....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
एषणा---- है इच्छा को कार्य रूप देने का प्रयास। जहां इच्छा है और इच्छा के अनुसार काम करने की चेष्टा है, उसको कहते हैं एषणा। दुनिया में जो कुछ भी है वह एषणा से ही उत्पन्न है। परमात्मा की एषणा से दुनिया की उत्पत्ति हुई है।
वित्तेषणा--अर्थात धन श्री समृद्धि प्राप्ति की इच्छा, लोकेषणा- अर्थात पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान की इच्छा व पुत्रेषणा- अर्थात पुत्र, पुत्री संतान, पत्नी, खानदान आदि समस्त रिश्तों व उन पर प्रभाव की इच्छा ....... तीन प्रमुख सांसारिक एषणायें हैं जो व्यक्ति को माया बंधन में लिप्त करती हैं |
एषणा---- है इच्छा को कार्य रूप देने का प्रयास। जहां इच्छा है और इच्छा के अनुसार काम करने की चेष्टा है, उसको कहते हैं एषणा। दुनिया में जो कुछ भी है वह एषणा से ही उत्पन्न है। परमात्मा की एषणा से दुनिया की उत्पत्ति हुई है।
वित्तेषणा--अर्थात धन श्री समृद्धि प्राप्ति की इच्छा, लोकेषणा- अर्थात पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान की इच्छा व पुत्रेषणा- अर्थात पुत्र, पुत्री संतान, पत्नी, खानदान आदि समस्त रिश्तों व उन पर प्रभाव की इच्छा ....... तीन प्रमुख सांसारिक एषणायें हैं जो व्यक्ति को माया बंधन में लिप्त करती हैं |
3 टिप्पणियां:
धन्यवाद रविकर ....आभार
सृष्टि का प्रारम्भ..
धन्यवाद पांडे जी....
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