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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 22 जुलाई 2015

हिन्दी के विरुद्ध एक और षडयंत्र-----ड़ा श्याम गुप्त ....

                                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

 -----------हिन्दी के विरुद्ध एक और षडयंत्र-----
-----जिस प्रकार पुरा युग में संसार की समस्त भाषाओं का संस्कार कर के संस्कृत भाषा बनी थी जो विश्व भाषा हुई, उसी प्रकार समस्त भारतीय भाषाओं का समन्वय-संस्कार करके आज की हिन्दी बनी और देश में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हुई |
---प्रारम्भ से ही हिन्दी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जाते रहे हैं क्योंकि यह देश की सांस्कृतिक समन्वय की भाषा व पहचान बनती जारही है | दक्षिण भारत में हिन्दी विरोध , अपने ही मूल प्रदेश में , भोजपुरी, अवधी , ब्रजभाषा, उर्दू आदि बोलियों को हिन्दी से प्रथक रूप में अपनाने का षडयंत्र, जबकि ये सभी देश भर की बोलियाँ हिन्दी की ही बहनें हैं, हिन्दी में सम्मिलित हैं |
----- अब नीचे चित्र में समाचार देखिये ------ हम बड़े प्रसन्न एवं गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि एक विदेशी युवती हिन्दी में लिखती है, बात करती है , राजस्थानी सीख रही है ..परन्तु राजस्थानी को भाषा बताकर, उसे हिन्दी बहन होना नकारकर, राजस्थानी को भारत में न्याय न मिलने की बात फैला कर , हिन्दी, हिन्दू, हिन्स्तान की संस्कृति व देश के विरुद्ध सांस्कृतिक व राजनैतिक षडयंत्र की नीव डाली जा रही है ...मैकाले के षडयंत्र की भाँति..|
---हम सोचें व समझें ....|

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुती का लिंक 23 - 07 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2045 में दिया जाएगा
धन्यवाद

कविता रावत ने कहा…


जो लोग भाषा और बोली में अंतर नहीं समझते, वे ही ऐसी भ्रमपूर्ण बातें फैलाते हैं। जब हम सभी हिंदुस्तानी ही इस फर्क को नहीं समझ पाते हैं तो विदेशी क्या समझेगें। ।
चिंतनशील प्रस्तुति

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद दिलबाग एवं कविता रावत जी ........