....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मेरी सद्य प्रकाशित कृति--कुछ शायरी की बात होजाए
बात मेरी न सुने सारा ज़माना चाहे
चंद जाहिद तो सुनेंगे औ सुधर जायेंगे | ---ड़ा श्याम गुप्त
----आभार---
उन सभी नामचीन्ह, गुमनाम, अनाम, बेनाम शायरों-शायराओं, उस्तादों, ग़ज़लगो, गज़लनवीसों, ग़ज़लकारों का जिनकी शायरी व गज़लें सुनते-पढ़ते शायरी व ग़ज़ल में रूचि, समझ व कहने-लिखने की इच्छा जागृत हुई | ----- ड़ा श्याम गुप्त ..
------मूल कथ्य -----
-------जब मैंने विभिन्न शायरों की शायरी—गज़लें व नज्में आदि सुनी-पढीं व देखीं विशेषतया गज़ल...जो विविध प्रकार की थीं..बिना काफिया, बिना रदीफ, वज्न आदि का उठना गिरना आदि ...तो मुझे ख्याल आया बस लय व गति से गाते चलिए, गुनगुनाते चलिए गज़ल बनती चली जायगी | कुछ फिसलती गज़लें होंगी कुछ भटकती ग़ज़ल| हाँ लय गति यति युक्त गेयता व भाव-सम्प्रेषणयुक्तता तथा सामाजिक-सरोकार युक्त होना चाहिए और आपके पास भाषा, भाव, विषय-ज्ञान व कथ्य-शक्ति होना चाहिए|
बस गाते-गुनगुनाते जो गज़ले-नज्में आदि बनतीं गयीं... जिनमें ‘त्रिपदा-अगीत गज़ल’, अति-लघु नज़्म आदि कुछ नए प्रयोग भी किये गए है.. यहाँ पेश हैं...मुलाहिजा फरमाइए ........
------डा श्याम गुप्त
--------परम सत्ता नमन ---- ( वंदना )
बड़े बड़ों के ढीले सुर - तेवर होजाते हैं |
क्या तिनका क्या गर्वोन्नत गिरि नत होजाते हैं |
कुछ भी तेरे हाथ नहीं रे नर तू फिर क्यों ऐंठा,
उस असीम के आगे अबके सिर झुक जाते हैं |
हमने बड़े बड़े बलशाली पर्वत-गिरि देखे ,
बरसे पानी कड़के बिजली सब ढह जाते हैं|
आंधी बिजली तूफानों ने तेवर खूब दिखाए
मन की दृढ़ता के आगे वे क्या कर पाते हैं |
चाहे जितना राग-द्वेष , छल-छंद करे कोई
सत्य राह के आगे सब नत सिर होजाते हैं |
तूफानों के बीच भंवर में नैया डगमग डोले
मांझी के मज़बूत इरादे खेकर ले जाते हैं|
सत पौरुष बल मन की दृढ़ता, अपने निज पे भरोसा
हो ईश्वर पर श्रृद्धा तब ये गुण मिल पाते हैं |
वही भरोसा बल है सत है वही आत्मविश्वास
उसे भूलते अहं-भाव रत, कष्ट उठाते हैं|
जिसके आगे बड़े बड़ों की अकड नहीं चल पाए ,
श्याम' परमसत्ता के आगे शीश झुकाते हैं||
कुछ शायरी की बात होजाए ---डा श्याम गुप्त ...
मेरी सद्य प्रकाशित कृति--कुछ शायरी की बात होजाए
बात मेरी न सुने सारा ज़माना चाहे
चंद जाहिद तो सुनेंगे औ सुधर जायेंगे | ---ड़ा श्याम गुप्त
----आभार---
उन सभी नामचीन्ह, गुमनाम, अनाम, बेनाम शायरों-शायराओं, उस्तादों, ग़ज़लगो, गज़लनवीसों, ग़ज़लकारों का जिनकी शायरी व गज़लें सुनते-पढ़ते शायरी व ग़ज़ल में रूचि, समझ व कहने-लिखने की इच्छा जागृत हुई | ----- ड़ा श्याम गुप्त ..
------मूल कथ्य -----
-------जब मैंने विभिन्न शायरों की शायरी—गज़लें व नज्में आदि सुनी-पढीं व देखीं विशेषतया गज़ल...जो विविध प्रकार की थीं..बिना काफिया, बिना रदीफ, वज्न आदि का उठना गिरना आदि ...तो मुझे ख्याल आया बस लय व गति से गाते चलिए, गुनगुनाते चलिए गज़ल बनती चली जायगी | कुछ फिसलती गज़लें होंगी कुछ भटकती ग़ज़ल| हाँ लय गति यति युक्त गेयता व भाव-सम्प्रेषणयुक्तता तथा सामाजिक-सरोकार युक्त होना चाहिए और आपके पास भाषा, भाव, विषय-ज्ञान व कथ्य-शक्ति होना चाहिए|
बस गाते-गुनगुनाते जो गज़ले-नज्में आदि बनतीं गयीं... जिनमें ‘त्रिपदा-अगीत गज़ल’, अति-लघु नज़्म आदि कुछ नए प्रयोग भी किये गए है.. यहाँ पेश हैं...मुलाहिजा फरमाइए ........
------डा श्याम गुप्त
--------परम सत्ता नमन ---- ( वंदना )
बड़े बड़ों के ढीले सुर - तेवर होजाते हैं |
क्या तिनका क्या गर्वोन्नत गिरि नत होजाते हैं |
कुछ भी तेरे हाथ नहीं रे नर तू फिर क्यों ऐंठा,
उस असीम के आगे अबके सिर झुक जाते हैं |
हमने बड़े बड़े बलशाली पर्वत-गिरि देखे ,
बरसे पानी कड़के बिजली सब ढह जाते हैं|
आंधी बिजली तूफानों ने तेवर खूब दिखाए
मन की दृढ़ता के आगे वे क्या कर पाते हैं |
चाहे जितना राग-द्वेष , छल-छंद करे कोई
सत्य राह के आगे सब नत सिर होजाते हैं |
तूफानों के बीच भंवर में नैया डगमग डोले
मांझी के मज़बूत इरादे खेकर ले जाते हैं|
सत पौरुष बल मन की दृढ़ता, अपने निज पे भरोसा
हो ईश्वर पर श्रृद्धा तब ये गुण मिल पाते हैं |
वही भरोसा बल है सत है वही आत्मविश्वास
उसे भूलते अहं-भाव रत, कष्ट उठाते हैं|
जिसके आगे बड़े बड़ों की अकड नहीं चल पाए ,
श्याम' परमसत्ता के आगे शीश झुकाते हैं||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें