ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

पर्यावरण संदेषित काव्य गोष्ठी ---डा श्याम गुप्त

                             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

पर्यावरण संदेषित काव्य गोष्ठी -----
\\
कल दिनांक २२-१०- १७ को कविवर श्री राजेन्द्र वर्मा के आवास ३/२९, विकास नगर पर एक कविगोष्ठी हुई, जिसमें पटना से पधारे पर्यावरणविद डॉ. मेहता नगेन्द्र सिंह के अलावा स्थानीय कवियों ने भाग लिया।
------कवि-गोष्ठी की शुरुआत प्रसिद्ध कवि-गज़लकार देवकीनंदन शांत के काव्यपाठ से हुई । उन्होंने प्रकृति और मानव के रिश्ते को उजागर करते हुए एक ग़ज़ल पढ़ी :
आग-पानी-हवा है, माटी है----
-----
तन का दीपक है, मन की बाती है ।
दूसरों के लिए जो जीते हैं
उनको ही ज़िन्दगी सुहाती है ।

------ ग़ज़ल-पाठ के क्रम को आगे बढ़ाया जाने-माने ग़ज़लगो श्री कुँवर कुसुमेश ने । अपनी ग़ज़ल में उन्होंने उदात्त भावों को इस प्रकार रखा :
न अमीर है, न ग़रीब है ,
मेरा यार अहले-नसीब है ।
------ इसी भावभूमि पर डॉ. सुरेश उजाला ने एक रचना पढ़ी :
हर कठिन कार्य को आसाँ बनाइए,
ज़िन्दगी के बोझ को हँस के उठाइए ।
-------प्रसिद्ध हास्यकवि डॉ. डंडा लखनवी ने उद्बोधन देते हुए कहा :
धीरे चलते रहिए, थकन लगे, पग मलते रहिए ।
जड़ता लोकतंत्र की बैरन, नायक सदा बदलते रहिये |
जड़ता लोकतंत्र की बैरन, नायक सदा बदलते रहिये |
जड़ता लोकतंत्र की बैरन,नायक सदा बदलते रहिए ।
----------कवि अमरनाथ ने दोहों से गोष्ठी में यथार्थ का रंग भरा :
गूँज उठी थी रात में, सन्नाटे की चीख ।
गुंडों ने क़ब्ज़ा किया, रोजी जिसकी भीख ।।
--------प्रसिद्ध कथाकार-कवि अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’ ने अपनी रचना में पर्यावरण के प्रति सचेत रहने को कहा अन्यथा उसके दुष्परिणाम हमें भुगतने होंगे :
ख्वाहिशों का, लालचों का यह सिला हो जाएगा,
दूर तक बरबादियों का सिलसिला हो जाएगा ।
पेड़-परबत-नदी-धरती चीखकर कहने लगे,
गर नहीं चेतेगा इंसाँ, ज़लज़ला हो जाएगा ।
---------देश के प्रसिद्ध कवि वाहिद अली वाहिद ने भी पर्यावरण तथा अन्य विषयों पर अपनी कविताओं के सस्वर पाठ से गोष्ठी को कवि-सम्मलेन जैसी ऊँचाई प्रदान की ।
--------संचालक राजेन्द्र वर्मा ने एक ग़ज़ल पढ़ी जो केवल काफ़िये और रदीफ़ पर आधारित थी । मतला था :
चाँदनी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ,
तिश्नगी में हैं सभी, मैं ही नहीं हूँ ।
--------अतिथि डॉ. मेहता ने प्रकृति को बचाने हेतु आत्ममंथन का आह्वान किया :
हवा हुई ज़हरीली कैसे, मैं भी सोचूँ, तू भो सोच |
फ़ज़ा बनी ये नशीली कैसे, मैं भी सोचूँ, तू भो सोच !
नदी उतरती जब पर्वत से, निर्मल रहती है लेकिन,
नदी हुई मटमैली कैसे, मैं भी सोचूँ, तू भो सोच !
--------गोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. श्याम गुप्त ने अपने अध्यक्षीय भाषण में गोष्ठी में प्रस्तुत कविताओं पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ करते हुए पर्यावरण के बचाने की बात कही । काव्यपाठ में उन्होंने ज़माने के व्यवहार पर टिपण्णी करते हुए एक आगी एवं एक ग़ज़ल से कहा :
कम संसाधन/ अधिक दोहन/
न नदिया में जल/ न बाग़ न्गीचों का नगर /
न कोकिल की कूक/ न मयूर की नृत्य सुषमा/
कहीं अनावृष्टि, कहीं अति वृष्टि
किसने किया भ्रष्ट /
प्रकृति सुन्दरी का यौवन |
-------
दर्दे-दिल सँभालकर रखिए,
ज़ख्मेदिल सँभालकर रखिए ।
----------गोष्ठी के अन्त में सभी कवियों ने पर्यावरण को प्रदूषित न करने तथा उसे संरक्षित करने की शपथ ली ।
बाएं से- डॉ मेहता, डॉ डंडा लखनवी, मैं (राजेन्द्र वर्मा), डॉ श्याम गुप्त, अमरनाथ, कुंवर कुसुमेश, वाहिद अली वाहिद, सुरेश उजाला तथा कैलाशनाथ तिवारी।



 

कोई टिप्पणी नहीं: