....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आज जब मैं हर जगह ,
छल द्वंद्व द्वेष पाखण्ड झूठ ,
अत्याचार व अन्याय -अनाचार
को देखता हूँ ;
उनके कारण और निवारण पर ,
विचार करता हूँ ,
तो मुझे लगता है कि -
दोषी मैं ही हूँ ,
सिर्फ़ मैं ही हूँ ।
क्यों मैं आज़ादी के पचास वर्ष बाद भी
अंग्रेज़ी में बोलता हूँ ,
राशन की दुकान पर बैठ कर ,
झूठ बोलता हूँ , कम तोलता हूँ |
क्यों मैंबैंक के लाइन में लगना
अपनी हेठी समझता हूँ ,
यन केन प्रकारेण ,
पीछे से काम कराने को तरसताहूँ |
क्यों मैं 'ग्रेपवाइन' व 'ब्लोइंग मिस्ट'
के ही पेंटिंग्स बनाता हूँ ,
'प्रसाद' और 'कालिदास' को भूलकर
शेक्सपीयर के ही नाटक दिखाता हूँ
क्यों मैं सरकारी गाडी में ,
भतीजे की शादी में जाता हूँ,
प्राइवेट यात्रा का भी ,
टीऐ पास कराता हूँ |
क्यों मैं किसी को जन सम्पत्ति -
नष्ट करते देखकर नहीं टोकता हूँ ,
स्वयं भला रहने हेतु
जन-धन की हानि नहीं रोकता हूँ |
क्यों मैं रास्ते रोक कर
शामियाने लगवाता हूँ ,
झूठी शान के लिए
अच्छे खासे सड़क को बर्वाद कराता हूँ |
क्यों मैं किसी सत्यनिष्ठ व्यक्ति को देखकर,
नाक-मुंह सिकोड़ लेता हूँ ,
सामने ही अपराध, भ्रष्टाचार ,लूट-खसोट , बलात्कार
होते देख कर भी मुंह मोड़ लेता हूँ
क्यों मैं कलेवा की जगह ब्रेकफास्ट व
खाने की जगह लंच उडाता हूँ ,
राम नवमी की वजाय , धूम धाम से
वेलेंटाइन डे मनाता हूँ |
क्यों मैं रिश्वत के पहिये को
और आगे बढाता हूँ,
एक जगह लेता हूँ
छत्तीस जगह देता हूँ |
क्यों मैं भ्रष्ट लोगों को वोट देकर
भ्रष्ट सरकार बनाता हूँ ,
अपने कष्टों की गठरी
अपने हाथों उठाता हूँ |
क्यों मैंने अपना संविधान
अन्ग्रेजी में बनाया ,
जो अधिकांश जन समूह की
समझ में ही न आया |
आप लड़िये या झगडिये ,
दोष चाहे एक दूसरे पर मढिये ,
दोष इसका है न उसका है न तेरा है ,
मुझे शूली पर चढादो ,
दोष मेरा है।
आज जब मैं हर जगह ,
छल द्वंद्व द्वेष पाखण्ड झूठ ,
अत्याचार व अन्याय -अनाचार
को देखता हूँ ;
उनके कारण और निवारण पर ,
विचार करता हूँ ,
तो मुझे लगता है कि -
दोषी मैं ही हूँ ,
सिर्फ़ मैं ही हूँ ।
क्यों मैं आज़ादी के पचास वर्ष बाद भी
अंग्रेज़ी में बोलता हूँ ,
राशन की दुकान पर बैठ कर ,
झूठ बोलता हूँ , कम तोलता हूँ |
क्यों मैंबैंक के लाइन में लगना
अपनी हेठी समझता हूँ ,
यन केन प्रकारेण ,
पीछे से काम कराने को तरसताहूँ |
क्यों मैं 'ग्रेपवाइन' व 'ब्लोइंग मिस्ट'
के ही पेंटिंग्स बनाता हूँ ,
'प्रसाद' और 'कालिदास' को भूलकर
शेक्सपीयर के ही नाटक दिखाता हूँ
क्यों मैं सरकारी गाडी में ,
भतीजे की शादी में जाता हूँ,
प्राइवेट यात्रा का भी ,
टीऐ पास कराता हूँ |
क्यों मैं किसी को जन सम्पत्ति -
नष्ट करते देखकर नहीं टोकता हूँ ,
स्वयं भला रहने हेतु
जन-धन की हानि नहीं रोकता हूँ |
क्यों मैं रास्ते रोक कर
शामियाने लगवाता हूँ ,
झूठी शान के लिए
अच्छे खासे सड़क को बर्वाद कराता हूँ |
क्यों मैं किसी सत्यनिष्ठ व्यक्ति को देखकर,
नाक-मुंह सिकोड़ लेता हूँ ,
सामने ही अपराध, भ्रष्टाचार ,लूट-खसोट , बलात्कार
होते देख कर भी मुंह मोड़ लेता हूँ
क्यों मैं कलेवा की जगह ब्रेकफास्ट व
खाने की जगह लंच उडाता हूँ ,
राम नवमी की वजाय , धूम धाम से
वेलेंटाइन डे मनाता हूँ |
क्यों मैं रिश्वत के पहिये को
और आगे बढाता हूँ,
एक जगह लेता हूँ
छत्तीस जगह देता हूँ |
क्यों मैं भ्रष्ट लोगों को वोट देकर
भ्रष्ट सरकार बनाता हूँ ,
अपने कष्टों की गठरी
अपने हाथों उठाता हूँ |
क्यों मैंने अपना संविधान
अन्ग्रेजी में बनाया ,
जो अधिकांश जन समूह की
समझ में ही न आया |
आप लड़िये या झगडिये ,
दोष चाहे एक दूसरे पर मढिये ,
दोष इसका है न उसका है न तेरा है ,
मुझे शूली पर चढादो ,
दोष मेरा है।
2 टिप्पणियां:
बढ़िया व्यंग्य विड्म्बन खुद से खुद की बात .आभार आपकी सद्य टिपण्णी का सर जी ,भाई साहब जी .
बीज हम ही ने डाले पहले,
वृक्ष यहाँ, आश्चर्य कहाँ है।
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