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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

विवाह पूर्व यौन संबंध में स्त्री विवेक के साथ पुरुष विवेक भी आवश्यक है --------- डा श्याम गुप्त .....

                                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



विवाह पूर्व यौन संबंध में स्त्री विवेक के साथ पुरुष विवेक भी आवश्यक है ---------  

             उच्च न्यायालय का द्वारा अभी पुरुष द्वारा शादी का झांसा देकर पर सम्बन्ध बनाने फिर शादी से मुकर जाने पर महिला द्वारा वलात्कार का मुकदमा दायर करने के एक प्रकरण में दिया गया फैसला बिलकुल सही है कि सहमति से संबंध बनाने पर इसे वलात्कार नहीं माना जायगा|  यह फैसला दूरगामी प्रभाव वाला एवं समाज के व्यापक हित तथा स्वयं यह स्त्री हित के अनुकूल ही है| आज के बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य में जहां स्त्री-पुरुष की संगति के मौके अधिक हैं, शादी पूर्व यौन सम्बन्ध आवश्यक तो नहीं, जो कभी नहीं रहे, परन्तु यदि स्त्री स्वयं यौन-सम्बन्ध बनाती है तो उसका अपना दायित्व है, अतः स्त्री को अपनी स्वयं की एक सीमा रेखा बनानी होगी | ……. यदि पढी-लिखीवालिग़ लड़की अपना हर फैसला लेने में स्वतंत्र लड़की-महिला अपनी इच्छा से सम्बन्ध बनाती है तो वह उसके परिणामों से भली भांति परिचित है ..उसे या तो स्वयं पर कंट्रोल करना चाहिए अथवा परिणाम को स्पोर्टिंग-स्वस्थ-भाव से लेना चाहिए……विवाह से मुकरजाना आदि सदा से ही होता आया है जो उभयपक्षीय स्वभाव है| पौराणिक गंगा-शांतनु...उर्वशी–पुरुरवा ..आदि स्त्रियों के पुरुष को त्याग कर स्वयं ही सम्बन्ध आगे न निभाने के उदाहारण हैं, और आज भी स्त्रियाँ भी ऐसा करती हैं|
        पौराणिक संबंधों में अर्जुन-चित्रांगदा, अर्जुन-उलूपी, भीम-हिडिम्बा, कुंती-सूर्य, मेनका-विश्वामित्र, दुष्यंत-शकुन्तला जैसे स्त्रियों की त्रुटियों के तमाम उदहारण हैं परन्तु किसी भी स्त्री ने अपनी त्रुटि को पुरुष पर लादने की प्रयत्न नहीं किया, न स्वयं को कमजोर साबित होने दिया ..अपितु स्वयं को समर्थ व पुरुष की सहायता के बिना भी जीकर दिखाया एवं समय पड़ने पर अपनी संतान को पिता की सहायता हेतु प्रस्तुत करके पुरुष से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध किया |
          राधा ने कब कृष्ण से शिकायत की अपितु अपने प्रेम को बंधन न बनने देने हेतु स्वयं उन्हें कर्तव्य पथ पर चलने को प्रेरित किया जिसके फलस्वरूप कृष्ण ...श्रीकृष्ण बने एवं विश्व को गीता जैसा कर्मयोग का सिद्धांत प्राप्त हुआ| आज भी कुछ महिलायें ऐसी होती हैं|
           इसके साथ ही एक अन्य मूलभूत बिंदु पुरुष-दायित्व का भी है| यद्यपि आज की  सशक्त-शिक्षित महिला को भावनात्मक आधार पर पुरुष द्वारा भरमाये जाने का आधार व आसार कम ही हैं फिर भी शादी से पूर्व यौन संबंधों में स्त्री को पुरुष द्वारा भावनात्मक रूप से भरमाये जाने की शंका सदैव रहती है | अतः पुरुष को भी अपना सामजिक दायित्व समझना चाहिये एवं ऐसे प्रकरण से बचना चाहिए | यदि स्त्री भावुकता की कमजोरी में या त्रुटिवश या नासमझी में त्रुटि करती है तो उन्हें अपने उस पुरुष- दायित्व को समझना चाहिए जिसे वे अपना पुरुषत्व कहते हैं एवं स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं |…… आज भी ऐसे दायित्व बोध-युत पुरुष होते हैं|
           पुरुष दायित्व के पौराणिक उदाहरण लें तो विश्व का सबसे पहला उदाहरण ऋग्वेद के यम-यमी प्रकरण का है | यम-यमी सूर्य की संतान हैं| किसी एकांत स्थल में यमी, यम से सम्बन्ध बनाने का आग्रह करती है | वह काल स्त्री की स्वतन्त्रता एवं स्वेच्छा का काल था, स्त्री की इच्छा का आदर करना पुरुष का कर्तव्य माना जाता था | परन्तु यम ने विभिन्न तर्कों से यमी को इस त्रुटिपूर्ण कृत्य से विरत किया | इसीलिये यम बाद में नियमों एवं अनुशासन के देवता हुए ..जिन्हें आज भी यमानुशासन एवं नियमानुशासन कहा जाता  है |
         अन्य उदाहरणों में.... ताड़का-विश्वामित्र प्रकरण...शूर्पणखा–राम प्रकरण....अर्जुन-उत्तरा प्रकरण आदि पुरुष की दृड़ता के उदहारण हैं|




 

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्वेच्छा और अनुशासन के बीच बहता जीवन का सत्य।

shyam gupta ने कहा…

हाँ यही स्वानुशासन है....आत्मानुशासन ...योगानुशासन..सेल्फ कंट्रोल ..