....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
हम हिन्दुस्तानी
१.
मेरा जूता इंग्लिस्तानी, ये पतलून अमरीकानी,
सर पे बाल,शैम्पू वाले, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी |
निकल पड़े हैं प्रगति के पथ पर,हाथ में लिए तिरंगा,
कोई न भारतवासी अब रह पाए भूखा नंगा |
होगी दुनिया को हैरानी, हम दीवाने हिन्दुस्तानी ||
हम हिन्दुस्तानी
२.
पता नहीं इस समाचार में साँपों और पढ़ी गयी कविता का क्या अर्थ है .... यदि पुरुष के लिए कथन है तो वे सांप तो हैं ही चाहे जहरीले हों या सीधे ....
----और प्रेम में झूठा खाना जरूरी नहीं होता
झूठन खाना तो हरगिज़ नहीं |.......
------ पर झूठा खाने के लिए प्रेम करना तो आवश्यक है ...
जब प्रीति चुम्बन, बिना मुख झूठा किये नहीं होता,
तो झूठा खाने में क्या बुराई है |
.------- झूठा तो महिलायें स्वयं ही या तो खाना बेकार न जाय ..या प्रेम वश खाती-पीती हैं ..... क्या आजकल की पीढ़ी ..प्रतिदिन एक ही स्ट्रा से, एक ही गिलास से या आधा-आधा नहीं पी रहे हैं हर टीवी, सिनेमा और वास्तव में भी माल में, होटलों में .....स्वेच्छा से, स्मार्टनेस से, प्रेम से?.....पति-पत्नी बनने से पहले ही ....
तथा....
" प्रेम डराता है हमें डराता है कि जिसे हम चाहते हैं वह खो न जाए चला न जाए बदल न जाए ..."
----तो वह प्रेम किस बात का ...वह तो आकांक्षा है....सिर्फ चाह है...प्रेम नहीं .."जब प्यार किया तो डरना क्या "
------एसी व्यर्थ की, निरर्थक समाज को विच्छेदित करने वाली, अतार्किक, असाहित्यिक कविताओं से हम समाज को क्या दिशा देना चाहते हैं .... अब हम क्या कहें साहित्यिक-सामाजिक दायित्व की बात ...जबकि वरिष्ठ समाज सेवी लोग भी वहाँ उपस्थित हैं ...| और कितना गिराएंगे हम समाज को, साहित्यिक स्तर को , व्यक्ति को ........|
हम हिन्दुस्तानी
मेरा जूता इंग्लिस्तानी, ये पतलून अमरीकानी,
सर पे बाल,शैम्पू वाले, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी |
निकल पड़े हैं प्रगति के पथ पर,हाथ में लिए तिरंगा,
कोई न भारतवासी अब रह पाए भूखा नंगा |
होगी दुनिया को हैरानी, हम दीवाने हिन्दुस्तानी ||
हम हिन्दुस्तानी
२.
पता नहीं इस समाचार में साँपों और पढ़ी गयी कविता का क्या अर्थ है .... यदि पुरुष के लिए कथन है तो वे सांप तो हैं ही चाहे जहरीले हों या सीधे ....
----और प्रेम में झूठा खाना जरूरी नहीं होता
झूठन खाना तो हरगिज़ नहीं |.......
------ पर झूठा खाने के लिए प्रेम करना तो आवश्यक है ...
जब प्रीति चुम्बन, बिना मुख झूठा किये नहीं होता,
तो झूठा खाने में क्या बुराई है |
.------- झूठा तो महिलायें स्वयं ही या तो खाना बेकार न जाय ..या प्रेम वश खाती-पीती हैं ..... क्या आजकल की पीढ़ी ..प्रतिदिन एक ही स्ट्रा से, एक ही गिलास से या आधा-आधा नहीं पी रहे हैं हर टीवी, सिनेमा और वास्तव में भी माल में, होटलों में .....स्वेच्छा से, स्मार्टनेस से, प्रेम से?.....पति-पत्नी बनने से पहले ही ....
तथा....
" प्रेम डराता है हमें डराता है कि जिसे हम चाहते हैं वह खो न जाए चला न जाए बदल न जाए ..."
----तो वह प्रेम किस बात का ...वह तो आकांक्षा है....सिर्फ चाह है...प्रेम नहीं .."जब प्यार किया तो डरना क्या "
------एसी व्यर्थ की, निरर्थक समाज को विच्छेदित करने वाली, अतार्किक, असाहित्यिक कविताओं से हम समाज को क्या दिशा देना चाहते हैं .... अब हम क्या कहें साहित्यिक-सामाजिक दायित्व की बात ...जबकि वरिष्ठ समाज सेवी लोग भी वहाँ उपस्थित हैं ...| और कितना गिराएंगे हम समाज को, साहित्यिक स्तर को , व्यक्ति को ........|
2 टिप्पणियां:
सत्य बचन --धन्यवाद धीरेन्द्र जी....
बहुत ही रोचक..
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