....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आर्य नामकरण
अर्यमन या अर्यमा या अर्यमान
प्राचीन हिन्दू धर्म के एक देवता हैं जिनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। वे अदिति के
तीसरे पुत्र हैं और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक हैं। आकाश में आकाश गंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक
माना जाता है।
अर्यमा-- अदिति-कश्यप के पुत्र हैं एवं १२ आदित्यों में से एक आदित्य
हैं | जो इस प्रकार थे -विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरूण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन-विष्णु)
सूर्य से सम्बन्धित इस देवता का अधिकार
प्रात-रात्रि के चक्र पर माना जाता है। द्वादश आदित्यों में से एक जो बैशाख माह
में उदय होते हैं जिनकी किरणों की संख्या ३०० मानी जाती है | हिन्दू विवाहों में
वर-वधु उन्हें भी साक्षी मानकर विवाह-प्रण लेते हैं।
अर्यमा सूर्य का
ध्यान मन्त्र ----
अर्यमा
पुलहोऽथोर्ज: प्रहेति: पुंजिकस्थली।
नारद: कच्छनीरश्च नयन्त्येते स्म माधवम्।।1।।
मेरुश्रृंगान्तरचर: कमलाकरबान्धव:।
अर्यमा तु सदा भूत्यै भूयस्यै प्रणतस्य मे।।2।। --ऋग्वेद १०/१२६
नारद: कच्छनीरश्च नयन्त्येते स्म माधवम्।।1।।
मेरुश्रृंगान्तरचर: कमलाकरबान्धव:।
अर्यमा तु सदा भूत्यै भूयस्यै प्रणतस्य मे।।2।। --ऋग्वेद १०/१२६
----वैशाख मास में सूर्य अर्यमा नाम से
विख्यात हैं तथा पुलह ऋषि, उर्ज यक्ष, पुंजिकस्थली अप्सरा, प्रहेति राक्षस, कच्छनीर सर्प और नारद नामक गन्धर्व के साथ अपने रथ पर निवास करते हैं। मेरु पर्वत के शिखर
पर भ्रमण करनेवाले तथा कमलों के वन को विकसित करनेवाले भगवान् अर्यमा मुझ प्रणाम करनेवाले का सदा कल्याण करें। अर्यमा सूर्य दस
सहस्त्र किरणों के साथ तपते हैं तथा उनका पीत वर्ण है।
"अर्यमा" के लिये अन्य नाम ---आकाश
गंगा, पितृपति, पितृनाथ, विष्णुः, समकक्ष, अर्यमा, आदित्य, पितृ प्रधान, घनिष्ठ मित्र, सूर्य ...
देसी महीनों के हिसाब से सूर्य के नाम हैं - चैत्र मास में धाता, वैशाख में अर्यमा, ज्येष्ठ में- मित्र, आषाढ़ में वरुण, श्रावण में- इंद्र, भाद्रपद में- विवस्वान, आश्विन में पूषा, कार्तिक-पर्जन्य, मार्गशीर्ष में-अंशु, पौष में- भग, माघ में- त्वष्टा एवं फाल्गुन में विष्णु। इन नामों का स्मरण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।
देसी महीनों के हिसाब से सूर्य के नाम हैं - चैत्र मास में धाता, वैशाख में अर्यमा, ज्येष्ठ में- मित्र, आषाढ़ में वरुण, श्रावण में- इंद्र, भाद्रपद में- विवस्वान, आश्विन में पूषा, कार्तिक-पर्जन्य, मार्गशीर्ष में-अंशु, पौष में- भग, माघ में- त्वष्टा एवं फाल्गुन में विष्णु। इन नामों का स्मरण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।
विश्व के संचालन में यम, अर्यमा एवं इंद्र का हाथ है। इनमें से इहलोक पर यम का अधिराज्य होता है। पितृलोक पर अर्यमा का और देवलोक पर इंद्र का अधिपत्य रहता है। प्रारंभ में इहलोक पर पूर्ण रूप से यम का
आधिपत्य था अतः मनुष्यों के लिए अनुशासन को यम-नियम कहा गया | तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने यम को यमलोक व मृतकों का एवं मनु को
पृथ्वीलोक व मनुष्यों का अधीक्षक बनाया और वे मानव कहलाये|
अर्यमा का सामान्य अर्थ साथी, सहयोगी होता है, ये
आदर-सत्कार-सेवाभाव (होस्पीटेलिटी—जो मानव
के स्वाभाविक गुण हैं ) के वैदिक देवता हैं जिनका नाम मुख्यतया वरुण व मित्र
(सूर्य) के साथ लिया जाता है |
यूयं विश्वं परि पाथ वरुणो मित्रो अर्यमा
|
युष्माकंशर्मणि परिये सयाम सुप्रणीतयो अति दविष: ||.. ऋग्वेद १०/१२६
युष्माकंशर्मणि परिये सयाम सुप्रणीतयो अति दविष: ||.. ऋग्वेद १०/१२६
इन्द्र- ऐश्वर्य, शक्ति, प्रगति और विजय सूचक देता है। वरुण- पाप विमोचक शक्ति का
आदर्श प्रस्तुत करते हैं| मित्र- मैत्री व आपसी स्नेह तथा अर्यमा- उंच-नीच
विभेद व्यवहार और न्यायाकारिता, उवर्रता के देवता हैं | अच्छे मानव में ये गुण होना अनिवार्य है तभी वह आर्य कहलाने योग्य है |
ऐश्वर्य प्राप्ति के देवता अर्यमा----. मित्रस्यार्यम्णः मकथा राधाम सखाय
स्तो | महि प्सरो वरुणस्य ॥७॥---हे मित्रो!
मित्र, अर्यमा और वरुण देवो के महान ऐश्वर्य साधनो का किस प्रकार
वर्णन करें ? अर्थात इनकी महिमा अपार
है॥७॥
।ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं
तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें |
पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ है। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें |
गीता अध्याय-10 श्लोक-29 में कृष्ण कहते हैं --
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् ।
पितृणामर्यमा चास्मि यम: संयमतामहम् ।।29।।-- पितरों में अर्यमा अर्यमा नामक पित्रेश्वर हूँ |
पितृणामर्यमा चास्मि यम: संयमतामहम् ।।29।।-- पितरों में अर्यमा अर्यमा नामक पित्रेश्वर हूँ |
इनकी गणना नित्य
पितरों में की जाती हैं। जड़-चेतनमयी सृष्टि में, शरीर
का निर्माण
नित्य पितृ ही करते हैं। इनके प्रसन्न होने पर पितरों की तृप्ति होती है।
श्राद्ध के समय इनके नाम से जल दान दिया जाता है। यज्ञ में मित्र (सूर्य) तथा वरुण (जल) देवता के साथ
स्वाहा का 'हव्य' और श्राद्ध में स्वधा का 'कव्य' दोनों स्वीकार करते हैं।
पितृलोक के
अधिष्ठातृ देवता अर्यमा श्राद्ध कर्म में उपस्थित रहते हैं। श्राद्ध के निमित्त
प्राप्त हविर्भाग वसु रूद्र आदित्य स्वरूप सभी पितरों
को पहुंचाने की जिम्मेदारी अर्यमा की होती है। कई बार वसु रूप में निहित आत्मा पुनर्जम लेकर फिर से मर्त्य लोक में अवतरित होता है। ऎसे में मृत व्याक्ति को उद्देश्य कर
किया गया श्राद्ध कर्म पितरों के देवता
अर्यमा को प्राप्त होता है। अर्यमा उस श्राद्ध कर्म का फल अब पुनर्जन्म पाई आत्मा के हवाले कर देता है। यदि किसी के पिता के
पुनर्जन्म लेने की बात सिद्ध हुई तो भी उस पिता को उद्देश्य कर श्राद्ध करना आवश्यक माना
जाता है। श्राद्ध में जो
पिता पितृ रूप में प्रत्यक्ष उपस्थित नहीं हुआ तो भी उसके प्रतिनिधि के रूप में अर्यमा की उपस्थिति वहां रहती
है।
पितरों का आगमन-- अमावस्या
तिथि का महत्व -सूर्य की सहस्त्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम 'अमा' है।
उस अमा नामक प्रधान
किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। उसी अमा में तिथि विशेष को चन्द्र (वस्य) का भ्रमण
होता है तब उक्त किरण के माध्यम
से चंद्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं इसीलिए श्राद्धपक्ष की अमावस्या तिथि का महत्व भी है। अमावस्या के साथ मन्वादि तिथि, संक्रांतिकाल व्यतीपात, गजच्दाया, चंद्रग्रहण
तथा सूर्यग्रहण
इन समस्त तिथि-वारों में भी पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किया जा सकता
है।
तत सु नः सविता भगो वरुणो मित्रो अर्यमा | इन्द्रो नो राधसा गमत ||
वय अर्यमा वरुणश चेति पन्थाम इषस पतिः
सुवितं गातुम अग्निः |
इन्द्राविष्णू नर्वद उ षु सतवाना शर्म नो यन्तम अमवद वरूथम || --ऋग्वेद ४/५५
इन्द्राविष्णू नर्वद उ षु सतवाना शर्म नो यन्तम अमवद वरूथम || --ऋग्वेद ४/५५
आ नो बर्ही रिशादसो वरुणो मित्रो अर्यमा | सीदन्तु मनुषो यथा| -ऋक १/२६
प्र नूनं
ब्रह्मणस्पतिर्मन्त्रं वदत्युक्थ्यम्।
यस्मिन्निन्द्रो वरूणो मित्रो अर्यमा देवा ओकांसि चक्रिरे।।
..ऋग्वेद १/४०/५
'सचमुच परमात्मा और ब्रह्मज्ञानी महापुरुष
ही स्पष्ट एवं प्रशंसनीय मार्गदर्शन देते हैं। उनके मार्गदर्शन में इन्द्र, वरूण, मित्र और अर्यमा देवों का निवास होता है।'---(ऋग्वेदः1.40.5) -------वेद भगवान के अनुसार
ब्रह्मज्ञानी गुरु के मार्गदर्शन में इन्द्र, वरुण, मित्र और अर्यमा देवों का मार्गदर्शन भी निहित होता है।
-----ब्रह्मज्ञानी महापुरुष के
मार्गदर्शन में उपर्युक्त सभी प्रकार की सीख स्वतः समाविष्ट होती है।
सम्पूर्ण विश्व के संचालक -प्रमुख 33 देवता ये हैं:- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति
को मिलाकर कुल 33 देवी और देवता होते हैं। कुछ लोग इन्द्र और
प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा
हैं। 12 आदित्यों में से एक विष्णु
हैं और 11 रुद्रों में से एक शिव हैं।
उक्त सभी देवताओं को परमेश्वर ने अलग-अलग कार्य सौंप रखे हैं।
अर्यमा का सामान्य अर्थ साथी, सहयोगी होता है, ये आदर-सत्कार-सेवाभाव (होस्पीटेलिटी—जो मानव के स्वाभाविक गुण हैं ) अर्यमा- उंच-नीच विभेद व्यवहार और न्यायाकारिता, उवर्रता के देवता हैं | अच्छे मानव में ये गुण होना अनिवार्य है तभी वह आर्य कहलाने योग्य है | हिन्दू विवाहों में वर-वधु उन्हें भी साक्षी मानकर विवाह-प्रण लेते हैं।
अर्यमा का सामान्य अर्थ साथी, सहयोगी होता है, ये आदर-सत्कार-सेवाभाव (होस्पीटेलिटी—जो मानव के स्वाभाविक गुण हैं ) अर्यमा- उंच-नीच विभेद व्यवहार और न्यायाकारिता, उवर्रता के देवता हैं | अच्छे मानव में ये गुण होना अनिवार्य है तभी वह आर्य कहलाने योग्य है | हिन्दू विवाहों में वर-वधु उन्हें भी साक्षी मानकर विवाह-प्रण लेते हैं।
इसप्रकार आर्य जाति व देश
का नाम – पृथ्वी के देव पितृव्य के लोक के अधीक्षक अर्यमा
के नाम पर हुआ --
तदुपरांत महाराजा पृथु के पुत्र द्राविड़ जो भारत के दक्षिण क्षेत्र के राजा हुए उनके नाम पर इस देश का नाम द्रविड़ देश भी हुआ | महा जलप्रलय के समय वाले वैवस्वत मनु को द्रविड़ देश का राजा सत्यव्रत कहा गया है | अर्थात आर्य भारत देश में स्थित श्रेष्ठ कर्म रत मानवों का समूह था | द्रविड़ देश भारत का ही नाम था | बाद में स्वयं की स्वतंत्र पहचान हेतु दक्षिण भारत स्थित राजा द्राविड़ के वंशज स्वयं को द्रविड़ कहने लगे होंगे |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें