पुस्तक----ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद ------डा श्याम गुप्त .
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वन्दना
१.
रे मन अब कैसी ये भटकन |
क्यों न रमे तू श्याम भजन नित, कैसी मन अटकन |
श्याम कृपा बिन जगत-जुगति नहिं, मिले न भगति सुहानी |
श्याम भगति बिनु क्या जग-जीवन कैसी अकथ कहानी |
श्याम की माया, श्याम ही जाने, और न जाने कोय |
माया मृग-मरीचिका भटकत जन्म वृथा ही होय |
श्याम भगति रस रंग रूप से सींचे जो मन उपवन |
श्याम,श्याम की कृपा मिले ते सफल होय नर जीवन ||
२.
हे मन ! ले चल सत की राह |
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वन्दना
१.
रे मन अब कैसी ये भटकन |
क्यों न रमे तू श्याम भजन नित, कैसी मन अटकन |
श्याम कृपा बिन जगत-जुगति नहिं, मिले न भगति सुहानी |
श्याम भगति बिनु क्या जग-जीवन कैसी अकथ कहानी |
श्याम की माया, श्याम ही जाने, और न जाने कोय |
माया मृग-मरीचिका भटकत जन्म वृथा ही होय |
श्याम भगति रस रंग रूप से सींचे जो मन उपवन |
श्याम,श्याम की कृपा मिले ते सफल होय नर जीवन ||
२.
हे मन ! ले चल सत की राह |
लोभ, मोह ,लालच न जहां हो,
लिपट सके ना माया ....|
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर ,
प्रेम की शीतल छाया ....|
चित चकोर को मिले स्वाति-जल ,
मन न रहे कोई चाह | -----हे मन ले चल.....||
यह जग है इक माया नगरी ,
पनघट मन भरमाया ...|
भांति- भांति की सुंदर गगरी,
भरी हुई मद-माया...|
अमृत गागर ढकी असत पट,
मन क्यूं तू भरमाया...
मन काहे भरमाया ....|
सत से खोल ,असत -पट घूंघट ,
पिया मिलन जो भाया......|
अन्तर के पट खुलें मिले तब,
श्याम पिया की राह ....|
रे मन ! ले चल सत की राह ,
ले चल प्रभु की राह .....हे मन!....||
-----क्रमश
लिपट सके ना माया ....|
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर ,
प्रेम की शीतल छाया ....|
चित चकोर को मिले स्वाति-जल ,
मन न रहे कोई चाह | -----हे मन ले चल.....||
यह जग है इक माया नगरी ,
पनघट मन भरमाया ...|
भांति- भांति की सुंदर गगरी,
भरी हुई मद-माया...|
अमृत गागर ढकी असत पट,
मन क्यूं तू भरमाया...
मन काहे भरमाया ....|
सत से खोल ,असत -पट घूंघट ,
पिया मिलन जो भाया......|
अन्तर के पट खुलें मिले तब,
श्याम पिया की राह ....|
रे मन ! ले चल सत की राह ,
ले चल प्रभु की राह .....हे मन!....||
-----क्रमश
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