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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 31 दिसंबर 2017

बणी-ठणी जी--- कवयित्री रसिक बिहारी व किशनगढ़ चित्रकला---डा श्याम गुप्त ...

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

---- बणी-ठणी जी--- कवयित्री रसिक बिहारी व किशनगढ़ चित्रकला ------
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बनी ठनी जी
“बणी-ठणी” राजस्थान के किशनगढ़ की विश्व प्रसिद्ध चित्रशैली है| पर बहुत कम लोग जानते होंगे कि इसका नाम “बणी-ठणी” क्यों और कैसे पड़ा ?
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राजस्थान के इतिहास में शाही परिवारों की दासियों ने भी अपने कार्यों से प्रसिद्धि पायी है| “बणी-ठणी” भी राजस्थान के किशनगढ़ रियासत के तत्कालीन राजा सावंत सिंह की दासी व प्रेमिका थी| राजा स्वयं बड़े अच्छे कवि व चित्रकार थे| उनके शासन काल में बहुत से कलाकारों को आश्रय दिया गया|
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-----नागरी दास व रसिक बिहारी -----
------ “बणी-ठणी” रूप सौंदर्य में अदभुत होने के साथ उच्च कोटि की कवयित्री थी| राजा सावंतसिंह तथा दासी दोनों कृष्ण भक्त थे| उनके प्रेम व कला प्रियता के कारण प्रजा ने भी उनके भीतर कृष्ण-राधा की छवि देखी | दोनों को कई अलंकरण प्रदान किये गए | राजा को नागरीदास चितेरे, आदि तो दासी को कलावंती, लवलीज, नागर, उत्सव प्रिया आदि संबोधन मिले| वह स्वयं रसिकबिहारी के नाम से कविता लिखती थी|
-----बनी ठनी --“बणी-ठणी जी ----
------ राजा सावंतसिंह ने इस सौंदर्य और रूप की प्रतिमूर्ति दासी को रानियों की पोशाक व आभूषण पहनाकर एकांत में उसका एक चित्र बनाया| और इस चित्र को नाम दिया “बणी-ठणी” | राजस्थानी भाषा के शब्द “बणी-ठणी” का मतलब होता है "सजी-संवरी","सजी-धजी" | राजा ने अपना बनाया यह चित्र राज्य के राज चित्रकार को दिखाया और उसे अपने दरबार में प्रदर्शित कर सार्वजानिक किया|
----- इस चित्र की सर्वत्र बहुत प्रसंशा हुई और उसके बाद दासी का नाम “बणी-ठणी” पड़ गया| सब उसे “बणी-ठणी” के नाम से ही संबोधित करने लगे|
------ राज्य के चित्रकारों को भी अपनी चित्रकला के हर विषय में राजा की प्रिय दासी “बणी-ठणी” ही आदर्श मोडल नजर आने लगी और “बणी-ठणी” के ढेरों चित्र बनाये गए जो बहुत प्रसिद्ध हुए और इस तरह किशनगढ़ की चित्रशैली को “बणी-ठणी” के नाम से ही जाना जाने लगा|
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राजा नागरीदास व बनी ठनी चित्रकला
------किशनगढ़ के चित्रकारों के लिए यह प्रेम वरदान सिद्ध हुआ है क्योंकि यह विश्व प्रसिद्ध चित्रशैली भी उसी प्रेम की उपज है और इस चित्रशैली की देश-विदेश में अच्छी मांग है|
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“बणी-ठणी” सिर्फ रूप और सौंदर्य की प्रतिमा ही नहीं थी वह एक अच्छी गायिका व उत्तम कोटि की कवयित्री और भक्त-हृदया नारी थी | बनीठनी की कविता भी अति मधुर, हृदय स्पर्शी और कृष्ण-भक्ति अनुराग के सरोवर है|
-----वह अपना काव्य नाम “रसिक बिहारी” रखती थी| रसिक बिहारी का ब्रज, पंजाबी और राजस्थानी भाषाओँ पर सामान अधिकार था|
-----रसीली आँखों के वर्णन का एक पद उदाहरणार्थ प्रस्तुत है-
रतनारी हो थारी आँखड़ियाँ |
प्रेम छकी रस बस अलसारणी, जाणी कमाल पांखड़ियाँ |
सुन्दर रूप लुभाई गति मति हो गई ज्यूँ मधु मांखड़ियाँ|
रसिक बिहारी वारी प्यारी कौन बसि निसि कांखड़ियाँ||

---------उनके द्वारा कृष्ण राधा लीला वैविध्य की मार्मिक अभिव्यक्ति पदों में प्रस्फुटित हुई है| एक सांझी का पद इस प्रकार पाठ्य है-
खेले सांझी साँझ प्यारी|
गोप कुंवरि साथणी लियां सांचे चाव सों चतुर सिंगारी||
फूल भरी फिरें फूल लेण ज्यौ भूल री फुलवारी|
रहया ठग्या लखि रूप लालची प्रियतम रसिक बिहारी||

---------प्रिय की अनुपस्थिति प्रिया के लिए कैसी कितनी पीड़ाप्रद और बैचेनी उत्पन्न करने वाली होती है, यह तथ्य एक पंजाबी भाषा के पद में प्रकट है-
बहि सौंहना मोहन यार फूल है गुलाब दा|
रंग रंगीला अरु चटकीला गुल होय न कोई जबाब दा|
उस बिन भंवरे ज्यों भव दाहें यह दिल मुज बेताब|
कोई मिलावै रसिक बिहारी नू है यह काम सबाब दा || 



चित्र-१-कविवर नागरी दास ( राजा सावंत सिंह ) एवं बनी ठनी चित्रकला
चित्र २ -बणी-ठणी जी रसिक बिहारी ...
चित्र ३ व अन्य चित्रकला राधा कृष्ण व बनी ठनी जी



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