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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 17 सितंबर 2012

अगीत साहित्य दर्पण, अध्याय प्रथम (क्रमश:)... डा श्याम गुप्त ..

                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


पिछले अंक से आगे......

   सन १९६७ ई. में परिषद को पंजीकृत कराया गया सन १९६७ से ही' अगीत त्रैमासिक' पत्रिका का संपादन भी किया गया| इसप्रकार अगीत --एक जन-आंदोलन होकर उभरा | इसी क्रम में १९७५ में 'संतुलित कहानी' व १९९८ में 'संघात्मक समीक्षा पद्धति' का जन्म हुआ| १९६६ से ही अगीत -विधा एक आंदोलन के रूप में विविध झंझावातों को सहते हुए अबाध गति से आगे बढती जा रही है | देश-विदेश में फैले हुए कवियों द्वारा यह विधा देश की सीमाओं को पार करके अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर अपना परचम लहराने लगी है |

                 सन  १९६६ ई. से ही डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के साथ अनेक उत्साही व प्रगतिवादी कवि अगीत आंदोलन से जुड गये थे| जिनमें वीरेंद्र निझावन, काशी नरश श्रीवास्तव, मंजू सक्सेना,गिरिजा शंकर, डा अमरनाथ बाजपेयी, नित्य्नाथ तिवारी, जावेद अली, मंगल दत्त त्रिवेदी 'सरस', सुभाष हुडदंगी , घनश्याम दास गुप्त, रामदत्त मिश्र, धन सिंह मेहता, राजेश द्विवेदी आदि प्रमुख हैं |
डा सत्य

                 आगे चलकर अगीत विधा के मुखपत्र 'अगीतायन' के प्रचार-प्रसार से अन्यान्य कवियों व साहित्यकारों के इस विधा से जुडने का सिलसिला बढाता गया एवं अगीत में विभिन्न रचनाएँ व संग्रह रचे जाने लगे|और हिन्दी कविता में एक नए युग का सूत्रपात हुआ|  इनमें श्रीकृष्ण तिवारी(खिडकी से झांकते अगीत )...नित्यनाथ तिवारी (  उन्मुक्त अगीत)..श्रीमती गिरिजादेवी 'निर्लिप्त' (मेरे प्रिय अगीत )...सुदर्शन कमलेश, प्रेमचन विशाल, तेज नारायण (अगीत-प्रवाह)...राजीव्शरण, कौशलेन्द्र पाण्डेय, रामकृष्ण दीक्षित'फक्कड़'..घनश्याम दास गुप्ता...रामगुलाम रावत, अनिल किशोर'निडर'...इन्दुबाला गह्लौत'इन्दुछाया' आदि के नाम उल्लेखनीय हैं |
               इस प्रकार अगीत विधा चरण दर चरण अग्रसर होती गयी | श्री तेज नारायण राही, सोहन लाल सुबुद्ध (अगीत श्री ) मंजू सक्सेना'विनोद', रवीन्द्र राजेश, डा योगेश गुप्त, पार्थोसें, देवेश द्विवेदी 'देवेश', नन्द किशोर पांडे,  ओमप्रकाश, कैलाश निगम, सुधा अनुपम, श्री गोपाल श्रीवास्तव, चंद्रपाल सिंह 'चन्द्र', डा नीरज कुमार, अवधेश मिश्र , भगत राम पोखरियाल, कुंवर बेदाग़, विनय सक्सेना, रचना शुक्ला, वासुदेव मिश्र, आदि कवि, साहित्यकार, समीक्षक व शास्त्रकार इस विधा से प्रभावित होकर जुडते गए एवं अनेकानेक रचनाएँ, कृतियाँ,अगीत काव्य संग्रहों की रचना हुई, आलेख लिखे गए और अगीत-विधा का प्रवाह अक्षुण्ण रूप से होता रहा|
              अगीत विधा के प्रसार-प्रचार के साथ साथ राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर विभिन्न रचनाकारों , समीक्षकों व अध्येताओं द्वारा भी अगीत का लगातार उल्लेख किया जाता रहा| डा वेरास्की ( वारसा विवि पोलेंड), डा वोलीसेव ( मास्को विवि, सोवियत रूस) ने भी अगीत की महत्ता को अपने निबन्धों में स्वीकारा है तथा देश भर के विश्व-विद्यालयों ने अगीत की आवश्यकता पर बल दिया | द्वितीय युद्धोत्तर हिन्दी साहित्य का इतिहास ( राजपाल एंड सन्स) आई लगभग दो दर्ज़न इतिहास ग्रंथों ,शोध ग्रंथों व समीक्षा ग्रंथों में अगीत का लगातार उल्लेख होता रहा है|  नागपुर में आयोजित तृतीय विश्व हिन्दी सम्मलेन में अगीत परिषद की ओर से डा रंगनाथ मिश्र'सत्य' ने प्रतिनिधित्व किया जिससे अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर अगीत को बढ़ावा मिला |
             विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर परीक्षाओं तक में अगीत विधा पर प्रश्न पूछे गए\ आकाशवाणी व दूरदर्शन पर भे कवि अपने अगीत रचनाएँ प्रसारित करते हैं| १९६६ ई. में श्री अनुराग मिश्र सुपुत्र डा रंगनाथ मिश्र'सत्य' द्वारा 'अगीतायन' साप्ताहिक पत्रिका का कार्यभार व संपादन संभाल लेने से अगीत-विधा के प्रचार-प्रसार को नया बल मिला है | नवीन व युवा कवि इस विधा को और आगे लेजाने को कटिबद्ध हैं, नवीन उत्साह  व गति के साथ|  डा योगेश गुप्ता , मंजू लता तिवारी सोनी, स्वर्णा सक्सेना , बुद्धिराम विमल, पार्थोसेन, कुमारी रजनी श्रीवास्तव, स्नेह प्रभा, क्षमापूर्णा पाठक, श्रृद्धा विजय लक्ष्मी , विजय कुमारी मौर्या , विनय सक्सेना, डा मंजू श्रीवास्तव, मिर्ज़ा हसन नासर, सुभाष हुडदंगी , कवि वुद्दा, वाहिद अली वाहिद ,आदि कवि अगीत को गति देते रहे |इस प्रकार डा सत्य के सद्भावी प्रयासों से अनेकानेक कवि इस विधा से जुडते गए और कविवर अनिल किशोर 'निडर' को कहना पड़ा....

                                              खिले अगीत-गीत हर आनन्,
                                               तुम हो इस युग के चतुरानन |       -----------सफर नामा से |..
         सन १९६८ में डा रंग नाथ मिश्र सत्य जी की साहित्य सेवा के लिए उन्हें .राहुल सांस्कृत्यायन मंच उत्तर प्रदेश की ओर से तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल बोरा द्वारा सम्मान दिया गया | तत्पश्चात महामहिम राज्यपालसूरजभान द्वारा उन्हें 'सरस्वती सम्मान ' से विभूषित किया गया और अगीत को एक नया आयाम मिला |
जगत नारायण पाण्डेय
                     अगीत को एक सुखद मोड़ तब मिला जब सन २००३ई. में अगीत परिषद के वरिष्ठ सदस्य एडवोकेट पं. जगत नारायण पांडेय ने राम कथा  पर आधारित खंड काव्य " मोह और पश्चाताप" तथा २००४ में "सौमित्र गुणाकर" महाकाव्य अगीत विधा में लिखा जो अखिल  भारतीय अगीत परिषद द्वारा प्रकाशित कराया गया | ये दोनों रचनाएँ " गतिबद्ध सप्तपदी अगीत छंद"  में रची गयीं जो पांडे जी द्वारा स्वरचित थे एवं प्रथम बार प्रयोग में लाये गए अगीत-विधा के नवीन छंद थे | ये दोनों कृतियाँ अगीत विधा में लिखे गए सर्वप्रथम खंड काव्य व महाकाव्य थे | एक उदाहरण प्रस्तुत है....
" गणनायक की कृपादृष्टि को ,
माँ वाणी ने दिया सहारा |
खुले कपाट बुद्धि के जब, तब-
हुए शब्द-अक्षर संयोजित;
पाई  शक्ति लेखनी ने फिर|
रामानुज की विमल कथा का,
प्रणयन है अगीत शैली में ||"            ------सौमित्र गुणाकर महाकाव्य से |


डा श्याम गुप्त
                सन २००५ ई. में मैं ( डा श्याम गुप्त) डा रंगनाथ मिश्र'सत्य' के संपर्क में आया और अगीत परिषद का सदस्य बना | इसमें मेरे चिकित्सालय के सहयोगी अगीत कवि श्री विनय सक्सेना का महत्वपूर्ण योगदानरहा जिन्होंने मुझे सर्वप्रथम 'अगीत' व अगीत परिषद' की जानकारी दी| इस प्रकार अगीत कविता जगत से मेरा प्रथम बार परिचय हुआ | सन २००४ ई. में मेरी प्रथम कृति 'काव्य-दूत' प्रकाशित होचुकी थी जिसमें तुकांत, छंदोबद्ध व अतुकांत सभी विधाओं के गीत संकलित थे | २००५ में डा सत्य की प्रेरणा से मेरा तृतीय काव्य संकलन 'काव्य-मुक्तामृत " अतुकांत छंदों  में प्रकाशित हुआ जो अगीत परिषद के प्रकाशन में मेरी प्रथम कृति थी |

                                    क्रमश   .... अगीत साहित्य दर्पण प्रथम अध्याय .......शेष अगले अंक में ...




           

1 टिप्पणी:

रविकर ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति आज बुधवार के चर्चा मंच पर ।।