....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर-------
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर-------
कविता...सार्थकता ...
स्त्री-पुरुष की सार्थकता
अनावृत्त होने में नहीं
आवृत्त होने में है |
आदिकाल में देव-दनुज
संस्कृति में
प्रायः महिलायें अनावृत्त
थीं,
स्वतंत्र, स्वच्छंद,
बन्धनहीन,
पुरुष भी |
यमी, गंगा, मेनका, रम्भा,
उर्वशी
इंद्र, चन्द्रमा, बुध, एवं
देव, दानव, दैत्य, गन्धर्व
और असुर |
मानव ही था ब्रह्मा की
सृष्टि में –
कर्म पर सोचने-विचारने वाला
श्रेष्ठ तत्व ,
जिसके हेतु स्वयंभाव मनु ने
बनाया-
धर्मशास्त्र, रचे गए वेद |
यही कारण था-
विश्व में फ़ैली इस उच्च-उन्नत
विकसित संस्कृति-सभ्यता के
सम्पूर्ण विनाश का, अन्त का,
महा जल-प्लावन में,
जो बसी हुई है समस्त संसार की
सभी संस्कृतियों की स्मृति में ;
मनु की, नूह की, नोआ की गाथा बनकर |
बचे हुए वैवस्वत मनु ने किया विचार,
एकत्र किये बचे-खुचे वैदिकज्ञान व धर्मशास्त्र की
स्मृतियों से, रची-
मनु-स्मृति, नीति-नियम,
मानव की सच्चरित्रता, निष्ठा, सत्यप्रियता,
न्यायप्रियता, सामाजिकता :
पुरुषों की सज्जनता, नारी-मर्यादा, प्रतिष्ठा का भान,
स्त्रियों की आवृत्तता का-
वस्त्रों की, तन की, मन की, आत्मा की |
आज हम उठाते हैं स्मृति पर प्रश्न,
करें विचार –
प्रश्न उठाना अनुचित नहीं है,
है जीवंत समाज का लक्षण : परन्तु-
इतिहास से सबक लेकर
तथ्यगत करें,
उचित-अनुचित,
करें नैतिकता, सच्चरित्रता को
रेखांकित |
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