....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आज से ७५ वर्ष पहले जो भूल की गयी थी उसके दुष्परिणाम आज भी देखने को मिल रहे हैं | मतभेद भुलाने हेतु खान अब्दुल गफ्फार खान को वास्तव में अपने भाषण में 'राम सेना' व 'खुदाई खिदमतगार' बनने की सलाह की बजाय सभी को " राष्ट्र सेवक" बनकर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने का आव्हान करना चाहिए था | जहां राष्ट्र की बात होती है वहाँ राम व खुदा के नाम का प्रयोग क्यों | धर्म का नाम ही नहीं आना चाहिए |
आज से ७५ वर्ष पहले जो भूल की गयी थी उसके दुष्परिणाम आज भी देखने को मिल रहे हैं | मतभेद भुलाने हेतु खान अब्दुल गफ्फार खान को वास्तव में अपने भाषण में 'राम सेना' व 'खुदाई खिदमतगार' बनने की सलाह की बजाय सभी को " राष्ट्र सेवक" बनकर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने का आव्हान करना चाहिए था | जहां राष्ट्र की बात होती है वहाँ राम व खुदा के नाम का प्रयोग क्यों | धर्म का नाम ही नहीं आना चाहिए |
5 टिप्पणियां:
काश..
राष्ट्र की सेवा के लिए,राम,खुदा क्या काम
पूर्वजो ने की गलतिया,भुगत रहे परिणाम,,,,
RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
जहां राष्ट्र की बात होती है वहाँ राम व खुदा के नाम का प्रयोग क्यों | धर्म का नाम ही नहीं आना चाहिए |
@ जब तक 'राष्ट्र' ने आकार नहीं ले लिया बहुतों की सोच का अनुमान उनके वक्तव्यों से लगाना 'त्रुटि' या 'भूल' नहीं मानी जा सकती.
सभी आचार्य चाणक्य जैसे दूरदर्शी नहीं होते जो 'राष्ट्र' की परिकल्पना को साकार करने के लिये आरम्भ से ही वैसे (राष्ट्रीय सोच के) वक्तव्य भी देते हैं.
१९३७ तक या कहें १९४७ से पहले तक 'धर्म' ही एक ऎसी प्रेरक/उन्मादक खुराक थी जिसके नशे से सभी लोग एकजुट हो सकते थे.
अकबर ने भी हिन्दू और मुसलमानों को एकसाथ करने के लिये 'दीन-ए-इलाही' शुरू किया.
'राम राज्य' की चाहना स्वयं मोहनदास करमचंद गांधी जी ने की ... तो इसका मतलब ये कतई नहीं लिया जाना चाहिए कि वे भी 'एक राष्ट्र' के पक्षधर नहीं थे.
एम्. के. गांधी के बाद 'गांधी' नाम के जितने भी यूज़र्स आये... वे सभी सीमा से परे (असीमित?) सोच वाले थे... केवल 'सीमान्त' को छोड़कर.
आज के यूज़र्स तो 'राष्ट्र' नाम के उच्चारण से ही भड़क जाते हैं, 'परिवार सेवक' बने रहने में ही कर्तव्य की इति मानते हैं.
.... मुझे बताइये कि 'राम' नाम लेने से राष्ट्र या राजनीति को कैसे क्षति पहुँचती है?
धन्यवाद प्रतुल जी ...विशद रूप से कमेन्ट के लिए....
-- सही कहा धर्म का नाम ही नहीं आना चाहिए...
----राम का नाम लेना एवं राम सेना बनाने में अंतर है ... राम का ( या खुदा का ) नाम लेना एक व्यक्तिगत भावना है, भक्ति-भावना या व्यवहार में अनुकरण हेतु भाव है उच्च आदर्श अपनाने हेतु, व्यष्टि के इस आदर्श व्यवहार से ही समष्टि का व्यवहार-भाव बनता है अतः नाम लेने से , पूजने से या अनुकरण करने से किसी राष्ट्र या राजनीति को हानि का प्रश्न ही नहीं उठता ....जबकि राष्ट्र हेतु इस प्रकार का आवाहन का कोई अर्थ ही नहीं... अपितु इसका अर्थ हुआ कि दो जुदा भाव एक होजायं तो अच्छा है....परन्तु राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में दो भाव होने ही क्यों चाहिए?..न उनका वर्णन होना चाहिए....
----- राष्ट्र तो सदैव से ही है आकार लेने का प्रश्न कहाँ से उठा...भारतीय राष्ट्र की अवधारणा /महिमा वेदों से लेकर परवर्ती ग्रंथों तक में है ..उसे भूल जाने के कारण ही आज लोग (कुछ भटके हुए)राष्ट्र के नाम से भडकते हैं ...
---- गांधी जी की राम-राज्य की चाहना ..राज्य-नीति के परिप्रेक्ष्य में थी अर्थात राम के राज्य जैसा आदर्श राज्य-राजनीति, न कि किसी विशेष धर्म या दलीय व्यवस्था के पक्ष में ...
धन्यवाद धीरेन्द्र जी एवं पांडे जी...
एक टिप्पणी भेजें