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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 12 मई 2017

पुस्तक----ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद -- वन्दना ----डा श्याम गुप्त . .....




पुस्तक----ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद ------डा श्याम गुप्त .
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वन्दना
१.
रे मन अब कैसी ये भटकन |
क्यों न रमे तू श्याम भजन नित, कैसी मन अटकन |
श्याम कृपा बिन जगत-जुगति नहिं, मिले न भगति सुहानी |
श्याम भगति बिनु क्या जग-जीवन कैसी अकथ कहानी |
श्याम की माया, श्याम ही जाने, और न जाने कोय |
माया मृग-मरीचिका भटकत जन्म वृथा ही होय |
श्याम भगति रस रंग रूप से सींचे जो मन उपवन |
श्याम,श्याम की कृपा मिले ते सफल होय नर जीवन ||
२.
हे मन ! ले चल सत की राह |

लोभ, मोह ,लालच न जहां हो,
लिपट सके ना माया ....|
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर ,
प्रेम की शीतल छाया ....|
चित चकोर को मिले स्वाति-जल ,
मन न रहे कोई चाह | -----हे मन ले चल.....||
यह जग है इक माया नगरी ,
पनघट मन भरमाया ...|
भांति- भांति की सुंदर गगरी,
भरी हुई मद-माया...|
अमृत गागर ढकी असत पट,
मन क्यूं तू भरमाया...
मन काहे भरमाया ....|
सत से खोल ,असत -पट घूंघट ,
पिया मिलन जो भाया......|
अन्तर के पट खुलें मिले तब,
श्याम पिया की राह ....|
रे मन ! ले चल सत की राह ,
ले चल प्रभु की राह .....हे मन!....||
-----क्रमश

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