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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 23 जनवरी 2013

श्री लंका यात्रावृत्त ..भाग पांच ---पोलोनरूवा .....



                                 ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                             २४-१२-१२ को सिगीरिया फ़ोरेस्ट विलेज के रिसोर्ट में रात्रि-विश्राम के पश्चात्  २५-१२-१२ प्रातः को  नाश्ते के बाद हमारा कारवां प्री-हिस्टोरिक साइट्स  एवं एक और प्राचीन राजधानी पोलोनरूवा के लिए चल दिया जहां प्री-हिस्टोरीकल सभ्यता  व नगर के अवशेष  व  म्यूज़ियम  हैं| रास्ते में   मिन्नेरिया फारेस्ट रेंज के  वन में जंगली हाथियों का झुण्ड चरते हुए लगभग सड़क के एक दम नज़दीक आगया था | सुन्दर व दुर्लभ नज़ारा  सभी  ने कमरों में कैद किया | दम्बूला रोड पर बुटीक-कला के कारखाने  में बुटीक-छपाई कला का कारीगरों ने प्रदर्शन किया  एवं  पब्लिक रिलेशन अधिकारी द्वारा जानकारी  दी गयी, शो-रूम व विक्रय -केंद्र का भी अवलोकन किया गया |  त्रिंकोमाली रोड पर दम्बूला के निकट प्रसिद्द 'गामिनी जेम एंड ज्वेलरी'  के  शो रूम में पब्लिक रिलेशन अधिकारी द्वारा  श्रीलंका के प्रसिद्द नगर रतनपुरा ( जिसके रत्नों के कारण श्री लंका  रत्नद्वीप कहलाता था )में  विभिन्न रत्नों के खानों के  निकालने के अत्यंत जोखिमपूर्ण व श्रमसाध्य कार्य एवं उनकी प्राप्ति को फिल्म द्वारा दिखाया व समझाया गया | तदुपरांत घिसने, चमकाने, कटिंग आदि के उपकरण व कारखाना भी दिखाया गया | काफी बड़े शो-रूम में काफी मात्रा में विभिन्न प्रकार के रत्न एवं आभूषण का अच्छा भंडार था| रीना जी एवं सुषमा जी ने कई वेराइटी के रत्न एवं आभूषण खरीद डाले | शायद कुछ बाजिव दाम लगे होंगें |
मिनीरिया फारेस्ट में जंगली हाथियों का दल
सुषमा जी व रीना रतनपुरा के जेम्स खरीदते हुए
बुटीक शोरूम
        

बुटीक - कारखाना एवं सिंहली महिला सुपर वाइज़र..विशेष सिंहली स्टाइल की साडी में






विशाल पराक्रम समुद्र लेक
               दोपहर को दो बजे तक हम लोग पोलोनरूवा गाँव पहुंचे | बहुत बड़ी अथाह सागर के समान  पराक्रम समुद्र लेक के किनारे प्री-हिस्टोरिक  म्यूज़ियम है| वही नगर के लिए नालियों द्वारा  शानदार प्राचीन जल सप्लाई सिस्टम भी है |
             

 अनंत नाग पोकुना व दीप उयाना
              म्यूज़ियम के समीप ही किंग पराक्रम वाहू ११५३ एडी द्वारा बनवाया सभागार , निसान्क्मला  ११९६ एडी द्वारा निर्माण कराया गया स्नान-का तालाब 'अनंत नाग पोकुना ' ' व आइस लेंड  सभागार व बाग़ 'दीप उयाना '( द्वीप-उद्यान) है जिसे किंग पराक्रम समुद्र  ने अपनी  ग्रीष्म कालीन राजधानी  'कलिंग उयाना '( कलिंग प्राचीन भारतीय  सिंहल राज्य --आज का उडीसा... ) का नाम दिया था |
              पोलोनारूवा म्यूज़ियम -- में फोटोग्राफी मना है , टिकट २५ डालर व भारतीयों के लिए आधी १२.५ डालर है |अन्दर प्रागेतिहासिक काल के कई चिन्ह , हरप्पा सभ्यता की भांति ...मनके , टेराकोटा मूर्तियां, पके-मिट्टी के  वर्तन, आभूषण, मूर्तियाँ आदि प्रदर्शित  हैं| बौद्ध कालीन  अवशेष भी | सूर्य देव की मूर्ति -दो पत्नियां ऊषा-प्रत्यूषा के साथ प्रथम बार देखने को मिली , गज-लक्ष्मी -- जिसमें लक्ष्मी पर दोनों ओरसे हाथी जल सिंचन करके अभिषेक करते हुए...., विष्णु,  शिव का नंदी बुल , शिव-लिंग, कार्तिकेय व गणेश , गन्धर्वों, यक्षों की मूर्तियाँ , चौमुखा दीप , शिव-भक्त सुन्दर स्त्री  प्रगीतावती का कुरूप होकर  काली-कोविल बन जाने पर पति व समाज द्ववारा परित्याग एवं शिव के तांडव नृत्य से ठीक होने की कथा सहित प्रतिमा हिन्दू-धर्म के प्रतीक एवं  शिव-पूजा के होने के प्रमाण है जो यक्ष-कुबेर व रक्ष-रावण के काल का स्मरण करा सकते  हैं मूर्तियाँ चाहे बाद के काल में निर्मित की गई हों | मानव कंकाल के अधूरे अवशेष भी प्री-एतिहासिक काल की सभ्यता का भान कराते हैं|
जंगल में प्री-हिस्टोरिक सरीसृप -इगुआना


सतमहला भवन
गज लक्ष्मी
बौद्ध  स्तूप पर रीना आराध्य व सुषमा जी
बौद्ध  मंदिर में पुष्पों से पूजा
               पोलोनारूवा प्री -हिस्टोरिक नगर  साईट पर .. पराक्रम  बाहू का निर्मित सतमहला भवन , जिसमें  अब भी सात मंजिले मौजूद हैं ...प्लास्तर  उखड गया है परन्तु दूसरी मंजिल पर किसी पुरुष की मूर्ति व  छटी मंजिल पर स्त्री मूर्ति नज़र आती है| नज़दीक ही एक बहुत बडी शिला पर जो सतमहला व समीप के ही बौद्ध मंदिर की बगल में है,  किंग निसंकमला  के वंश एवं वीरता के किस्से लिखे गये  हैं , यह भी कि यह शिला १०० मील दूर मिहिंताले से  यहाँ लाई गयी  थी | इस शिला पर गज-लक्ष्मी की मूर्ति है  जो आम भारतीय मूर्तियों व चित्रों में देखी जाती है |समीप ही बौद्ध मंदिर है जिसे  मूल टूथ टेम्पल कहा जाता है , केंडी स्थित टूथ टेम्पल से पहले महात्मा  बुद्ध के दांत के अवशेष यहीं रखे गए थे |  ११ एडी का बौद्ध स्तूप  है जिसमें स्तूप  के चारों ओर प्रत्येक दिशा  में एक बुद्ध  मूर्ति है, स्तूप परकोटे से घिरा है |जिसकी सीढ़ियों पर गन्धर्व की भाँति  मानवाकृति व तथाकथित  मून स्टोन एवं गार्ड-स्टोन हैं जो हिन्दू व गन्धर्व कला के कुम्भ हस्त द्वारपाल लगते है शेष फण से नाग कालीन प्रतीत होते हैं| जंगल क्षेत्र में प्राचीन दुर्लभ सरीसृप , बड़ी छिपकली जैसे जंतु इगुआना  के दर्शन भी हुए |

सुनसान व उपेक्षित -प्री-हिस्टोरिक शिव मंदिर पर निर्विकार एवं रीना अन्दर प्रांगण  में शिव-लिंग

काले कान  व लाल मुख बन्दर

थूपारामा
               शिव-मंदिर .. जहां बौद्ध मंदिर में जूते उतारने का बोर्ड लगा है  व पूजा  भी होती है वही दूसरी ओर शिव-लिंग  सहित शिवमंदिर बिना किसी देख रेख के , जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है जूते पहन कर या चाहे जैसे जाएँ | मंदिर अति-प्राचीन ..शायद सबसे प्राचीन इमारत है|  समीप ही कुबेर की मूर्ति व  किसी प्रागैतिहासिक विश्वविद्यालय के भांति किसी संस्थान के अवशेष हैं |जिसे बौद्ध  विहार बताया जाता है | लंकातिलक मंदिर का
 यक्ष -कुबेर की मूर्ति
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नवीनीकरण किया जारहा है यह काफी ऊंचा व दोमहला इमारत लगती है | दरवाजे, छतें, खिड़कियों व खम्भों की कारीगरी, नक्काशी काफी सुन्दर है  व प्राचीन भारतीय घरों से मिलती-जुलती  है|  अन्य निवास-स्थानों , मंदिरों , सभामंडप आदि के अवशेष हैं जिनमें बीच  में शिव-लिंग एवं डिजायनदार खम्भे हैं | काले कान व लाल मुख व सुनहरे शरीर वाले पूंछ वाले व पूंछहींन बंदर हर ओर दिखाई पड़ते हैं परन्तु अपेक्षाकृत शान्ति-प्रकृति के,  वे उदंड नहीं हैं |
सिंहल सभाभवन पर निर्विकार
सतमंजिला राज भवन के खंडहर में  -निर्विकार व रीना , आराध्य
प्राचीन मंदिर --मध्य में शिव-लिंग ..डिजायन दार खम्भे

सभाभवन की दीवार -हाथी, सिंह व बौने मानव विभिन्न मुद्राओं में
            सिंहल सभा-भवन व स्नान- तालाब व  सत मंजिला  राज-महल -- आगे अन्दर कुछ घना वन प्रदेश  है  कच्चे -पक्के प्राचीन रास्ते के दोनों ओर क्रमबद्ध  दुकानों व बाज़ार के अवशेष है जिससे प्रतीत होता है कि यह नगर का प्रमुख व अच्छा बाज़ार था एवं नगर समृद्धिपूर्ण रहा होगा  ...सिंहल सभाभवन विशाल सभाभवन का अवशेष है जिसमें हाथियों, सिंहों व बौने मानवों  के विभिन्न भाव-भंगिमाओं सहित भित्ति-मूर्तियाँ है | द्वार पर सिन्हलों का प्रतीक चिन्ह सिंह हैं|लगभग चार -पांच फीट मोटाई की दीवारों से बने सत मंजिला राज-महल व कमरों के अवशेष जिनमें सिर्फ दो मंजिलें ही शेष हैं |
क्रमबद्ध दुकानें व बाजार में सुषमा जी व आराध्य
प्राचीन नगर के ध्वन्शावशेष --रीना व आराध्य
 
लेटे हुए बुद्ध की विशाल मूर्ति
               लेटे हुए बुद्ध पुलस्त्य मुनि की मूर्ति  व पुलस्त्यपुरा ---पराक्रम समुद्र   लेक के दूसरी ओर पहाडी के समीप छोटी सी झील के किनारे विशाल आकार की लेटे-बुद्ध की मूर्ति है समीप ही ध्यान में बैठे बुद्ध भी हैं | साथ में ही बहुत बड़ी शिला मूर्ति एक व्यक्ति की है जो दोनों हाथ में पुस्तक लिए हुए है| इसे पराक्रम बाहू की मूर्ति बताया  जाता है ..हाथ में ओला-लीफ  लिए हुए, उन्हें खेती का महान वैज्ञानिक कहा जाता है |
महर्षि पुलस्त्य
             परन्तु वास्तव में यह रावण के पितामह ( दादा या बाबा ), पिता  विश्रवा  मुनि के पिता महामुनि व  प्रारंभिक मानव एवं ब्रह्मा के पुत्र सप्तर्षियों  में से एक ऋषि पुलस्त्य की मूर्ति है , जो एक ब्राह्मण थे एवं स्वयं महान वैज्ञानिक , कृषि वैज्ञानिक , महान विचारक-दार्शनिक  थे एवं हाथ में  प्राचीन लिखने के पत्र ,अरक-पत्र की( ताड़ पत्र या भोजपत्र ) पुस्तक है |
                            वस्तुतः पोलोनरूवा का वास्तविक नाम पुलस्त्यपुरा....पुलस्त्यनगर  था जो बौद्ध काल में पोलोनरूवा कर दिया गया|








2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

संस्कृतियों के बिखरे अध्याय..सुन्दर चित्र श्रंखला..

shyam gupta ने कहा…

सचमुच ...धन्यवाद .