....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- श्रीमती सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१४..
कैसो लोकतंत्र....
लोक वही तौ होवै है जो,
वासी, सूधौ-सुघर, देश कौ |
और तंत्र, जो बने सहायक,
ताके सुख-दुःख द्वंद्व रेख कौ |
आजु लोक तौ बहुरि यंत्रणा ,
के झूला में झूलि रहौ है |
और तंत्र अपुनी सत्ता के,
मद में अकड़ो फूलि रहौ है |
ताही कारन लोक भयौ है,
बहुरि दूरि निज कर्तव्यन ते|
तंत्र हू भयौ दूरि लोक के-
प्रति आपुनि करमन-धरमन ते |
लोक निजी स्वारथ रत है कें,
बिसरौ आपुन अधिकारन ते |
तंत्र भयौ स्वच्छंद रौंदिहै ,
जन कौं निज अत्याचारन ते |
सौ में अस्सी जनता नाहीं ,
जाकूं नेता चुनिवौ चाहै |
पर कैसो ये तंत्र तौऊ वो,
जनता कौ शासक बनि जावै |
सोचि समझि कै वोट देयं तौ ,
हम सब तंत्र ही बदल डारें |
शासन तंत्र करै कछु ऐसो,
बिना डरें सबही मत डारें |
अपने अपने क्षेत्रन के जो,
सूधे सुघर औ होयं उदार |
वोही होयं चुनाव में खड़े,
सांचे सरल रहें संस्कार |
नेहरू पन्त पटेल अटल से,
नेता जब चुनिकें आवें |
सभ्य देश वासी आपुनि ही,
अपने मत सब दैवे जावें |
सबते ज्यादा वोट पाय जो,
ताही अनुरूप सजै ये तंत्र |
लोकतंत्र तब बनि पावैगौ,
सांचुहि सुखद लोक कौ तंत्र ||
-------------क्रमश...भाव अरपन छह ...अतुकांत गीत ..अगली पोस्ट में ..
शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- श्रीमती सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है भाव अरपन पांच ...तुकांत रचनायें ...सुमन-१४..
कैसो लोकतंत्र....
लोक वही तौ होवै है जो,
वासी, सूधौ-सुघर, देश कौ |
और तंत्र, जो बने सहायक,
ताके सुख-दुःख द्वंद्व रेख कौ |
आजु लोक तौ बहुरि यंत्रणा ,
के झूला में झूलि रहौ है |
और तंत्र अपुनी सत्ता के,
मद में अकड़ो फूलि रहौ है |
ताही कारन लोक भयौ है,
बहुरि दूरि निज कर्तव्यन ते|
तंत्र हू भयौ दूरि लोक के-
प्रति आपुनि करमन-धरमन ते |
लोक निजी स्वारथ रत है कें,
बिसरौ आपुन अधिकारन ते |
तंत्र भयौ स्वच्छंद रौंदिहै ,
जन कौं निज अत्याचारन ते |
सौ में अस्सी जनता नाहीं ,
जाकूं नेता चुनिवौ चाहै |
पर कैसो ये तंत्र तौऊ वो,
जनता कौ शासक बनि जावै |
सोचि समझि कै वोट देयं तौ ,
हम सब तंत्र ही बदल डारें |
शासन तंत्र करै कछु ऐसो,
बिना डरें सबही मत डारें |
अपने अपने क्षेत्रन के जो,
सूधे सुघर औ होयं उदार |
वोही होयं चुनाव में खड़े,
सांचे सरल रहें संस्कार |
नेहरू पन्त पटेल अटल से,
नेता जब चुनिकें आवें |
सभ्य देश वासी आपुनि ही,
अपने मत सब दैवे जावें |
सबते ज्यादा वोट पाय जो,
ताही अनुरूप सजै ये तंत्र |
लोकतंत्र तब बनि पावैगौ,
सांचुहि सुखद लोक कौ तंत्र ||
-------------क्रमश...भाव अरपन छह ...अतुकांत गीत ..अगली पोस्ट में ..
6 टिप्पणियां:
सुन्दर..
नमस्कार जी
आपकी यह रचना कल बुधवार (05-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ब्रज-भाषा अब साहित्य के पटल पर बहुत कम दिखाई देती है -वर्तनाम समस्याओं से जुड़ी हुई तो और भी कम.रुचिकर प्रस्तुति!
धन्यवाद प्रतिभा जी ...उचित ही कहा...
---- इस संग्रह की अन्य रचनाएँ मेरे अन्य ब्लॉग ..साहित्य श्याम ..पर नियमित प्रकाशित की जा रही हैं.....
acchha laga kuchhh alag sa ...
धन्यवाद निशा जी....
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