....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
गुरुवासरीय गोष्ठी
जुलाई माह की प्रथम गुरुवासरीय गोष्ठी दिनांक ७जुलाई २०१६ गुरूवार को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर आयोजित हुई ,जिसमें साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, कवियत्री श्रीमती नलिनी खन्ना एवं कविवर शिव मंगल सिंह मंगल, अशोक विश्वकर्मा गुंजन, डा श्रीकृष्ण सिंह अखिलेश, मुरली मनोहर कपूर निर्दोष, बसंत राम दीक्षित, श्रीमती सुषमा गुप्ता एवं डा श्याम गुप्त ने अपनी रचनाओं से भाव विभोर किया |
गोष्ठी में श्रीमती नलिनी खन्ना, डा श्याम गुप्त व श्रीमती सुषमा गुप्ता को श्रीमती शीलावंती एवं श्री संतराम कपूर स्वतन्त्रता सेनानी स्मृति मंच द्वारा सम्मानित किया गया एवं अ.भा अगीत परिषद् द्वारा उसके आयोजन ‘ मधुर गीतों की एक शाम, मधु-चंद्रहास के नाम’..के उपलक्ष में प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया |
जुलाई माह की प्रथम गुरुवासरीय गोष्ठी दिनांक ७जुलाई २०१६ गुरूवार को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर आयोजित हुई ,जिसमें साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, कवियत्री श्रीमती नलिनी खन्ना एवं कविवर शिव मंगल सिंह मंगल, अशोक विश्वकर्मा गुंजन, डा श्रीकृष्ण सिंह अखिलेश, मुरली मनोहर कपूर निर्दोष, बसंत राम दीक्षित, श्रीमती सुषमा गुप्ता एवं डा श्याम गुप्त ने अपनी रचनाओं से भाव विभोर किया |
गोष्ठी में श्रीमती नलिनी खन्ना, डा श्याम गुप्त व श्रीमती सुषमा गुप्ता को श्रीमती शीलावंती एवं श्री संतराम कपूर स्वतन्त्रता सेनानी स्मृति मंच द्वारा सम्मानित किया गया एवं अ.भा अगीत परिषद् द्वारा उसके आयोजन ‘ मधुर गीतों की एक शाम, मधु-चंद्रहास के नाम’..के उपलक्ष में प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया |
गोष्ठी का प्रारम्भ डा श्याम गुप्त ने माँ की वन्दना से किया |
अशोक विश्वकर्मा ने दर्द के सहने का आभास देते हुए कहा—
दुनिया में अकेला चलना सीख लिया |
दूसरों के दिए दर्द को सहना सीख लिया |
मुरली मनोहर कपूर ने दिल को जलाने की बात की ---
हम चराग प्यार का हमेशा जला के रखते हैं|
गर न हों चराग तो दिल को जलाके रखते हैं|
डा नलिनी खन्ना ने कलम की महत्ता वर्णित करते हुए कहा—
कलम शक्ति युत मानिए, कलम सब सार लिख देती है |
कलम तकदीर लिख देती है, कलम तस्वीर लिख देती है |
कारे कारे बदरा ...का सुन्दर सस्वर प्रस्तुत करते हुए हुए डा शिव मंगल सिंह मंगल ने गाया –
बदरा घिर रहे कारे कारे, कैसे जे मतवारे |
संग हवा के बहे जाय रहे, जैसे पर्वत कारे |
चौके की खटपट के साथ गीत रचना की वास्तविकता की बात श्रीमती सुषमा गुप्ता ने बड़े सुन्दर ढंग से सस्वर प्रस्तुत की –
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत लवों पर आजाता है |
डा श्याम गुप्त ने वर्षा गीत की निम्न पंक्तियाँ प्रस्तुत कीं---
झरर झरर झर, जल वरसावे मेघ ,
टप टप बूँद गिरें, भीजे रे अंगनवा हो ..
आई रे बरखा बहार, आये न सजना हमार |
संयम की उंगली पकडे, पर अंतर्मन वनवास’
रात भर जागे हम | ---से डा श्रीकृष्ण अखिलेश जी ने अपना गीत गुनगुनाया |
डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने मचलकर अपना यादों भरा गीत सुनाया—
‘मचल मचल बरस रहे यादों के घन...’
गोष्ठी के अंत में स्वल्पाहार के उपरांत श्रीमती सुषमा गुप्ता ने सभी विज्ञजनों का आभार प्रकट किया |
चित्र में ----१. श्रीमती सुषमा गुप्ता का सम्मान.-..२.डा श्याम गुप्त का
सम्मान.-मुरली मनोहर कपूर ,अशोक विश्वकर्मा, डा सत्य व डा नलिनी खन्ना
..३.व ४. डा नलिनी खन्ना का सम्मान...५.गोष्ठी क्रम -डा श्याम गुप्त का
काव्य पाठ .-बसंत राम दीक्षित, शिवमंगल सिंह, डा अखिलेश, डा नलिनी खन्ना,
डा सत्य, मुरली मनोहर कपूर व अशोक विश्वकर्मा व ..६.सुषमाजी का काव्य
पाठ...७.आमंत्रित अतिथि डा नलिनी खन्ना का काव्य पाठ एवं विशिष्ट आमंत्रित
अतिथि डा रंगनाथ मिश्र सत्य .....८शिव मंगल सिंह का काव्य पाठ...९. बसंत
राम दीक्षित का काव्य पाठ...
अशोक विश्वकर्मा ने दर्द के सहने का आभास देते हुए कहा—
दुनिया में अकेला चलना सीख लिया |
दूसरों के दिए दर्द को सहना सीख लिया |
मुरली मनोहर कपूर ने दिल को जलाने की बात की ---
हम चराग प्यार का हमेशा जला के रखते हैं|
गर न हों चराग तो दिल को जलाके रखते हैं|
डा नलिनी खन्ना ने कलम की महत्ता वर्णित करते हुए कहा—
कलम शक्ति युत मानिए, कलम सब सार लिख देती है |
कलम तकदीर लिख देती है, कलम तस्वीर लिख देती है |
कारे कारे बदरा ...का सुन्दर सस्वर प्रस्तुत करते हुए हुए डा शिव मंगल सिंह मंगल ने गाया –
बदरा घिर रहे कारे कारे, कैसे जे मतवारे |
संग हवा के बहे जाय रहे, जैसे पर्वत कारे |
चौके की खटपट के साथ गीत रचना की वास्तविकता की बात श्रीमती सुषमा गुप्ता ने बड़े सुन्दर ढंग से सस्वर प्रस्तुत की –
मन में प्रिय रागिनी बसी हो,
गीत लवों पर आजाता है |
डा श्याम गुप्त ने वर्षा गीत की निम्न पंक्तियाँ प्रस्तुत कीं---
झरर झरर झर, जल वरसावे मेघ ,
टप टप बूँद गिरें, भीजे रे अंगनवा हो ..
आई रे बरखा बहार, आये न सजना हमार |
संयम की उंगली पकडे, पर अंतर्मन वनवास’
रात भर जागे हम | ---से डा श्रीकृष्ण अखिलेश जी ने अपना गीत गुनगुनाया |
डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने मचलकर अपना यादों भरा गीत सुनाया—
‘मचल मचल बरस रहे यादों के घन...’
गोष्ठी के अंत में स्वल्पाहार के उपरांत श्रीमती सुषमा गुप्ता ने सभी विज्ञजनों का आभार प्रकट किया |
डा नलिनी खन्ना का काव्य पाठ |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें