....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
श्याम स्मृति.........
काव्य-रचना
---
दिन प्रतिदिन के लौकिक व्यवहार व जीवन मार्ग
पर चलते -चलते व्यक्ति विभिन्न विचारों, घटनाओं, मत-मतान्तरों,
व्यंजनाओं, वर्जनाओं, प्रश्नों, सामाजिक सरोकारों से दो-चार होता है |
जिज्ञासु व वैचारिक मन इन सभी को अपने अनुभव, ज्ञान व कर्म से
तौलता है | अपने अंतर के आलोक से अपना मत निर्धारित व स्थापित
करता है जो स्थापित मतों, विचारों व भावों से पृथक भी हो सकता है ,
और उनके समान भी | वही विचार जब माँ वाग्देवी सरस्वती की कृपा
-दया से लेखनी के माध्यम से कागज़ पर उतरते हैं तो काव्य-रचना
होजाते हैं |
2 टिप्पणियां:
आपकी यह रचना कल बुधवार (04-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 106 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
सादर
सरिता भाटिया
धन्यवाद सरिता जी ....
एक टिप्पणी भेजें