....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ज़न्नत की हकीकत वयां करती अंकल सैम की गाथा कथा .... आज के हमारे तथाकथित आधुनिक समाज की वस्तुस्थिति को व्याख्यायित करती वरिष्ठ कवि श्री रमेश जोशी की एक सुन्दर कविता....आधुनिक बैकुंठ....गर्भनाल पत्रिका के नवीनतम अंक .सितम्बर २०१३ .के सौजन्य से
यहाँ प्रस्तुत है , मुझे कविता बहुत सामयिक एवं समीचीन प्रतीत हुई अतः
पुनर्प्रसारित करना अच्छा लगा....यद्यपि कविता में समस्या का सम्पूर्ण
सांगोपांग वर्णन है और समाधान की स्पष्ट दिशा प्रतीत नहीं होती परन्तु
काव्य-भाव में ओत-प्रोत, समाधान की मूल दिशा 'स्व-इतिहास, स्व-संस्कृति की
स्वीकृति' निश्चित ही निर्दिष्ट होती है.... आपके विचार आमंत्रित
हैं.........
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2 टिप्पणियां:
रोचक सिद्धान्त
सही कहा पांडे जी धन्यवाद.....सिद्धांत तो रोचक होते हैं ...यदि उनका परिपालन रोचक एवं निर्दिष्ट रूप में हो तो क्या नहीं हो सकता.....
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