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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

किस्सा न्यूड व न्यूडिटी का----डा श्याम गुप्त

                           

                                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...    
ओह माई गॉड....यह चित्र तो वास्तव में ही माथा ठोकने की बात है
                       
                       प्रायः जब भी  कला, साहित्य व चित्र-कला में नग्नता व नग्न-चित्रों की बात होती है उन पर आपत्ति की जाती है तो यही कहा जाता है कि  " खजुराहो व कोणार्क  के देश में कौन नग्नता को परिभाषित करेगा ?"  इसका अर्थ जाहिर है कि स्वयं चित्र बनाने वाले, उनके समर्थक , नग्नता के समर्थक , पाश्चात्य -नग्न संस्कृति के समर्थक एवं आँख मूँद कर विदेशी संस्कृति के समर्थक --- भारतीयता या हिंदुत्ववादी तत्वों की परिभाषा, तर्कों उदाहरणों को नहीं समझेंगे  न मानेंगे | परन्तु जो समर्थक हैं उनकी परिभाषा कोई क्यों माने | हमें निम्न बिन्दुओं पर गौर करना चाहिए ....

                            जहां तक खजुराहो आदि की मूर्तियों की बात है .......... यह तर्क ही गलत है --- क्योंकि ...
-------- ये मूर्तियाँ एक विशिष्ट स्थान पर हैं जो सभी के लिए , पब्लिक प्लेस नहीं था अपितु सुदूर क्षेत्र में एक मंदिर ...एक विशेषज्ञ पाठशाला, संस्थान  की भांति..जिस प्रकार चिकित्सा विज्ञान के संस्थानों में सब कुछ दिखाया, सिखाया, पढ़ाया, प्रदर्शित होता  है ..परन्तु वह जन-जन सामान्य के लिए नहीं प्रदर्शित होता ..|
            आजकल  भी कितने लोग जन-सामान्य खुले आम  सपरिवार इन्हें देखने जाते हैं ...पति-पत्नी , युगल ही प्रायः जाते हैं, सोच -समझकर |
--------युग्म व मिथुन मूर्तियाँ सिर्फ मंदिर की बाहरी दीवारों पर ही मिलती हैं ...अन्दर नहीं ....आने वाले के लिए तात्विक अर्थ लिए कि साधना हेतु ये सब सांसारिकता  व  विकार बाहर छोड़कर आने होते हैं |
---------क्या हम इन्हें पब्लिक -पत्रों , जन सामान्य के साधनों पर प्रदर्शित करते हैं ...नहीं, सिर्फ कुछ व्यर्थ के ब्लागों, पत्रिकाओं, अदि के ..जो अनुचित है |
                               एकांत में तो सभी नंगे हैं तो हम नग्नता का पब्लिक- प्रदर्शन थोड़े ही करने लगेंगे | यह कुंठित व भ्रमित मानस के कर्म हैं |

                                यदि हम ध्यान से देखें तो विश्वभर के विभिन्न प्रसिद्ध चित्रकारों मूर्तिकारों आदि के  सभी चित्र, मूर्तियाँ आदि मूलतः एकल  हैं एवं अनाम-अज्ञात.. स्त्री-देह चित्रण या पुरुष देह चित्रण हैं .. जिसमें   सार्वजनिक न्यूडिटी की बात व आपत्ति की अधिक बात नहींआती, उन पर आपत्तियां भी नहीं हुईं |...आपत्तिजनक चित्र प्रायः वही होते हैं जिनमें ..देवी देवताओं  के , युगल-नग्नता , काम-क्रीडा आदि जैसे स्पष्ट या रेखांकित चित्रों की सर्जना की जाती है जो वास्तव में ही आपत्तिजनक होते हैं व होने ही चाहिए |ये विकृति मानसिकता व यौन-कुत्सिकता के चित्र हैं  एवं पाश्चात्य प्रभाव से ग्रस्त ....इन्हें निश्चय ही कलाकार की स्वतन्त्रता नहीं माना जा सकता ...आखिर कलाकार का भी समाज व व्यक्ति को सदाचरण-प्रेषण  के प्रति कुछ दायित्व होता है |  
                           आखिर हम या कलाकार क्या सन्देश देना चाहता है से चित्रों से , एसा कौन पुरुष-स्त्री है जिसे , या  हम सब को नारी देह का व उसकी सुन्दरता का ज्ञान नहीं है


                                 पुरातन व प्राचीन युग की मूर्तियों चित्रों आदि की भी तुलना करें तो ---मूर्तियाँ भारत में भी काफी प्राचीन समय से बनती रहीं है ...सिन्धुकालीन -सभ्यता से ..अधिकाँश  मूर्तियाँ वस्त्रों में हैं अन्यथा कुछ न्यूड-मूर्तियों  की बात है वे या तो सिर्फ एकल स्त्री की मूर्तियाँ है या उस समय की जब मूर्ति  कला का विकास नहीं था एवं वस्त्रों का भी चलन नहीं था|
सिन्धु-घाटी की न्यूड मूर्तियाँ
                                                                                                सिन्धु घाटी सभ्यता की मूर्तियाँ अधिकाँश  वस्त्र सहित हैं
                        


                            पाश्चात्य पौराणिक नग्न चित्रों व मूर्तियों के बारे में क्या कहा जाय ...वे भी  प्रायः नए युग के चित्रण ही हैं, उनकी अपने सभ्यता-संस्कृति के अनुसार | हमारे यहाँ कामदेव व रति के चित्रण भी नग्न नहीं होते ,,,वीनस  व टेम्पल की मूर्ति की भाँति  ....पूर्व व पाश्चात्य सभ्यता में अंतर तो है ही सदा से .....











                                                             ----चित्र...... इकोनोमिक टाइम्स व गूगल से साभार .....

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दृश्य और उनकी प्रस्तुति, यही दोनों नग्नता को कला और फूहड़ता में बाँटते हैं।

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपकी यह पोस्ट आज के (२१ फ़रवरी २०१३) Bulletinofblog पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद पांडे जी सही कहा ..आजकल नग्नता को ही कला कहते फिर रहे हैं हर कला क्षेत्र के अक्षम लोग....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद तुषार जी ....