....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
---- यहाँ हम अशांति खंड के..द्वितीय भाग .छंद १४ से २६ तक का वर्णन करेंगे जिसमें -सृजित विभिन्न कणों से पदार्थ के त्रि-आयामी ( थ्री डायमेंशनल ) कण, पदार्थ, रूप, रस, भाव, इन्द्रियाँ, मन,स्वत्व, अहंकार, ३३ देव ( पदार्थों की मूल शक्तियां ),अंतरिक्ष, नक्षत्र,गृह-उपग्रह व समय की रचना कैसे हुई, को व्याख्यायित किया गया है। )
१४-
शक्ति और इन भूत-कणों के ,
संयोजन से बने जगत के,
सब पदार्थ और उनमें चेतन-
देव १ रूप में निहित होगया ;
भाव तत्व बन, बनी भूमिका,
त्रिआयामी सृष्टि-कणों२ की।।
१५-
वायु से अग्नि, मन और जल बने,
सब ऊर्जाएं बनी अग्नि से;
जल से सब जड़ तत्व बन गए।
मन से स्वत्व व भाव अहं सब,
बुद्धि, वृत्ति और तन्मात्राएँ ३,
सभी इन्द्रियां बनीं स्वत्व से ।।
१६-
विश्वौदन ४ के रूप, सृष्टि कण ,
और अजः५ , वह जीवात्मा भी ;
स्वः मह: जन : उच्चाकाश में ,
थे स्वतंत्र बन पंचौदन-अजः६ ;
पूर्व भूमिका में, बनने की,
पंचभूत रूपी पदार्थ सब ।।
१७-
ग्यारह रूद्र, बारह आदित्य , और-
अष्ट-बसु ये सभी देवगण ,
ऊर्जा-दृव्य भाव गुण युत थे।
शक्ति संगठक -इंद्र, प्रजापति ,
तैंतीस देव७ पड़े थे सिन्धु में ,
उस अशांति मय महाकाश में।।
१८-
सत-तंम-रज मय अहंकार के,
तामस विकृति ८ भाव रूप के,
मूल भाव और गुण भाव से,
शब्द और आकाश बन गए।
उसी शब्द के सूक्ष्म भाव से ,
बने धारणा ध्यान विचार ॥
१९-
मूल रूप-गुण आकाश का ,
बना स्पर्श-गुण रूप महान।
सूक्ष्म-भाव आकाश से बने ,
मोह लोभ भय,सुख-दुःख नाम ।
तेजस उभरा रूप गुणों से ,
जिससे रस, जल तत्व समान॥
२०-
जल -तेजस के पुनः संयोग से,
बने सूक्ष्म-गुण, गंध-सुगंध ।
और रूप गुण से से पृथ्वी के ,
क्षिति रूपी सब रूप प्रबंध।
रूप-भाव रसना, रस, षटरस ,
सूक्ष्म से बने भावरस, नवरस ॥
२१-
पांच ज्ञान और कर्मेन्द्रियाँ ,
आँख कान और लिंग आदि सब,;
सभी इन्द्रियाँ -अहंकार के,
राजस रूप की विकृतियाँ थीं ।
देव अधिष्ठाता इन दस के,
और एक मन, सत्व अहं से॥
२२-
तीन कालकांज ९ नाम रूप जो,
ऋण धन उदासीन विभव थे।
अति कठोर विद्युत् बंधन से,
बांधे थे सब प्रकृति कणों को।
असुर रूप वे अक्रियता, अगति,
के कारण थे सृष्टि कणों के॥
२३-
असुरों१० ने आकर्षित करके,
किया इष्टकाओं को बंधित;
मूल इकाई जो ऊर्जा की ।
क्रोधित इंद्र११ ने किया आक्रमण,
बिखर गए, गति मिली कणों को;
हुआ तभी से बोध काल का॥
२४-
बिखरे कालकांज- गतिमय कण ,
दो रूपों में, पिंड बन गए।
फूले- ऊर्जा रूप, विरल जो,
ध्यूलोक के शुन:१२ कहलाये।
बने सूर्य, तारे, नक्षत्र औ ,
गतिमय नीहारिका आदि सब॥
२५-
घनीभूत जो भूत आदि कण,
ठोस पिण्ड१३ के रूप बन गए ।
अंतरिक्ष में गतिमय होकर,
पृथ्वी, ग्रह, उपग्रह होगये।
घूम रहे थे द्यूलोक में ,
बिखरे सारे महाकाश में॥
२६-
पृथ्वी सूर्य चन्द्र आपस में,
हैं सापेक्ष, समय की गति के।
ये भी कालकांज कहलाये,
बनी समय की मूल इष्टका१४ ,
इनकी गति से, जन्म हुआ यूं,
काल-बोध का, संवत्सर का॥ .......
(कुंजिका----१=प्रत्येक कण व तत्व का मूल भाव-तत्व , जिसे भारतीय दर्शन में वस्तु की आत्मा या अभिमानी देव या चेतन शक्ति कहा गया है जिससे 'कण कण में भगवान ' का दर्शन आस्तित्व में आया ; २=तीन आयाम वाले पदार्थ का मूल अणु ; ३= इन्द्रियों का मूल दृष्टा भाव ; ४=विश्व निर्माण का मूल तैयार तत्व (कोस्मिक सूप); ५= अजन्मा ( नित्य) जीव , परमात्मा का अंश जीवात्मा ; ६= पंचभूत व जीवात्मा सहित पंचभूत पदार्थ, पदार्थ बनाने की तैयार मिट्टी ; ७= मूल ३३ आदि तत्व-भाव/ भौतिकी -रसायन के ३३ बेसिक परमाणु ; ८= रूप भाव व गुणों में परिवर्तन --प्रत्येक ऊर्जा+ द्रव्य कण प्रकृति के तीन मूल गुण -सत तम रज -के मूल रूप, गुण, भाव व सूक्ष्म भाव के अनुसार रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा विभिन्न रूप रस भाव पदार्थों का गठनकरते हैं ; ९= समय के अणु रूप; १०= कठोर रासायनिक बंधनों को असुर कहा गया है जो समय की इकाइयों को टूटने नहीं देते तथा सृष्टि निर्माण प्रक्रिया को रोके रहते हैं ; ११= विशेष विखंडन रासायनिक प्रक्रिया ; १२ = अधिकतम ऊर्जा सम्पन्न भाग जो विरल गैसीय थे ; १३= घने , ठोस , भारी पदार्थों से युक्त कम ऊर्जा सम्पन्न भाग ; १४ =समय की मूल व्यवहारिक इकाई , यूनिट ।
---- यहाँ हम अशांति खंड के..द्वितीय भाग .छंद १४ से २६ तक का वर्णन करेंगे जिसमें -सृजित विभिन्न कणों से पदार्थ के त्रि-आयामी ( थ्री डायमेंशनल ) कण, पदार्थ, रूप, रस, भाव, इन्द्रियाँ, मन,स्वत्व, अहंकार, ३३ देव ( पदार्थों की मूल शक्तियां ),अंतरिक्ष, नक्षत्र,गृह-उपग्रह व समय की रचना कैसे हुई, को व्याख्यायित किया गया है। )
१४-
शक्ति और इन भूत-कणों के ,
संयोजन से बने जगत के,
सब पदार्थ और उनमें चेतन-
देव १ रूप में निहित होगया ;
भाव तत्व बन, बनी भूमिका,
त्रिआयामी सृष्टि-कणों२ की।।
१५-
वायु से अग्नि, मन और जल बने,
सब ऊर्जाएं बनी अग्नि से;
जल से सब जड़ तत्व बन गए।
मन से स्वत्व व भाव अहं सब,
बुद्धि, वृत्ति और तन्मात्राएँ ३,
सभी इन्द्रियां बनीं स्वत्व से ।।
१६-
विश्वौदन ४ के रूप, सृष्टि कण ,
और अजः५ , वह जीवात्मा भी ;
स्वः मह: जन : उच्चाकाश में ,
थे स्वतंत्र बन पंचौदन-अजः६ ;
पूर्व भूमिका में, बनने की,
पंचभूत रूपी पदार्थ सब ।।
१७-
ग्यारह रूद्र, बारह आदित्य , और-
अष्ट-बसु ये सभी देवगण ,
ऊर्जा-दृव्य भाव गुण युत थे।
शक्ति संगठक -इंद्र, प्रजापति ,
तैंतीस देव७ पड़े थे सिन्धु में ,
उस अशांति मय महाकाश में।।
१८-
सत-तंम-रज मय अहंकार के,
तामस विकृति ८ भाव रूप के,
मूल भाव और गुण भाव से,
शब्द और आकाश बन गए।
उसी शब्द के सूक्ष्म भाव से ,
बने धारणा ध्यान विचार ॥
१९-
मूल रूप-गुण आकाश का ,
बना स्पर्श-गुण रूप महान।
सूक्ष्म-भाव आकाश से बने ,
मोह लोभ भय,सुख-दुःख नाम ।
तेजस उभरा रूप गुणों से ,
जिससे रस, जल तत्व समान॥
२०-
जल -तेजस के पुनः संयोग से,
बने सूक्ष्म-गुण, गंध-सुगंध ।
और रूप गुण से से पृथ्वी के ,
क्षिति रूपी सब रूप प्रबंध।
रूप-भाव रसना, रस, षटरस ,
सूक्ष्म से बने भावरस, नवरस ॥
२१-
पांच ज्ञान और कर्मेन्द्रियाँ ,
आँख कान और लिंग आदि सब,;
सभी इन्द्रियाँ -अहंकार के,
राजस रूप की विकृतियाँ थीं ।
देव अधिष्ठाता इन दस के,
और एक मन, सत्व अहं से॥
२२-
तीन कालकांज ९ नाम रूप जो,
ऋण धन उदासीन विभव थे।
अति कठोर विद्युत् बंधन से,
बांधे थे सब प्रकृति कणों को।
असुर रूप वे अक्रियता, अगति,
के कारण थे सृष्टि कणों के॥
२३-
असुरों१० ने आकर्षित करके,
किया इष्टकाओं को बंधित;
मूल इकाई जो ऊर्जा की ।
क्रोधित इंद्र११ ने किया आक्रमण,
बिखर गए, गति मिली कणों को;
हुआ तभी से बोध काल का॥
२४-
बिखरे कालकांज- गतिमय कण ,
दो रूपों में, पिंड बन गए।
फूले- ऊर्जा रूप, विरल जो,
ध्यूलोक के शुन:१२ कहलाये।
बने सूर्य, तारे, नक्षत्र औ ,
गतिमय नीहारिका आदि सब॥
२५-
घनीभूत जो भूत आदि कण,
ठोस पिण्ड१३ के रूप बन गए ।
अंतरिक्ष में गतिमय होकर,
पृथ्वी, ग्रह, उपग्रह होगये।
घूम रहे थे द्यूलोक में ,
बिखरे सारे महाकाश में॥
२६-
पृथ्वी सूर्य चन्द्र आपस में,
हैं सापेक्ष, समय की गति के।
ये भी कालकांज कहलाये,
बनी समय की मूल इष्टका१४ ,
इनकी गति से, जन्म हुआ यूं,
काल-बोध का, संवत्सर का॥ .......
(कुंजिका----१=प्रत्येक कण व तत्व का मूल भाव-तत्व , जिसे भारतीय दर्शन में वस्तु की आत्मा या अभिमानी देव या चेतन शक्ति कहा गया है जिससे 'कण कण में भगवान ' का दर्शन आस्तित्व में आया ; २=तीन आयाम वाले पदार्थ का मूल अणु ; ३= इन्द्रियों का मूल दृष्टा भाव ; ४=विश्व निर्माण का मूल तैयार तत्व (कोस्मिक सूप); ५= अजन्मा ( नित्य) जीव , परमात्मा का अंश जीवात्मा ; ६= पंचभूत व जीवात्मा सहित पंचभूत पदार्थ, पदार्थ बनाने की तैयार मिट्टी ; ७= मूल ३३ आदि तत्व-भाव/ भौतिकी -रसायन के ३३ बेसिक परमाणु ; ८= रूप भाव व गुणों में परिवर्तन --प्रत्येक ऊर्जा+ द्रव्य कण प्रकृति के तीन मूल गुण -सत तम रज -के मूल रूप, गुण, भाव व सूक्ष्म भाव के अनुसार रासायनिक व भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा विभिन्न रूप रस भाव पदार्थों का गठनकरते हैं ; ९= समय के अणु रूप; १०= कठोर रासायनिक बंधनों को असुर कहा गया है जो समय की इकाइयों को टूटने नहीं देते तथा सृष्टि निर्माण प्रक्रिया को रोके रहते हैं ; ११= विशेष विखंडन रासायनिक प्रक्रिया ; १२ = अधिकतम ऊर्जा सम्पन्न भाग जो विरल गैसीय थे ; १३= घने , ठोस , भारी पदार्थों से युक्त कम ऊर्जा सम्पन्न भाग ; १४ =समय की मूल व्यवहारिक इकाई , यूनिट ।
---क्रमश: अशांति खंड --तृतीय भाग --अगली पोस्ट में ...
2 टिप्पणियां:
विषयानुसार लिखेँ....
Ramesh
8756046511
इससे आपका क्या तात्पर्य है ..कृपया स्पष्ट करें...
एक टिप्पणी भेजें