....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
----प्रत्येक
माह के प्रथम गुरूवार को आयोजित होने वाली गुरुवासरीय काव्य गोष्ठी
०१दिसम्बर २०१६ गुरूवार को डा श्याम गुप्त के आवास सुश्यानिदी, के-३४८ ,
आशियाना , लखनऊ पर आयोजित की गयी |
---------गोष्ठी का प्रारंभ डा श्याम गुप्त द्वारा हरिगीतिका छंद में की गयी माँ शारदे की वन्दना से हुआ ..
"हम हैं शरण में आपकी माँ ज्ञान के स्वर दीजिये |
सुख शान्ति का वातावरण जग में रहे वर दीजिये |
कवि हों सुहृद समर्थ सात्विक सौम्य स्वर परिपूर्ण हों |
साहित्य हो सुन्दर शिवं सत तथ्य शुचि सम्पूर्ण हों ||"
---------गोष्ठी का प्रारंभ डा श्याम गुप्त द्वारा हरिगीतिका छंद में की गयी माँ शारदे की वन्दना से हुआ ..
"हम हैं शरण में आपकी माँ ज्ञान के स्वर दीजिये |
सुख शान्ति का वातावरण जग में रहे वर दीजिये |
कवि हों सुहृद समर्थ सात्विक सौम्य स्वर परिपूर्ण हों |
साहित्य हो सुन्दर शिवं सत तथ्य शुचि सम्पूर्ण हों ||"
----अशोक विश्वकर्मा गुंजन ने कई रचनाएँ प्रस्तुत कीं| नारी के जीने के अधिकार की बात प्रस्तुत करते हुए कहा--
"जीने का अधिकार चाहती हूँ ,
पर स्वाभिमान नहीं छोड़ना चाहती |"
----कविवर अनिल किशोर शुक्ल निडर ने पर्यावरण के प्रति आव्हान करते हुए कई रचनाये प्रस्तुत की एवं कहा---
"चलो सभी मिल वृक्ष लगाएं ,
घुटन तपन सब दूर भगाएं |"
-----कवयित्री सुषमागुप्ता ने ..मन पापी नहीं माने...जो कुछ भी है मैंने सुनाया आदि गीतों से वातावरण को योग ध्यान मय करते हुए सुनाया --
" हे मन ! क्या अभिमान करे |
क्या लाया, क्या लेजायेगा,
किसका मान धरे ..|"
---श्री बिनोद कुमार सिन्हा ने राष्ट्रपर्व, विमुद्रीकरण आदि पर विभिन्न रचनाये प्रस्तुत करते हुए नोटबंदी व कालाधन पर व्यंग्य प्रस्तुत किया तथा काले धन को काले नाग से संबोधित करते हुए एक अगीत प्रस्तुत किया --
"बजी बीन संपेरे की
गूंजा स्वर ,
शहर गाँव गली गली
काले नाग निकल पड़े |"
---डा श्याम गुप्त ने कालजयी कविता एवं छंदों पर प्रस्तुत अतुकांत गीतों के साथ अपनी रचना 'श्याम मधुशाला' प्रस्तुत की जिसका काव्यांश प्रस्तुत है ---
" पीने वाला क्यों पीता है,
समझ न सकी स्वयं हाला |"
"मंदिर मस्जिद सच्चाई पर
चलने की हैं राह बताते |
और लड़खड़ाकर नाली की,
राह दिखाती मधुशाला ||"
-----श्री गिरीश कुमार मिश्र ने गज़लों के गुलदस्ते पेश करते हुए कहा--
"दरअसल अपना अमन खोते चले जाते हैं हम |
ख्वाहिशों के ढेर को ढोते चले जाते हैं हम | "
---साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने राधाकृष्ण का प्रेम की छंदीय रचना प्रस्तुत की --
"दुष्टों के दालान हेतु, जीवन शमन हेतु,
राधे राधे , श्याम श्याम, राधे श्याम कहिये |"
-----चाय सत्र में चर्चा पर हरिगीतिका छंद के विधान व छंद सौन्दर्य पर चर्चा की गयी |
-- श्याम मधुशाला की हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला से तुलनात्मक तथ्य प्रस्तुत किये गए कि बच्चन की मधुशाला में दार्शनिक तथ्य समुचित है जबकि श्याम मधुशाला में वैज्ञानिक व उसके सामाजिक नकारात्मक प्रभावों पर अधिक जोर दिया गया है |
---डा श्याम गुप्त के वक्तव्य कि गीतों की अधिक लम्बाई एक दुर्गुण है, श्रोता सुनते सुनते यह भूल जाता है कि कहाँ से प्रारम्भ हुआ व किस पर समाप्त हुआ , पर चर्चा हुई कि इसमें गीत का उद्देश्य भी भ्रमित होने का अंदेशा रहता है | नीरज युग के बाद उनकी गीतों की परम्परा आगे न चलने का एक प्रमुख कारण यह भी है |
----श्रीमती सुषमागुप्ता के धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात गोष्ठी अगले आयोजन तक स्थगित की गयी |
"जीने का अधिकार चाहती हूँ ,
पर स्वाभिमान नहीं छोड़ना चाहती |"
----कविवर अनिल किशोर शुक्ल निडर ने पर्यावरण के प्रति आव्हान करते हुए कई रचनाये प्रस्तुत की एवं कहा---
"चलो सभी मिल वृक्ष लगाएं ,
घुटन तपन सब दूर भगाएं |"
-----कवयित्री सुषमागुप्ता ने ..मन पापी नहीं माने...जो कुछ भी है मैंने सुनाया आदि गीतों से वातावरण को योग ध्यान मय करते हुए सुनाया --
" हे मन ! क्या अभिमान करे |
क्या लाया, क्या लेजायेगा,
किसका मान धरे ..|"
---श्री बिनोद कुमार सिन्हा ने राष्ट्रपर्व, विमुद्रीकरण आदि पर विभिन्न रचनाये प्रस्तुत करते हुए नोटबंदी व कालाधन पर व्यंग्य प्रस्तुत किया तथा काले धन को काले नाग से संबोधित करते हुए एक अगीत प्रस्तुत किया --
"बजी बीन संपेरे की
गूंजा स्वर ,
शहर गाँव गली गली
काले नाग निकल पड़े |"
---डा श्याम गुप्त ने कालजयी कविता एवं छंदों पर प्रस्तुत अतुकांत गीतों के साथ अपनी रचना 'श्याम मधुशाला' प्रस्तुत की जिसका काव्यांश प्रस्तुत है ---
" पीने वाला क्यों पीता है,
समझ न सकी स्वयं हाला |"
"मंदिर मस्जिद सच्चाई पर
चलने की हैं राह बताते |
और लड़खड़ाकर नाली की,
राह दिखाती मधुशाला ||"
-----श्री गिरीश कुमार मिश्र ने गज़लों के गुलदस्ते पेश करते हुए कहा--
"दरअसल अपना अमन खोते चले जाते हैं हम |
ख्वाहिशों के ढेर को ढोते चले जाते हैं हम | "
---साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने राधाकृष्ण का प्रेम की छंदीय रचना प्रस्तुत की --
"दुष्टों के दालान हेतु, जीवन शमन हेतु,
राधे राधे , श्याम श्याम, राधे श्याम कहिये |"
-----चाय सत्र में चर्चा पर हरिगीतिका छंद के विधान व छंद सौन्दर्य पर चर्चा की गयी |
-- श्याम मधुशाला की हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला से तुलनात्मक तथ्य प्रस्तुत किये गए कि बच्चन की मधुशाला में दार्शनिक तथ्य समुचित है जबकि श्याम मधुशाला में वैज्ञानिक व उसके सामाजिक नकारात्मक प्रभावों पर अधिक जोर दिया गया है |
---डा श्याम गुप्त के वक्तव्य कि गीतों की अधिक लम्बाई एक दुर्गुण है, श्रोता सुनते सुनते यह भूल जाता है कि कहाँ से प्रारम्भ हुआ व किस पर समाप्त हुआ , पर चर्चा हुई कि इसमें गीत का उद्देश्य भी भ्रमित होने का अंदेशा रहता है | नीरज युग के बाद उनकी गीतों की परम्परा आगे न चलने का एक प्रमुख कारण यह भी है |
----श्रीमती सुषमागुप्ता के धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात गोष्ठी अगले आयोजन तक स्थगित की गयी |
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