टरों ने कहाँ अधिक दिलचस्पी दिखाई इस  क्षेत्र  में ।  वही अपने स्त्री -चिकित्सा व बाल-चिकित्सा या पेरा-मेडीकल विषयों में ही जाती  रहीं ।
                 परन्तु  'इक  दिया है बहुत रोशनी के लिए'  उन्होंने तो पीछे मुड़कर नहीं देखा । देश की प्रथम महिला सर्जन बनीं, दिल्ली विश्व-विद्यालय की 'डीन ' और आज सर्वोच्च पद पर ।  देश-विदेश में खूब नाम कमाया । अब तो तमाम महिला चिकित्सक हैं इस फील्ड में ।'
                   ' बड़ी  अच्छी  धमाकेदार खबर है, सुमि !'
                   'मुझे पता था तुम सुनकर खुश होगे ।'  सुमि मुस्कुराकर कहने लगी,' उस दिन भी वो खबर मैंने ही दी थी सबसे पहले तुम्हें ।  याद है जब भी एसी कोई नयी बात होती या सुनते तो तुम गुनगुनाया करते थे....

                               " मोड़ जायेंगे जमाने की कई राहों को,
                                करके नए रंग जमाने की नज़र जायेंगे ।" 
                 ' वाह ! तुम्हें याद है अभी तक ये शेर ।'  मैंने आश्चर्य से कहा ।
                 कैसे और क्यों भूलूँ ?  क्या सबसे पहले मेरे लिए नहीं कहा गया था । पर अब तो वह पूरी ग़ज़ल होगई होगी । सुनाओ न, वह आग्रहपूर्वक बोली । मैंने सुनाया --
                                  " अपने अशआर में हमने  तो संजोया है जहां ,
                                    मुड़के  चल देगा  मेरे साथ  जहां  जायेंगे । 
                              
                                   बात मेरी  न सुने  सारा ज़माना  चाहे ,
                                   चन्द जाहिद तो सुनेंगे औ सुधर जायेंगे ।

                                   बात तेरी हो मेरे प्यार, मेरे देश अगर,
                                   हम तो दीवानगी की हद से गुज़र जायेंगे ।

                                  मेरी यादों में न लग पाएंगे मेले लेकिन,
                                 तेरी गलियों में किये याद मगर जायेंगे ।

                                 केजी' इक रोज़ चले जायेंगे ज़हाँ से लेकिन ,
                                बन के खुशबू तो ज़माने में बिखर जायेंगे ।। " 
            
                  ' बस- बस चुप करो, क्या कह रहे हो ।  क्या पता कब, कहाँ और कौन पहले जाय ।', वह बोल पडी ।
                  'कब जा रही हो  हो ? '  मैंने पूछा तो मुस्कुराती हुई कहने लगी ...
                                  " बात मीठी हो या तीखी हो, तेरी हो अगर,
                                   तेरी हर बात पै चाहोगे तो मर जायेंगे ।" 


                                   आपने पूछा है कि अब आप चले जायेंगे ,
                                   आप कह देंगे कि रुक जाओ तो रुक जायेंगे । "

                        और वह कोहनी रेत पर टिकाकर, हाथों पर चेहरे  को रखकर मुस्कुराने लगी ।  बोली , ' आज शाम को चार बजे की फ्लाईट से जारही हूँ, यहाँ का कार्य जल्दी समाप्त होगया । '
                                   " रास्ते तय हैं, और तय हैं मंजिलें भी केजी,
                                    अपनी अपनी राह यूंही साथ चलते जायेंगे ।"......मैंने कहा तो हंसकर बोली,....वाह ! क्या बात है, अभी भी दम है।  हाथ चूमने को, पैर छूने को दिल चाहता है तुम्हारे तो केजी !  वह दोनों हाथ जोड़कर, सर झुका  कर कह गयी......
                                       " दिल की लगी इस दिल्लगी पर 
                                           क्यों न मर जाये कोई ।"
                   और वह खिलखिलाकर  हंसी  तो  हंसती ही चलेी गयी ।
                   दो बज रहे हैं, मैंने याद  दिलाया ।
                  ओह! वह चुप होते हुए बोली , ' समय कितनी जल्दी बीत गया ?'
                  ’एयरपोर्ट छोड़ने चलूँ’
                  ' हाँ ।'
                               हम  टैक्सी  लेकर सुमि के गेस्ट हाउस होते हुए एयरपोर्ट पहुंचे ।  सुमि ने   पूछा--
                  ' याद करोगे ?'
                   ’नहीं’ , मैंने कहा ---
                                      " दिल में ही सूरत बसी है यार की ,
                                       जब ज़रा  गर्दन  झुकाई   देख  ली।"
                   लाउंज के कोने में खड़े होकर अचानक सुमि ने कहा, " मुझे किस करो कृष्ण ! "
                 ” क्या कह रही हो, क्या पागलपन है सुमि !’  मैंने आश्चर्य से कहा ।
                  'आज मैं ही कह रही हूँ । यही कहा था न तुमने पहली मुलाक़ात में ?'  वह सोचती  हुई बोली ।
                           
                             मैंने होठों से उसके  माथे को छुआ तो वह खिलखिलाकर हंस पडी। 'मैं क़र्ज़ मुक्त हुई केजी। अब चैन से जा सकूंगी, कहीं भी ।'  वह गहराई तक मेरी आँखों में झांकते हुए बोली ।
                 'और अब तक का सूद ।'  मैंने हंसते हुए कहा ।
                ’अगले जन्म में ।’
                ’आशा है अगले जन्म में भी हम पक्के मित्र रहेंगे ।’  मैंने अनायास ही कहा ।
                'नहीं, पति-पत्नी ।'
               ’ व्हाट ?... क्या !’
               'अगले जन्म की प्रतीक्षा करो, केजी ।'   और वह तेजी से बोर्डिंग लाउंज में प्रवेश कर गयी ।

                        ------------ अंक नौ समाप्त , क्रमश अंक दस ....अगली पोस्ट में ।
                    
  
                                   
                
    

3 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

मैंने होठों से उसके माथे को छुआ----



'नहीं, पति-पत्नी ।'
’ व्हाट ?... क्या !’
'अगले जन्म की प्रतीक्षा करो, केजी ।'


बहुत सुन्दर कथा ||
आभार श्रीमान जी ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति,....
.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद रविकर व धीरेन्द्र जी....