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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 3 नवंबर 2013

मुस्कुराओ जला कर दिए... डा श्याम गुप्त ...

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

मुस्कुराओ जला कर दिए,
दीप जगमग तो कर लीजिये |
दीप आशा के जलते रहें,
सौख्य समता सहज़ता लिए |

दीप को जब जलाओगे तुम,
सामने हम ही होंगे सनम |
अर्चना के दिए जब जलेंगे ,
याद में हम ही होंगे सनम |

भोर आशा की मन में जगे,
ऐसी दीपों की माला सजे |
दूर हों वे अँधेरे जहां के,
ज़िंदगी में उजाला भरे  |

तेरे दिल की ये तनहाइयां,
और अंधेरों की गहराइयाँ |
यादों के सहरा में भी सनम,
लायें जीवन में अंगडाइयां |

दीप की ज्योति से हो तरंगित,
तेरे मन का सुमन खिल उठे |
याद करके हमें मुस्कुराओ,
मुस्कुराओ जला कर दिए ||


2 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||

वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी

गावदी = मूर्ख / अबोध

virendra sharma ने कहा…


एक दीवार पे दीप जला था

मैं ये समझा तुम हंसती हो।

सुन्दर भाव अपनी प्रीत के नाम।