....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ..
समुझि परहि नहिं पंथ --बात सम्मान लौटाने की ....
अभी हाल में ही कुछ ख़ासपंथी
रुझान के साहित्यकारों, कलाकारों ने अचानक अपने सम्मान लौटाने प्रारम्भ कर दिए |
असहिष्णुता के विरोध में | इन साहित्यकारों के साहित्य को पढ़ा जाय तो अधिकाँश में
असहिष्णुता बिखरी हुई दिखाई देगी | ये वे साहित्यकार हैं जो धन्धेबाज़ कलमकार हैं, कलाकार
हैं न कि साहित्यकार | लिखना उनका पेशा है, और विविध विरोधाभासी विचारधाराएँ
उत्पन्न करके लाबी बनाकर गुटबाजी व जोड़ तोड़ से पुस्तकें बेचना, सम्मान प्राप्त
करना, कराना उनका तरीका |
यह उसी प्रकार है कि समाज में विभिन्न
प्रकार की साहित्यिक, विचारधाराओं की, कृतियों की, बकवास रचनाओं की गुटबाजी की,
पंथों की, विविध पाखण्ड-विवादों की इतनी खरपतवार
उगा दीजिये कि जनमानस, समाज, पढ़े-लिखे , कलमजीवी, बुद्धिजीवी यहाँ तक कि कवि-साहित्यकार
स्वयं ही भ्रमित होजायं, उन्हें इस पाखंड विवाद में कोइ भी राह न सूझे और सद-साहित्यकार,
सद-कृतियाँ, सद-रचनाएँ, सदविचारधारायें,
सत्साहित्य स्वयं ही निष्क्रिय प्रायः होजायं |
एसे समय में मुझे तुलसी का ये कालजयी दोहा याद
आरहा है| कितना सटीक कहा है महाकवि तुलसी बावा ने --
हरित
भूमि तृण संकुल, समुझि परहि नहिं पंथ |
जिमि
पाखण्ड विवाद तें लुप्त होयं सदग्रंथ |
5 टिप्पणियां:
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सुन्दर रचना ..........बधाई |
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हरित भूमि तृण संकुल, समुझि परहि नहिं पंथ |
जिमि पाखण्ड विवाद तें लुप्त होयं सदग्रंथ |
..बहुत सही ....
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धन्य्वा ऋषभ शुक्ला ....कविता रावत , गाथा एडीटर
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