....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्यों नहीं होती है सृष्टि-निर्माता ब्रह्मा जी की पूजा, और क्यों है इनके सिर्फ़ कुछ ही मंदिर
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( वस्तुतः हिन्दू धर्म के मूल तत्वों में --- अनैतिकता का कहीं स्थान नहीं है , वैदिक धर्म या सनातन धर्म या हिन्दू धर्म की यह विशिष्टता है कि हिन्दुओं ने अपने महामहिमों के भी अनैतिक कृतित्वों को कभी छुपाया अपितु प्रकाशित/वर्णित किया, उन्हें भी ताडित, प्रताड़ित , लांक्षित , श्रापित किया ताकि नैतिकता का महत्त्व दूर तक जाए | देवों में सर्वप्रथम, सृष्टि निर्माता, पितामह ब्रह्मा तक को नहीं छोड़ा गया ---यही जीवन्तता इस धर्म को सार्वकालिक व व्यापक बनाती है | )
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--------- हिंदू पौराणिक कथाओं में संपूर्ण सृष्टि का रचनाकार ब्रह्मा को कहा जाता है, जिन्होंने अपने ही शरीर से देवताओं, राक्षसों, पुरुषों और इस धरती पर मौजूद सारे प्राणियों को बनाया है| त्रिदेवों का नाम लेने के क्रम में भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश बोला जाता है, अर्थात ब्रह्मा सर्वप्रथम ; पर ब्रह्मा जी की पूजा क्यों नहीं होती, उनके मंदिर क्यों नहीं देखे जाते?
१.-- सामान्य सिद्धांत के अनुसार ----
-------इंसान अकसर उन्हीं देवी-देवताओं की पूजा करता है, जो आम तौर पर एक योद्धा होते हैं, यथा - उग्र आंख, विनाश स्वरूप, भयानक नृत्य और डरावना त्रिशूल लिये भगवान शिव या हाथों में सुदर्शन चक्र लिये, सभी के रक्षक भगवान विष्णु या फिर हाथों में तीर-धनुष और तलवार लिए मां दुर्गा |
उत्तर में गदाधारी हनुमान एवं दक्षिण कुछ हिस्सों में आपको कार्तिकेय की पूजा करते लोग व मंदिर भी मिल जायेंगे, पर सरस्वती (विद्या की देवी) और ब्रह्मा (सृष्टि के रचनाकार) के भी मंदिर आपको कम मिल पायेंगे |
२.--कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार---
-------- ब्रह्मा ने सृजन के दौरान ही एक बेहद ही सुंदर नारी को बनाया, उनकी यह रचना इतनी सुंदर थी कि वे स्वयं ही मुग्ध हो गये और उसे अपनाने की कोशिश करने लगे| सतरूपा ने ब्रह्मा की दृष्टि से बचने की हर कोशिश की किंतु असफल रहीं| ब्रह्मा जी की नज़र से बचने के लिए सतरूपा ( या सरस्वती ) ऊपर की ओर जाने लगीं, तो ब्रह्मा जी अपना एक सिर ऊपर की ओर विकसित कर दिया जिससे सतरूपा की हर कोशिश नाकाम हो गई | शिव की दृष्टि में सतरूपा ब्रह्मा की पुत्री सदृश थीं, इसीलिए उन्हें यह घोर पाप लगा. इससे क्रुद्ध होकर शिव जी ने ब्रह्मा का सिर काट डाला एवं ब्रह्मा जी को शाप के रूप में दंड दिया की पृथ्वी पर कहीं भी ब्रह्मा जी की पूजा-उपासना नहीं होगी |
--------हिंदु धर्म के बुनियादी सिद्धांतो के अनुसार, लोलुपता, वासना, लालच आदि की इच्छाओं को मोक्ष हेतु अवरोधक तत्व माना गया है, इस तरह ब्रह्मा जी ने पूरे मानव जाति के समक्ष एक अनैतिक उदाहरण पेश किया था, जिसके कारण उन्हें ये श्राप मिला |
३.एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार ---
-------जब ब्रह्मा व विष्णु में यह विवाद कि त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है, नियत्रंण से बाहर होने लगा, तब अन्य देव-मुनियों ने भगवान शिव की मदद मांगी, अतः विवाद का अंत करने के लिए सदाशिव एक विशालकाय ज्योति-स्तंभ रूप में प्रकट हुए, जिसके ओर-छोर का पता अनिश्चित था, शिव ने उन दोनों को चुनौती दी कि जो भी इस शिवलिंग के किसी भी छोर तक पहुंच जाएगा, उसी का वर्चस्व सबसे बड़ा होगा.
ब्रह्मा ने एक हंस का आकार ले लिया और शिवलिंग के ऊपर की ओर उड़ान भरी, वहीं विष्णु एक सूअर के रूप में वेश बदल कर शिवलिंग के नीचे के क्षेत्र में उतरे |
जैसे ही कुछ दूर तक विष्णु जी ने यात्रा तय की उन्हें शिव की महत्ता का अहसास अत: विष्णु लौट आए और भगवान शिव को सुप्रीम रूप में स्वीकार किया | वहीं ब्रह्मा ने रास्ते में ऊपर की तरफ बढ़ते समय केतकी फूल से मुलाकात की और केतकी को यह बोलने के लिए मनाया कि वे शिव को जाकर बताएं कि ब्रह्मा शिवलिंग के सबसे ऊपरी छोर तक पहुंच गये हैं|
ब्रह्मा जी की बात मानकर केतकी फूल ने भगवान शिव से झूठ कहा, जिसका पता शिव जी को लग गया| इसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी इस पृथ्वी पर कहीं भी पूजा नहीं की जाएगी और केतकी फूल का किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पूजा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा |
४. पद्म पुराण के अनुसार --
-------धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। उसके बढ़ते अत्याचारों से तंग आकर ब्रह्मा जी ने उसका वध कर दिया। लेकिन वध करते समय उनके हाथों से तीन जगहों पर कमल का पुष्प गिरा, इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बन गई।
-----इस घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ गया औऱ ब्रह्मा ने संसार की भलाई के लिए यहां एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंच गए लेकिन उनकी पत्नी सावित्री जी समय पर नहीं पहुंच सकीं। यज्ञ को पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन सावित्री जी के नहीं पहुंचने की वजह से ब्रह्मा जी ने गुर्जर समुदाय की एक कन्या 'गायत्री' से विवाह कर इस यज्ञ को शुरू किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईंऔर ब्रह्मा को पुष्कर से अन्य पृथ्वी पर कहीं भी उनकी पूजा न होने का श्राप देकर एक अन्य पर्वत शिखर पर विराजमान होगयीं |
-------- भारत में ब्रह्मा जी के कुछ ही मंदिर हैं---- यूं तो ब्रह्मा जी की मूर्तियाँ अधिकाँश बड़े मंदिरों में मिल जाती हैं परन्तु मुख्यतया मंदिर ये हैं--
१.राजस्थान के पुष्कर में स्थित मंदिर प्रमुख है----
-------- इस स्थान को ब्रह्मा जी का घर भी कहा जाता है, मान्यता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल के दौरान अनेकों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया. ब्रह्मा जी का यही एकमात्र मंदिर है, जिसे औरंगजेब छू तक नहीं पाया. इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ, आम तौर पर इस मंदिर को 2000 साल पुराना माना जा रहा है, यहाँ एक पर्वत पर स्थित ब्रह्मा पत्नी सावित्री का भी मन्दिर है |
२.तमिलनाडु के कुंभकोणम में स्थित ब्रह्मा जी के मंदिर----
------ को भी भारत के अन्य सभी मंदिरों में से प्रमुख मंदिर माना जाता है. यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है और उनकी दो पत्नियों गायत्री और सरस्वती के साथ ब्रह्मा की एक मूर्ति है.
३.आंध्र प्रदेश के चेबरोलू में चतुर्मुख ब्रह्मा मंदिर -
-------इस तरह के दूसरे मंदिरों में से एक है, जिसे लगभग 200 साल पहले राजा वासीरेड्डी वेंकटाद्री नायडू द्वारा बनवाया गया था, यहां पर ब्रह्मा के साथ शिव की पूजा भी की जाती है |
४. गुजरात में मूल द्वारिका स्थित ब्रह्मा मंदिर---
-------आज की मुख्य द्वारिका से कुछ दूर पर ही बसी हुई प्राचीनतम मूल द्वारिका ग्राम में भी ब्रह्मा जी का मंदिर स्थित है|
५.ब्रह्मा मंदिर—इरावन – थाईलैंड--- भूतों से बचने के लिए बेंकाक में बना था ब्रह्मा का यह मंदिर---
६. खजुराहो में ब्रह्मा मंदिर ---
७.सोमनाथपुरा कर्नाटक मंदिर – में ब्रह्मा जी की मूर्ति..
चित्र---गूगल ---
---ब्रह्मा मंदिर –पुष्कर
---सावित्री मंदिर –पुष्कर
कुंभकोणम में स्थित ब्रह्मा जी के मंदिर
आंध्र प्रदेश के चेबरोलू में चतुर्मुख ब्रह्मा मंदिर
गुजरात में मूल द्वारिका स्थित ब्रह्मा मंदिर---
ब्रह्मा मंदिर—इरावन – थाईलैंड--
खजुराहो में ब्रह्मा मंदिर ---
.सोमनाथपुरा कर्नाटक मंदिर – में ब्रह्मा जी की मूर्ति
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( वस्तुतः हिन्दू धर्म के मूल तत्वों में --- अनैतिकता का कहीं स्थान नहीं है , वैदिक धर्म या सनातन धर्म या हिन्दू धर्म की यह विशिष्टता है कि हिन्दुओं ने अपने महामहिमों के भी अनैतिक कृतित्वों को कभी छुपाया अपितु प्रकाशित/वर्णित किया, उन्हें भी ताडित, प्रताड़ित , लांक्षित , श्रापित किया ताकि नैतिकता का महत्त्व दूर तक जाए | देवों में सर्वप्रथम, सृष्टि निर्माता, पितामह ब्रह्मा तक को नहीं छोड़ा गया ---यही जीवन्तता इस धर्म को सार्वकालिक व व्यापक बनाती है | )
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--------- हिंदू पौराणिक कथाओं में संपूर्ण सृष्टि का रचनाकार ब्रह्मा को कहा जाता है, जिन्होंने अपने ही शरीर से देवताओं, राक्षसों, पुरुषों और इस धरती पर मौजूद सारे प्राणियों को बनाया है| त्रिदेवों का नाम लेने के क्रम में भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश बोला जाता है, अर्थात ब्रह्मा सर्वप्रथम ; पर ब्रह्मा जी की पूजा क्यों नहीं होती, उनके मंदिर क्यों नहीं देखे जाते?
१.-- सामान्य सिद्धांत के अनुसार ----
-------इंसान अकसर उन्हीं देवी-देवताओं की पूजा करता है, जो आम तौर पर एक योद्धा होते हैं, यथा - उग्र आंख, विनाश स्वरूप, भयानक नृत्य और डरावना त्रिशूल लिये भगवान शिव या हाथों में सुदर्शन चक्र लिये, सभी के रक्षक भगवान विष्णु या फिर हाथों में तीर-धनुष और तलवार लिए मां दुर्गा |
उत्तर में गदाधारी हनुमान एवं दक्षिण कुछ हिस्सों में आपको कार्तिकेय की पूजा करते लोग व मंदिर भी मिल जायेंगे, पर सरस्वती (विद्या की देवी) और ब्रह्मा (सृष्टि के रचनाकार) के भी मंदिर आपको कम मिल पायेंगे |
२.--कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार---
-------- ब्रह्मा ने सृजन के दौरान ही एक बेहद ही सुंदर नारी को बनाया, उनकी यह रचना इतनी सुंदर थी कि वे स्वयं ही मुग्ध हो गये और उसे अपनाने की कोशिश करने लगे| सतरूपा ने ब्रह्मा की दृष्टि से बचने की हर कोशिश की किंतु असफल रहीं| ब्रह्मा जी की नज़र से बचने के लिए सतरूपा ( या सरस्वती ) ऊपर की ओर जाने लगीं, तो ब्रह्मा जी अपना एक सिर ऊपर की ओर विकसित कर दिया जिससे सतरूपा की हर कोशिश नाकाम हो गई | शिव की दृष्टि में सतरूपा ब्रह्मा की पुत्री सदृश थीं, इसीलिए उन्हें यह घोर पाप लगा. इससे क्रुद्ध होकर शिव जी ने ब्रह्मा का सिर काट डाला एवं ब्रह्मा जी को शाप के रूप में दंड दिया की पृथ्वी पर कहीं भी ब्रह्मा जी की पूजा-उपासना नहीं होगी |
--------हिंदु धर्म के बुनियादी सिद्धांतो के अनुसार, लोलुपता, वासना, लालच आदि की इच्छाओं को मोक्ष हेतु अवरोधक तत्व माना गया है, इस तरह ब्रह्मा जी ने पूरे मानव जाति के समक्ष एक अनैतिक उदाहरण पेश किया था, जिसके कारण उन्हें ये श्राप मिला |
३.एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार ---
-------जब ब्रह्मा व विष्णु में यह विवाद कि त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है, नियत्रंण से बाहर होने लगा, तब अन्य देव-मुनियों ने भगवान शिव की मदद मांगी, अतः विवाद का अंत करने के लिए सदाशिव एक विशालकाय ज्योति-स्तंभ रूप में प्रकट हुए, जिसके ओर-छोर का पता अनिश्चित था, शिव ने उन दोनों को चुनौती दी कि जो भी इस शिवलिंग के किसी भी छोर तक पहुंच जाएगा, उसी का वर्चस्व सबसे बड़ा होगा.
ब्रह्मा ने एक हंस का आकार ले लिया और शिवलिंग के ऊपर की ओर उड़ान भरी, वहीं विष्णु एक सूअर के रूप में वेश बदल कर शिवलिंग के नीचे के क्षेत्र में उतरे |
जैसे ही कुछ दूर तक विष्णु जी ने यात्रा तय की उन्हें शिव की महत्ता का अहसास अत: विष्णु लौट आए और भगवान शिव को सुप्रीम रूप में स्वीकार किया | वहीं ब्रह्मा ने रास्ते में ऊपर की तरफ बढ़ते समय केतकी फूल से मुलाकात की और केतकी को यह बोलने के लिए मनाया कि वे शिव को जाकर बताएं कि ब्रह्मा शिवलिंग के सबसे ऊपरी छोर तक पहुंच गये हैं|
ब्रह्मा जी की बात मानकर केतकी फूल ने भगवान शिव से झूठ कहा, जिसका पता शिव जी को लग गया| इसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी इस पृथ्वी पर कहीं भी पूजा नहीं की जाएगी और केतकी फूल का किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पूजा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा |
४. पद्म पुराण के अनुसार --
-------धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। उसके बढ़ते अत्याचारों से तंग आकर ब्रह्मा जी ने उसका वध कर दिया। लेकिन वध करते समय उनके हाथों से तीन जगहों पर कमल का पुष्प गिरा, इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बन गई।
-----इस घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ गया औऱ ब्रह्मा ने संसार की भलाई के लिए यहां एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंच गए लेकिन उनकी पत्नी सावित्री जी समय पर नहीं पहुंच सकीं। यज्ञ को पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन सावित्री जी के नहीं पहुंचने की वजह से ब्रह्मा जी ने गुर्जर समुदाय की एक कन्या 'गायत्री' से विवाह कर इस यज्ञ को शुरू किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईंऔर ब्रह्मा को पुष्कर से अन्य पृथ्वी पर कहीं भी उनकी पूजा न होने का श्राप देकर एक अन्य पर्वत शिखर पर विराजमान होगयीं |
-------- भारत में ब्रह्मा जी के कुछ ही मंदिर हैं---- यूं तो ब्रह्मा जी की मूर्तियाँ अधिकाँश बड़े मंदिरों में मिल जाती हैं परन्तु मुख्यतया मंदिर ये हैं--
१.राजस्थान के पुष्कर में स्थित मंदिर प्रमुख है----
-------- इस स्थान को ब्रह्मा जी का घर भी कहा जाता है, मान्यता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल के दौरान अनेकों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया. ब्रह्मा जी का यही एकमात्र मंदिर है, जिसे औरंगजेब छू तक नहीं पाया. इस मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में हुआ, आम तौर पर इस मंदिर को 2000 साल पुराना माना जा रहा है, यहाँ एक पर्वत पर स्थित ब्रह्मा पत्नी सावित्री का भी मन्दिर है |
२.तमिलनाडु के कुंभकोणम में स्थित ब्रह्मा जी के मंदिर----
------ को भी भारत के अन्य सभी मंदिरों में से प्रमुख मंदिर माना जाता है. यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है और उनकी दो पत्नियों गायत्री और सरस्वती के साथ ब्रह्मा की एक मूर्ति है.
३.आंध्र प्रदेश के चेबरोलू में चतुर्मुख ब्रह्मा मंदिर -
-------इस तरह के दूसरे मंदिरों में से एक है, जिसे लगभग 200 साल पहले राजा वासीरेड्डी वेंकटाद्री नायडू द्वारा बनवाया गया था, यहां पर ब्रह्मा के साथ शिव की पूजा भी की जाती है |
४. गुजरात में मूल द्वारिका स्थित ब्रह्मा मंदिर---
-------आज की मुख्य द्वारिका से कुछ दूर पर ही बसी हुई प्राचीनतम मूल द्वारिका ग्राम में भी ब्रह्मा जी का मंदिर स्थित है|
५.ब्रह्मा मंदिर—इरावन – थाईलैंड--- भूतों से बचने के लिए बेंकाक में बना था ब्रह्मा का यह मंदिर---
६. खजुराहो में ब्रह्मा मंदिर ---
७.सोमनाथपुरा कर्नाटक मंदिर – में ब्रह्मा जी की मूर्ति..
चित्र---गूगल ---
---ब्रह्मा मंदिर –पुष्कर
---सावित्री मंदिर –पुष्कर
कुंभकोणम में स्थित ब्रह्मा जी के मंदिर
आंध्र प्रदेश के चेबरोलू में चतुर्मुख ब्रह्मा मंदिर
गुजरात में मूल द्वारिका स्थित ब्रह्मा मंदिर---
ब्रह्मा मंदिर—इरावन – थाईलैंड--
खजुराहो में ब्रह्मा मंदिर ---
.सोमनाथपुरा कर्नाटक मंदिर – में ब्रह्मा जी की मूर्ति