....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मनमोहक, हृदयोल्लासकारी, प्रेम के प्रतीक पुष्पों को निरख कर
मन प्रसन्न होता है तो प्रायः मेरे मन में यह विचार
भी अंगडाई लेने लगता है की आखिर क्यों खिलते हैं ये फूल ?
क्या सिर्फ सौन्दर्य हेतु ।
परन्तु पुष्प तो वीराने में भी खिल जाते हैं जहां न कोइ देखने को होता है ,न सौन्दर्य पान को, न सराहने को ।
चाहे उचित मात्रा पानी-पोषण न हो पर एक सूखे पौधे की एकमात्र सूखे डंठल पर भी एक पुष्प खिल आता है ।
क्यों ? प्रश्न व जिज्ञासा सदैव विज्ञान की और मुड़ने को बाध्य करती है ।यह वास्तव में जीवन की जद्दोज़हद है और
चार्ल्स डार्विन याद आने लगते हैं
। डार्विन के अनुसार यह 'स्ट्रगल फॉर एग्ज़िस्टेंस' है .......जीव का ज़िंदा रहने का प्रयास।... संतति वर्धन का प्रयास.... जिस हेतु प्रत्येक जीव अपने आकार, संरचना, आतंरिक-संरचना, जीन, जीन कोड में परिवर्तन भी कर लेते हैं, अपना प्रतिलिपिकरण भी समय, क्रमिक हिट एन्ड ट्रायल, पुन:-पुन:.रिपीटेशन से, पारिस्थिकी के अनुसार .......और डार्विन का उत्परिवर्तन अर्थात ....-म्यूटेशन सिद्धांत लागू होने लगता है और तब 'जो जीते वही सिकंदर ' अर्थात 'सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट' का नियम । डार्विन के विरोधी कुछ सिद्धान्त यह भी बताते है कि यह सब स्वतः नहीं होता अपितु जीन ...क्रोमोसोम सरचना देखने से यह सिद्ध होता है कि यह किसी की एक सुनियोजित योजनाबद्ध कार्य है ।
परन्तु डार्विन या अन्य या विज्ञान के सिद्धान्त यह नहीं बता पाता कि जीव, कोशिका या जीन में इस स्ट्रगल फ़ोर एग्ज़िस्टेन्स, म्यूटेशन, प्रतिलिपीकरण या सर्वाइवल ओफ़ फ़िटेस्ट की भूमिका निभाने हेतु या सुनियोजित योजना की भूमिका हेतु उस जीव या जीन या क्रोमोसोम में ...भाव. संकल्प, इच्छा, क्षमता व बल , ऊर्ज़ा कौन प्रदान करता है? विज्ञान का यह अन्तिम छोर हमें दर्शन..धर्म व ईश्वर की ओर लेजाता है और आस्था व विश्वास के गवाक्ष खुलने लगते है।जो ईश्वर पर आस्था को और अधिक दृढ करता है । यह विज्ञानं से ईश्वर की राह का मार्ग है। भौतिकता से ..आस्था, विश्वास, श्रद्धा का मार्ग है। यही व्यवहारिक, प्रेक्टीकल व रिजु- मार्ग है। मानवता की राह है जो जीवन को स्ट्रगल फ़ोर एक्ज़िस्टेन्स के लिये भाव, सन्कल्प, इच्छा, बल व क्षमता प्रदान करती है। यही शायद ईश्वर भी है और उसी की सुनियोजित योजना ।
--------- चित्र गूगल साभार ...
1 टिप्पणी:
सब छोड़ना भी नहीं चाहता है और सब स्वीकार करने का उत्तरदायित्व भी नहीं लेना चाहता है।
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