....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
-----------हिन्दी के विरुद्ध एक और षडयंत्र-----
-----जिस प्रकार पुरा युग में संसार की समस्त भाषाओं का संस्कार कर के संस्कृत भाषा बनी थी जो विश्व भाषा हुई, उसी प्रकार समस्त भारतीय भाषाओं का समन्वय-संस्कार करके आज की हिन्दी बनी और देश में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हुई |
---प्रारम्भ से ही हिन्दी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जाते रहे हैं क्योंकि यह देश की सांस्कृतिक समन्वय की भाषा व पहचान बनती जारही है | दक्षिण भारत में हिन्दी विरोध , अपने ही मूल प्रदेश में , भोजपुरी, अवधी , ब्रजभाषा, उर्दू आदि बोलियों को हिन्दी से प्रथक रूप में अपनाने का षडयंत्र, जबकि ये सभी देश भर की बोलियाँ हिन्दी की ही बहनें हैं, हिन्दी में सम्मिलित हैं |
-----------हिन्दी के विरुद्ध एक और षडयंत्र-----
-----जिस प्रकार पुरा युग में संसार की समस्त भाषाओं का संस्कार कर के संस्कृत भाषा बनी थी जो विश्व भाषा हुई, उसी प्रकार समस्त भारतीय भाषाओं का समन्वय-संस्कार करके आज की हिन्दी बनी और देश में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हुई |
---प्रारम्भ से ही हिन्दी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जाते रहे हैं क्योंकि यह देश की सांस्कृतिक समन्वय की भाषा व पहचान बनती जारही है | दक्षिण भारत में हिन्दी विरोध , अपने ही मूल प्रदेश में , भोजपुरी, अवधी , ब्रजभाषा, उर्दू आदि बोलियों को हिन्दी से प्रथक रूप में अपनाने का षडयंत्र, जबकि ये सभी देश भर की बोलियाँ हिन्दी की ही बहनें हैं, हिन्दी में सम्मिलित हैं |
----- अब नीचे चित्र में समाचार देखिये ------ हम बड़े प्रसन्न एवं
गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि एक विदेशी युवती हिन्दी में लिखती है, बात
करती है , राजस्थानी सीख रही है ..परन्तु राजस्थानी को भाषा बताकर, उसे
हिन्दी बहन होना नकारकर, राजस्थानी को भारत में न्याय न मिलने की बात फैला
कर , हिन्दी, हिन्दू, हिन्स्तान की संस्कृति व देश के विरुद्ध सांस्कृतिक व
राजनैतिक षडयंत्र की नीव डाली जा रही है ...मैकाले के षडयंत्र की
भाँति..|
---हम सोचें व समझें ....|
---हम सोचें व समझें ....|
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुती का लिंक 23 - 07 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2045 में दिया जाएगा
धन्यवाद
जो लोग भाषा और बोली में अंतर नहीं समझते, वे ही ऐसी भ्रमपूर्ण बातें फैलाते हैं। जब हम सभी हिंदुस्तानी ही इस फर्क को नहीं समझ पाते हैं तो विदेशी क्या समझेगें। ।
चिंतनशील प्रस्तुति
धन्यवाद दिलबाग एवं कविता रावत जी ........
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